सम्पादकीय

बच्चों का टीकाकरण

Subhi
28 April 2022 4:34 AM GMT
बच्चों का टीकाकरण
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इसमें कोई संदेह नहीं कि सफल टीकाकरण अभियान से भारत ने कोरोना महामारी पर काफी हद तक काबू पाने में कामयाबी हासिल की। टीकाकरण की बदौलत ही बच्चों से लेकर बड़ों और वृद्धों तक को महामारी के खतरे से बचाया जा सका।

Written by जनसत्ता; इसमें कोई संदेह नहीं कि सफल टीकाकरण अभियान से भारत ने कोरोना महामारी पर काफी हद तक काबू पाने में कामयाबी हासिल की। टीकाकरण की बदौलत ही बच्चों से लेकर बड़ों और वृद्धों तक को महामारी के खतरे से बचाया जा सका। हालांकि बच्चों के टीकाकरण का काम पिछले महीने ही शुरू हुआ है, पर अब तक करोड़ों बच्चों को टीके लग चुके हैं। बच्चों के सफल टीकाकरण की बड़ी वजह यह भी है कि पिछले कुछ महीनों में कई टीके बाजार में आ गए हैं। अब भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीडीआइ) ने बच्चों के लिए कुछ और टीकों को हरी झंडी दे दी है।

भारत बायोटेक का बनाया कोवैक्सीन छह से बारह साल के बच्चों को लगाया जाएगा। इसके अलावा पांच से बारह साल के बच्चों के लिए कोर्बेवैक्स और बारह साल से अधिक के बच्चों को लिए जायकोव-डी को मंजूरी दी गई है। हालांकि ये सभी टीके आपात इस्तेमाल के लिए ही होंगे। वैसे अभी कई टीका निर्माता कंपनियां अलग-अलग आयुवर्ग के बच्चों के लिए टीकों के विकास में लगी हैं। ये टीके जितने जल्द आएंगे, टीकाकरण की रफ्तार भी उतनी तेज होगी।

गौरतलब है कि देश में टीकाकरण की शुरुआत पिछले साल जनवरी के मध्य में हुई थी। तब टीकों की भारी कमी थी और लक्ष्य था पूरी आबादी के टीकाकरण का। तब टीके भी कुछ ही कंपनियां विकसित कर पाई थीं। इसलिए तब प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण शुरू किया गया था। सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और कोरोना योद्धाओं को टीके लगे। इसके बाद बुजुर्ग और पहले से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों और फिर वयस्क आबादी की बारी आई। जब किशोरवय आबादी और बच्चों के टीके भी विकसित हो गए, तो इन्हें भी टीकाकरण अभियान में शामिल कर लिया गया।

बच्चों की चिंता ज्यादा इसलिए भी बनी रही, क्योंकि महामारी की दूसरी और तीसरी लहर को लेकर विशेषज्ञ पहले से ही आगाह करते रहे थे कि बच्चों को संक्रमण का खतरा ज्यादा हो सकता है। फिर लंबे समय के प्रतिबंध के बाद जब स्कूलों के खुलने की बात आई तो सबसे पहली जरूरत यही समझी गई कि किशोर आबादी का टीकाकरण हो।

इसीलिए बारह से अठारह साल के बच्चों का टीकाकरण शुरू हुआ। फिर इसी कड़ी में पिछले महीने से बारह से चौदह साल के बच्चों को भी टीकाकरण की मुहिम में जोड़ लिया गया। अब छह से बारह साल के बच्चों के लिए भी रास्ता साफ हो गया है। इसे मामूली कामयाबी नहीं माना जा सकता कि बारह से अठारह साल के बीच की साढ़े आठ करोड़ आबादी को पहली खुराक और साढ़े चार करोड़ बच्चों को दूसरी खुराक भी दी जा चुकी है।

टीकाकरण अभियान में जब-तब बाधाएं भी आती रही हैं। इसके पीछे टीकों की कमी, कुप्रबंधन, लोगों और सरकारों के स्तरों पर लापरवाही जैसे कई कारण रहे। लेकिन अब शायद पहले जैसी स्थिति तो नहीं है। अब तक एक सौ अठासी करोड़ टीके लग जाने का मतलब यही है कि आबादी के बड़े हिस्से को कम से कम एक खुराक दे दी गई है। नब्बे करोड़ से ज्यादा लोगों को टीके की दोनों खुराक लग चुकी हैं।

सतर्कता खुराक भी दी ही जा रही है। लेकिन पिछले कुछ समय से फिर से कुछ राज्यों में मामले बढ़ने से चिंता बढ़ गई है। मास्क पहनने को फिर से अनिवार्य किया जा रहा है। सच तो यह है कि हम बड़े संकट से बच तो गए हैं, पर खतरा अभी टला नहीं है। ऐसे में टीकाकरण और बचाव संबंधी उपाय दोनों की अनदेखी महंगी पड़ सकती है।


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