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टीकाकरण से जुड़ी बदइतंजामी ने इतिहास में अपनी जगह बना ली है
टीकाकरण से जुड़ी बदइतंजामी ने इतिहास में अपनी जगह बना ली है। प्रधानमंत्री मोदी ने सात जून को टेलीविजन से दिए गए अपने संबोधन में दो गलतियां सुधारीं। मैं समझता हूं कि गलतियों को स्वीकार करने का यह उनका तरीका है। राज्य सरकारों और विपक्ष को अपने स्तर पर आगे बढ़ना चाहिए। हमें इस गड़बड़ी को दूर करना चाहिए और महामारी तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करना चाहिए।
हालांकि रिकॉर्ड के लिए पिछले 15 महीनों के दौरान की गई गलतियों पर गौर करने की जरूरत है :
चूक और जिम्मेदारियां
1. केंद्र सरकार मान रही थी कि वायरस की पहली लहर ही एकमात्र लहर होगी और घरेलू आपूर्ति के साथ कदम से कदम मिलाकर इत्मीनान से टीकाकरण किया जा सकता है। उसने दूसरी लहर की चेतावनियों को नजरंदाज किया। साथ ही, उसने त्वरित टीकाकरण की परम आवश्यकता की अहमियत नहीं समझी।
2. सरकार दो घरेलू निर्माताओं और उनके हितों को संरक्षण देने को लेकर अति उत्साही थी; उसने अन्य टीकों के आपात इस्तेमाल की मंजूरी (ईयूवी) से कदम खींच लिए और संभव है कि उसने उनके निर्माताओं को भारत में मंजूरी के लिए आवेदन करने के प्रति हतोत्साहित किया हो (उदाहरण के लिए फाइजर को)।
3. सरकार ने 11 जनवरी, 2021 को सीरम इंस्टीट्यूट (एसआईआई) को अपना पहला ऑर्डर दिया, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान ने मई-जून, 2020 में ही निर्माताओं को अपने ऑर्डर दे दिए थे। यही नहीं, ऑर्डर भी सिर्फ 1.1 करोड़ खुराक का था! भारत बॉयोटेक (बीबी) को उसके बाद ऑर्डर दिया गया और उसकी संख्या ज्ञात नहीं है।
4. सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा पूंजीगत अनुदान या सब्सिडी की मांग किए जाने के बावजूद दोनों घरेलू निर्माताओं को आपूर्ति के एवज में अग्रिम भुगतान भी नहीं किए गए। अग्रिम भुगतान (एसआईआई को 3,000 करोड़ रुपये और बीबी को 1,500 करोड़ रुपये) 19 अप्रैल, 2021 में जाकर ही मंजूर किया गया।
5. सरकार ने दोनों घरेलू निर्माताओं द्वारा वर्ष 2020 और 2021 के लिए माहवार किए जाने वाले संभावित उत्पादन का सही आकलन भी नहीं किया था; और न ही उसने उन पर उत्पादन तेज करने के लिए दबाव बनाया। यहां तक कि आज भी दोनों निर्माताओं द्वारा माहवार किए जा रहे वास्तविक उत्पादन और आपूर्ति की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।
बिना परामर्श की नीति
6. सरकार ने राज्य सरकारों से बिना परामर्श किए एकतरफा तरीके से टीकाकरण नीति तैयार की और उस पर अमल किया। सुप्रीम कोर्ट ने टीकाकरण नीति को 'मनमानी और तर्कहीन' करार दिया।
7. केंद्र सरकार ने टीकों की खरीद का विकेंद्रीकरण कर दिया और 18 से 44 वर्ष आयु वर्ग के टीकाकरण का बोझ राज्य सरकारों पर डाल दिया। विकेंद्रीकरण को जिस किसी ने भी या जिस वजह से भी प्रोत्साहित किया गया, वह एक बड़ी चूक थी। नतीजतन राज्य सरकारों की निविदा पर कोई बोली लगाने के लिए आगे ही नहीं आया। खरीद को भयानक भ्रम में डाल दिया गया।
8. सरकार ने केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को की जाने वाली आपूर्ति के लिए अलग-अलग दरें तय कर एक बड़ी गलती की। मूल्य अंतर के कारण सरकारी अस्पतालों की कीमत पर निजी अस्पतालों को बड़ी मात्रा में टीके बेचे गए, जिसके कारण कुछ राज्यों में टीके की कमी हो गई और टीकाकरण को स्थगित करना पड़ा। यह विवाद जारी है, क्योंकि सरकार ने निजी अस्पतालों को कोविशील्ड, स्पुतनिक वी और कोवाक्सिन के लिए क्रमशः 780, 1,145 और 1,410 रुपये प्रति खुराक वसूलने की अनुमति दी है।
