सम्पादकीय

वर्ष के भीतर सबको वैक्सीन

Subhi
15 May 2021 5:00 AM GMT
वर्ष के भीतर सबको वैक्सीन
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कोरोना संक्रमण ने जिस प्रकार देश के समूचे चिकित्सा तन्त्र के साथ ही इसकी संघीय व्यवस्था को उधेड़ कर रख दिया है

आदित्य चोपड़ा: कोरोना संक्रमण ने जिस प्रकार देश के समूचे चिकित्सा तन्त्र के साथ ही इसकी संघीय व्यवस्था को उधेड़ कर रख दिया है उसकी कोई दूसरी मिसाल स्वतन्त्र भारत के इतिहास में नहीं मिलती है। यह सच है कि कोरोना की पहली लहर के चलते हम गफलत में रहे और हमने कोरोना के बदलते स्वरूपों की संभावनाओं को गंभीरता से नहीं लिया मगर अब हम जागे हुए लगते हैं और पूरे देश के 18 वर्ष से ऊपर के लगभग 90 करोड़ लोगों से अधिक को वैक्सीन लगाने की जुगत में लग गये हैं। इस बारे में केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त नीति आयोग के सदस्य डा. वी.के. पाल ने विश्वास दिलाया है कि सरकार विश्व की तीन प्रमुख कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों माडरेना, जानसन एंड जानसन व फाइजर के सम्पर्क में पिछले कुछ समय से है और उनसे भारत को वैक्सीन सप्लाई करने के बारे में बातचीत कर रही है तथा कह रही है कि ये कम्पनियां भारत में अपने उत्पादन केन्द्र भी लगाना चाहें तो उनका स्वागत है। यदि डा. पाल की मानें तो इन कम्पनियों से आगामी जुलाई से दिसम्बर महीने तक भारी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध हो सकती हैं क्योंकि इन कम्पनियों ने चालू वर्ष की तीसरी तिमाही से भारत की गुजारिश पर गौर करने का वादा किया है। इसके साथ ही भारत की दो कम्पनियों सीरम इंस्टीट्यूट व भारत बायोटेक ने भी अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का खाका सरकार के सामने रख दिया है। डा. पाल के मुताबिक दिसम्बर महीने तक भारत के पास दो सौ करोड़ से अधिक वैक्सीन होंगी।

फिलहाल यह विवरण बहुत लुभावना लग रहा है मगर नीति आयोग का ही यह कर्त्तव्य बनता था कि वह कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के लिए पहले से ही सरकार को सजग करता और इस प्रकार करता कि देश के किसी भी कोने में वैक्सीन की कमी होने के हालात ही पैदा न होते। यह सर्वविदित था कि कोरोना संक्रमण को रोकने का एकमात्र उपाय वैक्सीन ही है तो समय रहते इसकी उपलब्धता बढ़ाने का सुझाव इसने सरकार को क्यों नहीं दिया ? हकीकत यह है कि पिछले वर्ष के अगस्त महीने से ही अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों ने वैक्सीन कम्पनियों को 'आर्डर' देने शुरू कर दिये थे। पिछले वर्ष ही हमने लाकडाऊन लगा कर किसी तरह कोरोना महामारी से निजात पाने के प्रयास किये थे। मगर नवम्बर महीने से ही इसके नये उत्परिवर्तन (म्यूटेंट) की खबरें विभिन्न देशों से आने लगी थीं और भारत के मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र राज्यों में इसके संक्रमित लोग भी पाये गये थे। यह म्यूटेंट कितना भयानक हो सकता था इसका वैज्ञानिक विश्लेषण कराने की हमने जरूरत ही नहीं समझी और हम दूसरी लहर की चपेट में इस तरह फंस गये कि पूरे देश में कहीं आक्सीजन की कमी और कहीं आवश्यक औषधियों के अकाल से लोग हजारों की संख्या में मरने लगे। लेकिन इस देश के राजनीतिज्ञों का भी मुकाबला नहीं है। उन्होंने भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई कोवैक्सीन को ही भाजपा की वैक्सीन बता दिया और इसके बारे में भ्रम फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेताओं से लेकर बिहार के कुछ नेताओं ने वैक्सीन को ही गलत बता कर इस पर घटिया राजनीति शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि जब सरकार की तरफ से 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को वैक्सीन लगानी शुरू की गई तो लोगों को प्रेरित करने के लिए बाकायदा सरकारी अभियान चलाये गये। मगर नीति आयोग को तभी वैज्ञानिक रिपोर्टों और अध्ययनों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लेना चाहिए था कि कोरोना की दूसरी लहर भारत में तांडव मचा सकती है अतः प्रत्येक व्यक्ति को वैक्सीन लगाये बिना गुजारा नहीं होगा। यहां तक कि नवम्बर महीने में संसद की स्थायी समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि भारत के चिकित्सा तन्त्र को बहुत मजबूत करना होगा और आक्सीजन की उपलब्धता पर ध्यान देना होगा। अब दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी भी कर रहे हैं और चेता रहे हैं कि इसका सबसे ज्यादा असर किशोरों और बच्चों पर होगा।
सवाल यह है कि डा. पाल के मुताबिक यदि दिसम्बर महीने तक हर भारतीय को वैक्सीन लगा भी दी जाती है तो क्या भारत के नौनिहाल सुरक्षित रहेंगे। भारत बायोटेक को दो वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए वैक्सीन बनाने की इजाजत हमने हाल में ही दी है और उसने इसका पहला परीक्षण कर भी लिया है तथा दो परीक्षण बाकी हैं। अमेरिका ने फाइजर कम्पनी की वैक्सीन को 12 से 15 वर्ष तक के किशोरों को लगाना भी शुरू कर दिया है। भारत में 40 करोड़ से ऊपर 18 वर्ष की कम आयु के किशोर व बच्चे हैं। इन्हें भी वैक्सीन लगाना बहुत जरूरी होगा क्योंकि बिना वैक्सीन के बच्चे स्कूलों में सुरक्षित नहीं होंगे। यह समझ लेना की कोरोना की दूसरी लहर के झंझावत से निकल कर हम सुरक्षित हो जायेंगे मृग मरीचिका ही साबित हो सकती है। अतः इस मोर्चे पर हमें बच्चों के लिए वैक्सीन खरीदने की तैयारी भी अभी से कर देनी चाहिए।
हमें सबसे पहले महामारी से निपटने के लिए वे सभी पुख्ता उपाय करने होंगे जो हमारे संविधान के अनुसार जायज हैं। जब किसी भी देश में महामारी आती है तो सीधा सवाल जनता और सरकार का पैदा होता है, राजनीतिक दलों का नहीं। हम कोरोना के खिलाफ लड़ाई को किसी भी स्तर पर राजनीतिक युद्ध में नहीं बदल सकते हैं। केन्द्र सरकार ने जिस तरह कोवैक्सीन उत्पादन के लिए भारत में ही इसका फार्मूला अन्य वांछित फार्मा कम्पनियों को स्थानान्तरित करने का फैसला किया है वह समय की मांग है। यह संकट काल है जिसमें सभी को अपने राजनीतिक आग्रहों से ऊपर उठ कर सीधे जनता को इस महामारी से बचाना होगा।


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