काफी लंबा और ऊबड़-खाबड़ रास्ता था, लेकिन सफर फिर भी जारी है। इस अभियान पर राजनीतिक टीका-टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक ही साल में भारत की 138 करोड़ से अधिक की आबादी को दोहरा टीकाकरण कोई आसान लक्ष्य नहीं है। यह कोरोना सरीखी वैश्विक महामारी के खिलाफ एक महायुद्ध था, जिसे लड़ने के अस्त्र-शस्त्र भी दुनिया के पास नहीं थे। महान और योग्य वैज्ञानिकों ने कोरोना रोधी टीकों के अनुसंधान किए, नतीजतन कोरोना की लगातार लहरों के बावजूद दुनिया बहुत कुछ सुरक्षित है। संक्रमण फैला है, तो उसका उपचार भी संभव हुआ है। भारत सरीखे विविध संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और रूढि़यों के देश में 15 जनवरी, 2022 तक 156 करोड़ से अधिक खुराकें दी जा चुकी हैं। देश में करीब 94 करोड़ वयस्क और 15-18 साल आयु वर्ग के करीब 7.40 करोड़ किशोर हैं। यानी टीका लगवाने योग्य आबादी 101.40 करोड़ है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 18-44 साल उम्रवालांे को 93.3 करोड़, 45-59 साल आयु वर्ग के 37.1 करोड़ और 60 तथा उससे ज्यादा उम्र वालों को 22.6 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं। क्या ये आंकड़े राष्ट्रीय उपलब्धि नहीं हैं? जो दो टीके भारतीयों को लगाए जा रहे हैं, कमोबेश उनमें से कोवैक्सीन पूरी तरह 'स्वदेशी' है। क्या यह अनुसंधान प्रशंसा के लायक नहीं है? कोवैक्सीन को न केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दी है, बल्कि कई देश उस टीके का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। करीब 90 फीसदी लोग टीके की एक खुराक ले चुके हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि पहली खुराक शरीर को एंटीबॉडीज बनाने के लिए तैयार करती है, जबकि दूसरी खुराक एंटीबॉडीज तैयार करती है। उसी से मानव-शरीर को एक हद तक 'संजीवनी' प्राप्त होती है। देश में हिमाचल ही एकमात्र राज्य है, जहां 100 फीसदी आबादी को दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं, लेकिन उसके अलावा, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, गुजरात और कर्नाटक ऐसे पांच सर्वश्रेष्ठ राज्य हैं, जहां सर्वाधिक टीकाकरण किया गया है। वे शीघ्र ही 100 फीसदी का 'मील का पत्थर' स्थापित कर सकते हैं। सवालिया यह है कि पंजाब और झारखंड सबसे पिछड़े राज्य क्यों हैं? कुल 12 राज्यों में करीब 2.80 करोड़ लोगों ने दूसरी खुराक नहीं ली। पंजाब में तो 50 लाख से अधिक लोग इस जमात में हैं।
नतीजतन आज करीब 11 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने टीके की एक भी खुराक नहीं ली है। वे संक्रमण के हर दौर में 'सुपर स्प्रेडर' साबित हो सकते हैं। टीके को लेकर आज भी लोगों में मतिभ्रम है कि टीके सेे उनकी मौत हो सकती है! टीका उन्हें नपुंसक या विकलांग बना सकता है! टीके में सूअर की चर्बी या गाय के बछड़े का खून है! येे भ्रांतियां बेबुनियाद हैं, क्योंकि इस आलेख के लेखक ने भी जून, 2021 में टीके की दूसरी खुराक ली थी और आज तक सामान्य और स्वस्थ है। सरकार को इन गलतफहमियों के निवारण पर, विभिन्न स्तरों से, काम करना होगा, क्योंकि कोरोना संक्रमण फैलने की रत्ती भर भी गुंज़ाइश छोड़ी नहीं जा सकती। संक्रमण के खिलाफ सबसे 'सुरक्षित कवच' टीका ही है। अब तो किशोर बच्चों में भी टीका लगाया जा रहा है। जिनकी उम्र 60 साल से ज्यादा है, उनमें भी 41.7 लाख बुजुर्गों को तीसरी, एहतियाती खुराक दी जा चुकी है। पंजाब किशोरों में टीकाकरण को लेकर भी सबसे पीछे है। अभी तक मात्र 5 फीसदी किशोरों को ही टीके लगाए जा सके हैं। टीकाकरण की सालगिरह पर सरकार और आम नागरिक को दोबारा मंथन करना चाहिए कि कोरोना जैसी महामारी में एक टीका ही हमें कितनी सुरक्षा दे सकता है? टीकाकरण का इतिहास करीब 200 साल पुराना है और इस अवधि में टीकों ने ही हमें चेचक, प्लेग, पोलियो सरीखी महामारियों से बचाया है। अब कोरोना के प्रति सचेत और सतर्क होकर सभी पात्र नागरिकों को टीका लगवाना चाहिए। सरकार ये टीके सभी को निःशुल्क लगा रही है। नतीजा सामने है कि तीसरी लहर बहुत हद तक घातक और जानलेवा साबित नहीं हो पा रही है। इसके बावजूद हमें सतर्क रहकर कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना है। मास्क लगाना, दो गज की दूरी रखना तथा हाथों को बार-बार सेनेटाइज करना बेहद जरूरी है।