9. सरकार द्वारा टीकाकरण के लिए कोविन एप पर रजिस्ट्रेशन करने पर जोर देना पक्षपातपूर्ण था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कोविन पर जोर देने से डिजिटल विभाजन बढ़ा और यह भेदभावपूर्ण था।
चलिए, इन गलतियों को अलग रखते हैं। ऐसा लगता है कि टीकों का उत्पादन और वितरण पहले से बेहतर हुआ है। रूसी टीके स्पुतनिक वी के आयात से मदद मिली है। छह जून से शुरू हुए हफ्ते में टीकाकरण का औसत बढ़कर रोजाना 30 से 34 लाख हो गया। मगर इस गति से भी 2021 के अंत तक सिर्फ 60 करोड़ लोगों को ही टीका लग पाएगा। यह 90 से सौ करोड़ वयस्कों को टीकों की दो खुराक लगाने के लक्ष्य को देखते हुए अत्यंत अपर्याप्त है। (अभी पांच करोड़ से भी कम लोगों को टीके की दोनों खुराक मिल सकी है)
यह रॉकेट साइंस नहीं है
अगले चरण जो जून 2021 से पहले केंद्र सरकार द्वारा पूरे किए जाने चाहिए, स्पष्ट हैं। मैं उनकी सूची यहां दे रहा हूं :
1. जुलाई से दिसंबर, 2021 के बीच प्रत्येक घरेलू निर्माता (दो या तीन या अधिक) के माहवार उत्पादन की एक विश्वसनीय समय सारिणी तैयार की जाए। इसमें स्पुतनिक वी के आयात को जोड़ें। किसी भी लाइसेंसधारी या फिर ऐसे लाइसेंसधारी जिनसे टीके के उत्पादन के लिए संपर्क किया जा सकता है, उनके माहवार उत्पादन को जोड़ें।
2. विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूर फाइजर-बॉयोनटेक, मॉडर्ना, जॉनसन ऐंड जॉनसन तथा साइनोफार्म के टीकों के लिए तुरंत ऑर्डर जारी किए जाएं। अग्रिम भुगतान किया जाए और आपूर्ति के कार्यक्रम पर सहमति बनाई जाए। इस आंकड़े को कुल आपूर्ति में जोड़ें।
3. सरकार टीकों की खरीद की पूरी जिम्मेदारी ले (सात जून को प्रधानमंत्री ने 75 फीसदी खरीद पर सहमति जताई है) और उसे राज्यों की जरूरत तथा प्रत्येक राज्य में टीकाकरण की गति को देखते हुए वितरित करे। राज्यों को सरकारी तथा निजी अस्पतालों में टीकों के वितरण की छूट हो।
4. चूंकि ऐसा लग रहा है कि आवश्यकता के अनुसार टीकों की उपलब्धता में कमी होगी, इसलिए सरकार सार्वजनिक रूप से बताए कि वह इस अंतर को कैसे खत्म करना चाहती है। यदि यह अंतर दिसंबर 2021 तक खत्म नहीं किया जा सकता, तब केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ परामर्श कर टीकाकरण की प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए।
5. केंद्र और राज्य सरकारों को अस्पताल के बिस्तरों की संख्या सहित स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बनाए रखना और बढ़ाना चाहिए।
ऊपर बताए गए पांच चरण कोई रॉकेट साइंस नहीं हैं। इसके लिए योजना बनाने की जरूरत है, यह ऐसी चीज है, जो योजना आयोग को खत्म किए जाने के बाद से मोदी सरकार में नदारद है, लेकिन अन्य देशों में यह निरंतर हो रहा है। सरकार को योजना बनाने के प्रति अपनी बेरुखी का त्याग करना होगा और एक ऐसे समर्पित समूह की नियुक्ति करनी होगी, जो किसी भी तरह की आकस्मिकता का अनुमान लगा सके और उसके अनुरूप योजना बना सके।
चलिए देखते हैं कि केंद्र सरकार उसके सामने जो चुनौतीपूर्ण कार्य है, उससे कैसे निपटती है।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
Tagsटीकाकरण
Gulabi
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