सम्पादकीय

टीका और सुरक्षा

Subhi
18 Jan 2022 3:07 AM GMT
टीका और सुरक्षा
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लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए टीकाकरण कार्यक्रम का एक साल पूरा हो चुका है। सरकार का दावा है कि इस एक साल में एक सौ सत्तावन करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं।

लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए टीकाकरण कार्यक्रम का एक साल पूरा हो चुका है। सरकार का दावा है कि इस एक साल में एक सौ सत्तावन करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। जाहिर है, आबादी के बड़े हिस्से को टीका लग गया है। आकंड़ों के हिसाब से देश की तिरानवे फीसद आबादी को टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है। करीब सत्तर फीसद लोगों को दोनों खुराकें लग चुकी है।

इससे इतना तो सुनिश्चित हुआ कि लोगों को तात्कालिक तौर पर सुरक्षा कवच मिल गया और जान जोखिम में पड़ने से बची। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि महामारी से जंग में टीका निर्णायक साबित हुआ है। तीसरी लहर के दौरान यह बात सामने आई भी है कि इस बार मौतों के जितने मामले सामने आ रहे हैं, उनमें से अधिकतर वे लोग थे जिन्होंने टीके की एक भी खुराक नहीं ली थी। हालांकि ऐसे भी मामले आते रहे हैं कि टीकाकरण के बावजूद लोग नहीं बच सके। पर ऐसे मामलों की संख्या कम ही है और जांच में पता चला कि ऐसे मरीज किसी न किसी गंभीर बीमारी से पहले से ग्रस्त थे। पर इसमें तो कोई संदेह नहीं कि टीकाकरण ने करोड़ों लोगों को सुरक्षा के घेरे में ला दिया

भारत जैसे विशाल देश में सफल टीकाकरण कोई आसान काम भी नहीं है। इतनी बड़ी आबादी को जल्द से जल्द टीका लगाने के लिए जिस युद्धस्तर पर कवायद शुरू की गई, वह अपने में महाभियान ही है। सबसे पहले 16 जनवरी 2021 से स्वास्थ्यकर्मियों को टीका देने का काम शुरू हुआ था क्योंकि अस्पतालों में संक्रमित मरीजों के बीच रह कर काम यही लोग कर रहे थे।

फिर अग्रिम मोर्चे के लोगों जैसे पुलिस, सुरक्षाबलों को, उसके बाद साठ साल से ऊपर की बुजुर्ग आबादी और पैंतालीस से साठ साल के गंभीर रोगों से ग्रस्त लोगों को इस कार्यक्रम के दायरे में लाया गया। टीकाकरण में तेजी उस वक्त आई जब एक मई 2021 को अठारह साल से ऊपर की वयस्क आबादी को टीके लगाने की घोषणा हुई। तीन जनवरी से पंद्रहसे अठारह साल के किशोरों को टीका लगाने का काम शुरू हो चुका है। मार्च से बारह से चौदह साल के बच्चों की बारी भी आने वाली है।

हालांकि सरकार का लक्ष्य 31 दिसंबर 2021 तक पूरी आबादी के टीकाकरण था। लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। कहने को भारत दुनिया के बड़े टीका निर्माता देशों में है, पर शुरू में कई मुश्किलें तो झेलनी ही पड़ीं। कच्चे माल की कमी और टीका निर्माता कंपनियों के समक्ष पैसे कमी जैसे कारण तो रहे ही, इतनी बड़ी आबादी के लिए टीकों का उत्पादन और फिर देश के कोने-कोने तक टीके पहुंचाने की चुनौती भी मामूली नहीं थी।

केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल का अभाव तथा कुप्रबंधन जैसे संकट भी कम नहीं रहे। कई राज्यों में टीकाकरण की रफ्तार अभी भी संतोषजनक नहीं है। इसलिए राज्यों को अब फुर्ती दिखानी होगी। घर-घर टीकाकरण जैसे अभियान पर जोर देना होगा। टीकाकरण अभियान को कामयाब बनाने के लिए नागरिकों को भी समान रूप से अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। अभी भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो टीका लगवाने से बच रहे हैं। टीके को लेकर लोगों के मन में भ्रम और भय बना हुआ है। इसे दूर करना होगा। एक साल के टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान आई दिक्कतों से हमें सीख लेने की जरूरत है, तभी इस अभियान को और सशक्त बनाया जा सकेगा।


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