सम्पादकीय

उत्तराखंड : पेयजल के लिए जूझते एक गांव की कहानी

Neha Dani
21 Jan 2022 1:46 AM GMT
उत्तराखंड : पेयजल के लिए जूझते एक गांव की कहानी
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जिससे जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सके और भविष्य में पानी की कमी दूर की जा सके।

वर्ष 2024 तक देश के 19 करोड़ घरों तक पीने का साफ पानी पहुंचाने का केंद्र सरकार का लक्ष्य विशेषकर उन ग्रामीण महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है, जिनका आधा जीवन पानी ढोकर लाने में बीत जाता है। उत्तराखंड के लमचूला जैसे सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लिए तो हर घर नल योजना किसी वरदान से कम नहीं, जहां आज भी लोगों को पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से करीब 20 किमी दूर गरूड़ ब्लॉक स्थित लमचूला गांव सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है। करीब सात सौ की आबादी वाले इस गांव में ज्यादातर लोग अति पिछड़ी और अनुसूचित जाति के हैं। प्रकृति की गोद में बसे इस गांव की अर्थव्यवस्था पशुपालन और खेती पर टिकी है। न तो यहां पक्की सड़क है, न चौबीस घंटे बिजली की व्यवस्था। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी दूर है। साफ पेयजल की समस्या ने लमचूला के लोगों के जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। वे न मवेशियों के पीने के पानी का प्रबंध कर पाते हैं, न खुद उन्हें स्वच्छ पेयजल मिल पाता है।
महिलाओं और किशोरियों का अधिकांश जीवन साफ पानी इकट्ठा करने में ही गुजर जाता है। 28 वर्षीय महिला नीतू देवी का कहना है कि गांव में पीने का साफ पानी उपलब्ध न होने के कारण उन्हें रोज पांच किलोमीटर दूर नलधूरा नदी जाकर पानी लाना पड़ता है, जिससे समय की बर्बादी होती है, स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। सबसे अधिक कठिनाई वर्षा और ठंड के दिनों में होती है, जब कच्ची पगडंडियों पर फिसलने का खतरा रहता है। उन्होंने बताया कि गांव में पाइपलाइन तो है, पर वह बरसात के दिनों में अक्सर टूट जाती है, जिसे ठीक कराने में लंबा समय लग जाता है। बुजुर्ग मोतिमा देवी कहती हैं कि गांव में पाइपलाइन होने का क्या लाभ, जब बाहर से ही पानी भरकर लाना होता है?
पानी की कमी का असर लड़कियों की शिक्षा पर भी पड़ रहा है। पानी लाने के लिए घर की महिलाओं के साथ उन्हें भी जाना पड़ता है, जिससे उनकी पढ़ाई बाधित होती है। कुछ लड़कियों का स्कूल भी छूट जाता है। गीता और कविता कहती हैं कि गांव में पानी की समुचित व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ही घर का सारा काम करना पड़ता है, क्योंकि महिलाओं का अधिकतर समय पानी लाने में बीत जाता है। वह कहती हैं कि कई बार माहवारी के असहनीय दर्द में भी उन्हें पानी लाने जाना पड़ता है। कई बार स्कूल के शौचालय में पानी न होने के कारण किशोरियां स्कूल जाने से घबराती हैं।
कई तो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। सरकार का उद्देश्य 2024 तक देश के सभी घरों में पीने का साफ पानी पहुंचना है। योजना का मुख्य फोकस ग्रामीण क्षेत्र है, जहां स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं। इस योजना के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत करना है, जिससे जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सके और भविष्य में पानी की कमी दूर की जा सके।


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