सम्पादकीय

टीके की नाक में दम: हमारे देश में विज्ञान बड़ा है या राजनीति, कोरोना का वायरस भी कन्फ्यूज

Gulabi
10 Jan 2021 3:14 AM GMT
टीके की नाक में दम: हमारे देश में विज्ञान बड़ा है या राजनीति, कोरोना का वायरस भी कन्फ्यूज
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हमारे देश में विज्ञान बड़ा है या राजनीति, कोरोना का वायरस भी कन्फ्यूज,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हमारे देश में विज्ञान बड़ा है या राजनीति, कोरोना का वायरस भी कन्फ्यूज, अब बहस इस बात को लेकर होनी चाहिए कि हमारे देश में विज्ञान बड़ा है या राजनीति! कोरोना का वायरस भी कन्फ्यूज हो गया है कि हाय, किस बुरी घड़ी में मैं इस देश में आया? एक तरफ 'टीका' उसके प्रयोग और प्रसार के स्वाद को 'फीका' बना रहा है, दूसरी तरफ यहां के राजनीतिक दल उस टीके की ही नाक में दम किए पड़े हैं। वहीं यह कोरोना का वायरस कितने भी रूप बदल ले। इसका नया स्ट्रेन आ धमके, लेकिन इसको हमारे देश की प्रतिक्षण रंग बदलने वाली राजनीति के सम्मुख मुस्कुराते हुए नतमस्तक होना ही पड़ेगा। इस नए ईजाद हुए टीके को भी एक अलग प्रकार के प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। वह मानव शरीर की इम्युनिटी को भले ही न भेद पाए, किंतु उसको हमारे कुछ राजनेताओं की प्रतिरोधक क्षमताओं से दो-दो हाथ जरूर करने पड़ रहे हैं।



महामारी का इलाज तो संभव, परंतु संशय की महामारी का उपचार हकीम आज तलक नहीं ढूंढ पाए

इस महामारी का इलाज तो आने वाले समय में फिर भी संभव है, परंतु संशय की महामारी का उपचार हकीम लुकमान भी आज तलक नहीं ढूंढ पाए हैं। यदि जानबूझकर किसी शंका को विस्तार दिया जाए तो उसे एक कोरी अफवाह मानकर हवा में उड़ा देना ही हितकर हुआ करता है।

कोरोना टीका को राजनीति के अधकचरे 'ज्ञान' की प्रयोगशाला से होकर गुजरना पड़ रहा

भले ही कोरोना का यह टीका 'विज्ञान' की प्रयोगशाला में सफल हो गया है, किंतु इसको अब राजनीति के अधकचरे 'ज्ञान' की प्रयोगशाला से होकर गुजरना पड़ रहा है। ज्ञानी जन बिना मास्क लगाए और बिना हाथ धोए इस टीके के पीछे पड़ गए हैं। इधर कोरोना के टीके की आमद हुई है, इधर इन लोगों को कोरोना से अधिक उसके इस टीके से खतरे की बू आने लगी है। यह कोरोना का वायरस तो लॉकडाउन की सख्ती और ताली-थाली की आवाज से भी उतना भयभीत नहीं हुआ था, जितना यह सोचकर डरा हुआ है कि एक बार राजनीति के हत्थे चढ़ गया है तो फिर उसका वह हश्र होगा कि वह किसी भी व्यक्ति से खुद ही दो गज की दूरी बना लेने में ही अपनी खैर समझेगा।
दवा कंपनियों ने ठोकी ताल, हमारी वाली वैक्सीन तुम्हारी वाली वैक्सीन से अधिक कारगर

दरअसल हम वो लोग हैं जो तीसरे से बाद में भिड़ते हैं, पहले खुद में दो-दो हाथ करते हैं और अपनी भुजाओं के दमखम की जांच करते है। हमारी दवा कंपनियां तक बाजार में उतरने से पहले ही ताल ठोकने लग पड़ी हैं कि हमारी वाली वैक्सीन तुम्हारी वाली वैक्सीन से अधिक कारगर है। बाजार के लिए प्रतिद्वंद्विता का पकवान बनाना अच्छी बात होती है, लेकिन इसमें भी नैतिकता का न्यूनतम नमक मिला रहे तो उसका स्वाद बढ़ जाता है।
टीकाकरण हमारे लिए कोई नई बात नहीं

वैसे यह टीकाकरण हमारे लिए कोई नई बात तो है नहीं। खसरा, चेचक, बीसीजी के टीके लगते ही रहते हैं। हां, कुछ बच्चे इंजेक्शन वाली सुई देखते ही रोना-गाना शुरू कर देते हैं, यह दीगर बात है। वही बच्चे जब वयस्क हो जाते हैं तो फिर अपने बच्चों को सबसे पहले टीका लगवाने ले जाते हैं।

कोरोना का टीका लोक मंगल का टीका है, ललाट पर नहीं, बाजू में लगाया जाना है

यूं तो एक और प्रकार का टीका भी होता है जो हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक भावना से मिला-जुला है। उसको किसी भी शुभ कार्य से पहले मस्तक पर लगाया जाता है। यह कोरोना का टीका भी लोक मंगल का टीका है। वह अलग बात है कि इसको ललाट पर नहीं, बाजू में लगाया जाना है।

राम कब टीकाराम बनेंगे, उस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा

बहरहाल, वैक्सीन बन चुकी है। इस तमाम विरोध-प्रतिरोध के बीच अपने राम कब टीकाराम बनेंगे, उस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में हैं। आम जनता भी खुश है कि नए साल में कोरोना से बचाव का एक कारगर हथियार उसके हाथ लग चुका है। अब सबको अगले शिगूफे का इंतजार है।


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