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Uyghur Genocide
ओम तिवारी। ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों से देश की प्यारी छवि बनाने की अपील की थी. उम्मीद रही होगी कि दुनिया इसे चीन के हृदय परिवर्तन का संकेत मानेगी. कोरोना जांच की मांग का शोर थमेगा. दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी लद्दाख में पीएलए की विस्तारवादी रणनीति को भुला दिया जाएगा और बातचीत से कारोबार के नए रास्ते खुलेंगे. लेकिन ब्रिटेन में विश्व की सात सबसे अमीर देशों की शिखर बैठक (G-7) पर चीन की इस कूटनीति का कोई असर नहीं दिखा. उल्टा ग्रुप सेवन के देशों ने उइगर मुसलमानों पर जिनपिंग सरकार के जुल्म, हांगकांग में नागरिकों के अधिकारों का हनन और ताइवान स्ट्रेट में चीन की तनातनी पर बेहद सख्त संदेश दे दिया.
तीन दिनों तक चली इस बैठक के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा ने एक साझा बयान जारी कर चीन को अपना रवैया ठीक करने को कहा. साफ शब्दों में अपील की गई कि चीन शिंजियांग प्रांत और हांगकांग में मानवाधिकार और नागरिकों की मूलभूत आजादी बहाल करे और साउथ चाइना सी में जल्द से जल्द शांति और स्थिरता का माहौल बनाए.
फिर क्या था, प्यारी छवि की चाहत वाले चीन का मुखौटा उतर गया. लंदन में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने तुरंत पलटवार कर दिया. लगभग धमकी भरे अंदाज में G-7 के नेताओं को आगाह किया कि कुछ देशों का छोटा समूह पूरी दुनिया के लिए फैसले ले वो वक्त जा चुका है. अब छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी देश आपसी बातचीत से दुनिया के सारे मामले सुलझाएंगे.
चीन की इस बौखलाहट की वजह क्या है? G-7 के बयान में आखिर कौन सी बात इतनी नागवार गुजरी कि चीन ने Lovable image बनाने की कसम तोड़ दी?
पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट, फिर G-7 देशों की वॉर्निंग: 'प्यारी छवि' भूला चीन
दरअसल यही चीन की हकीकत है. पड़ोसी देशों पर अपनी ताकत का धौंस दिखाने वाले चीन को जब आईना दिखाया जाता है तो वो अपना आपा खो बैठता है. G-7 देशों ने अपने बयान में कोरोना जांच में सहयोग के अलावा मुख्य तौर पर तीन मसले उठाए. लेकिन इनमें से हॉन्ग कॉन्ग में ज्यादती और ताइवान से तनाव से कहीं ज्यादा चीन को उइगर मुसलमानों पर अत्याचार का आरोप चुभ गया है. क्योंकि चीन की सरकार पर एक अंतरराष्ट्रीय मंच से अपनी ही जनता पर अन्याय के आरोप लगे हैं जिसका दूरगामी असर हो सकता है. जिनपिंग सरकार को लगता है कि G-7 देशों ने शिंजियांग की हकीकत दुनिया के सामने रखकर उसकी पोल खोल दी है.
खास बात यह है कि मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने चार दिन पहले ही एक सनसनीखेज रिपोर्ट जारी कर चीन पर मानवता के खिलाफ जघन्य अपराध का आरोप लगा था. 10 जून को छपी इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्रसंघ से गुहार लगाई गई थी कि वो शिंजियांग प्रांत में उइगर और दूसरे मुसलमानों से चीन की बर्बरता की जांच करे. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि चीनी सरकार इन अल्पसंख्यक मुसलमानों को सामूहिक तौर पर हिरासत में रखती है, लगातार उनपर निगरानी रखती है और उन्हें अमानवीय तरीकों से प्रताड़ित करती है. 55 पूर्व कैदियों के बयानों के आधार पर बनाई गई यह रिपोर्ट सामने आते ही कयास लगाए जा रहे थे कि दुनिया के बड़े देश इस मामले पर चीन को घेर सकते हैं. G-7 शीर्ष सम्मेलन में ऐसा ही हुआ.
चीन के शिंजियांग प्रांत में 'नरक जैसा आतंक': एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट
160 पन्नों की रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन के शिंजियांग प्रांत में 'नरक जैसा आतंक' (Dystopian hellscape) है. जहां एक दो नहीं करीब 10 लाख उइगर मुसलमानों को नजरबंदी शिविरों (Interment camps) में रखा गया है. हालांकि चीनी सरकार का दावा रहा है कि आतंकी गतविधियों पर काबू करने के लिए कैंप में स्वैच्छिक तौर पर शिक्षा और सुधार कार्यक्रम चलाए जाते हैं. लेकिन सच तो यह है कि पहले तो इन कैंप में उइगर और दूसरे मुसलमानों का ब्रेनवॉश किया जाता है फिर इन्हें रूह कंपा देने वाली यातनाएं दी जाती हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में उन Tiger chairs का भी जिक्र किया गया है जिसके बारे में पहले भी खबरें आती रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक कैंप में कैदियों को लोहे की टाइगर चेयर से हथकड़ी के जरिए बांध दिया जाता है. फिर एक ही अवस्था में जकड़े कैदी घंटों या दिनों तक बंद रखे जाते हैं. उन्हें सोने तक नहीं दिया जाता. एक पूर्व कैदी ने बताया कि टाइगर चेयर से बंधे उसके एक साथी की उसके सामने ही मौत हो गई थी. चीनी अधिकारियों ने उसे 72 घंटे तक बांध कर रखा था. टाइगर चेयर टॉर्चर दूसरे कैदियों के सामने दिया जाता है ताकि उन्हें मानसिक तौर पर तोड़ा जा सके.
इसके अलावा कैंप में कई उइगर मुसलमानों को छत से टांग कर मारा पीटा जाता है. शरीर में बिजली के झटके दिए जाते हैं. कंपकंपाती ठंढ में अकेला छोड़ दिया जाता है. पूर्व कैदियों ने मानवाधिकार संगठन को बताया कि कैंप में उन्हें न तो नमाज की इजाजत होती है न ही अपनी मातृभाषा में बात करने दिया जाता है. यातना के अलावा उन्हें मेंडरीन और चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी का प्रोपेगेंडा पढ़ाया जाता है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक यहां चीन के आपराधिक न्याय प्रणाली से अलग कानून चलता है. शिजियांग के कैंप के बाहर भी लाखों अल्पसंख्यक मुसलमान महफूज नहीं हैं. वो लगातार चीनी अधिकारियों के सर्विलांस के अंदर डर के साये में जीने को मजबूर हैं.
उइगर और दूसरे मुसलमानों की आबादी पर चीन का नियंत्रण: रिपोर्ट
चीन पर आरोप है कि वो अल्पसंख्यकों की जनसंख्या पर कंट्रोल कर रहा है. जहां देश के दूसरे इलाकों में अब तीन बच्चे जन्म देने की आजादी है. उइगर मुसलमानों पर सिर्फ एक बच्चा जन्म देने की सख्त पाबंदी बनी है. एक बच्चे के जन्म के बाद या तो जबरन महिलाओं की सर्जरी करा दी जाती है या उनके शरीर में बर्थ कंट्रोल के डिवाइस लगा दिए जाते हैं. खुद चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 में दो लाख से ज्यादा महिलाओं को ऐसे डिवाइस लगाए गए थे. 2018 तक यह संख्या 60 फीसदी और बढ़ गई. अत्याचार की हद तो तब हो जाती है जब दोबारा गर्भधारण करने पर जबरन महिलाओं का अबॉर्शन करा दिया जाता है. जिन परिवारों में एक से ज्यादा बच्चे हैं उन्हें भारी पेनाल्टी भी देनी पड़ती है.
शिंजियांग में उइगर मुसलमानों पर चीन का यह कहर 2014 से जारी है. 2017 के बाद चीन की इस बर्बरता के खिलाफ मानवाधिकार संगठनों ने कई बार आवाज उठाईं है. इस साल अप्रैल महीने में Humans Right Watch ने भी चीनी सरकार के गुनाह की रिपोर्ट छापी. अमेरिकी विदेश मंत्रालय इसे उइगर नरसंहार (Uyghur Genocide) बता चुका है. यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, नीदरलैंड्स और लिथुआनिया की संसदों में ऐसे प्रस्ताव भी पास कराए जा चुके हैं. मार्च 2021 में अमेरिका, यूके, यूरोपियन यूनियन और कनाडा ने इस सिलसिले में कई चीनी अधिकारियों पर पाबंदी लगा दी. बदले में चीन ने भी इन देशों के कई सांसदों, संस्थानों और शोधकर्ताओं पर पाबंदी लगा दी.
चीनी सरकार के खिलाफ उइगर नरसंहार की जांच क्यों नहीं होती?
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उइगर मुसलमानों पर शी जिनपिंग सरकार के जुल्म-ओ-सितम की जांच की मांग की है. मानवाधिकार संगठन की चीफ एग्नेस कालामार्ड ने जांच की मांग करते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश को भी आड़े हाथों लिया. एग्नेस ने आरोप लगाया कि एंटोनियो गुटेरेश इस मामले में चीन के खिलाफ कार्रवाई करने में असमर्थ रहे हैं. उन्होंने याद लिया कि मानवता के खिलाफ होने वाले अपराधों पर चुप रहने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना नहीं की गई थी.
जैसी उम्मीद थी वैसे ही एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट आने के बाद दुनिया के सात बड़े देशों ने उइगर मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर चीन को चेतावनी तो दे दी है. लेकिन आगे राह आसान नहीं नजर आता. क्योंकि चीन International Criminal Court का हिस्सा नहीं है. और कोर्ट के दायरे से बाहर का मामला होने की वजह से ही पिछले साल दिसंबर में ICC ने उइगर केस की सुनवाई से इनकार कर दिया.
उधर, International Court of Justice में भी इसकी सुनवाई मुश्किल है. क्योंकि चीन के पास वीटो पावर है. जिसका इस्तेमाल कर वह ICJ में इस मामले को उठाए जाने पर रोक लगा सकता है. हैरानी की बात यह है कि चीन से नजदीकियों की वजह से ज्यादातर मुस्लिम देश उइगर मुसलमानों के मसले पर आवाज उठाने से बचते हैं. पाकिस्तान और तुर्की से लेकर मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देश जिनपिंग शासन के दबाव में उन उइगर मुसलमानों को भी वापस चीन भेज देते हैं जो किसी तरह शिंजियांग से अपनी जान बचाकर भागने में कामयाब हो जाते हैं.
Gulabi
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