- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- उत्तराखंडः रावत के...
x
उत्तराखंड में भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत को क्यों बदला?
उत्तराखंड में भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत को क्यों बदला ?उनकी जगह तीरथसिंह रावत को मुख्यमंत्री क्यों बनाया ? तीरथसिंह विधायक भी नहीं हैं, सांसद हैं, फिर भी उन्हें क्यों लाया गया ? एक रावत की जगह दूसरे रावत को क्यों लाया गया? इन सवालों के जवाब जब हमें ढूंढेंगे तो उनमें से भाजपा ही नहीं, देश के सभी दलों के शीर्ष नेताओं के लिए कई सबक निकलेंगे। सबसे पहला सबक तो यही है कि किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को यह नहीं समझ बैठना चाहिए कि वह शासक है याने वह बादशाह बन गया है। सारे सांसदों, विधायकों और जनता को उसकी हुकुम उदुली करनी ही है। मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही खुद को देश का प्रधान सेवक कहा था। यही कसौटी है। हर पदारुढ़ नेता को चाहिए कि वह अपने को इसी कसौटी पर कसता रहे।
त्रिवेंद्र राव ने इस कसौटी को ताक पर रख दिया था। उन्होंने उत्तराखंड के आम नागरिकों की गुहार पर कान देना तो बंद कर ही दिया था, वे भाजपा के अपने विधायकों की भी उपेक्षा करने लगे थे। ये भाजपा विधायक इसलिए भी परेशान थे कि कांग्रेस से आए कुछ विधायकों को मंत्री बना दिया गया लेकिन भाजपाई विधायकों को यह मौका नहीं दिया गया जबकि चार मंत्रिपद खाली पड़े रहे।
एक सांसद को भाजपा ने इसलिए मुख्यमंत्री बनाया है कि वह उसे विधायकों में से बना देती तो उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या सरकार को ले डूबती। तीरथसिंह रावत को यह मौका इसलिए मिला है कि वे अजातशत्रु हैं। वे विनम्र और शिष्ट व्यक्ति हैं। वे जनता से जुड़े हुए हैं। उत्तराखंड के 70 विधायकों में से 30 गढ़वाल के होते हैं। तीरथ गढ़वालियों के प्रिय नेता हैं। वे अफसरों के हाथ की कठपुतली नहीं हैं। नेताओं और नौकरशाहों में यदि वे ठीक से तालमेल बिठा सके तो 2022 के चुनाव में भाजपा दुबारा जीत सकती है।
तीरथसिंह रावत को अपनी योग्यता की परीक्षा के लिए सिर्फ एक डेढ़ साल ही मिला है। इस अल्प अवधि में उत्तराखंड के विकास के लिए कुछ चमत्कारी कदम उठाना और पार्टी-एकता बनाए रखना, ये बड़ी चुनौतियां उनके सामने हैं। वे उत्तराखंड की भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं और बचपन से राष्ट्रीय स्वयंसंघ के प्रचारक रहे हैं। केंद्रीय नेताओं से भी उनके संबंध घनिष्ट हैं। इस चुनावी-चुनौती के दौर में कोई भाजपा-विधायक भी उनका विरोध नहीं कर पाएंगे।अगले चुनाव के बाद उत्तराखंड की भाजपा में कई ऐसे वरिष्ठ नेता हैं, जो मुख्यमंत्री पद पर आसीन होना चाहेंगे। त्रिवेंद्रसिंह रावत भी गढ़वाली हैं। वे अपनी असमय पदमुक्ति को क्या चुपचाप बर्दाश्त कर लेंगे ? वे चाहे जो करें, लेकिन उनकी पदमुक्ति ने देश के सभी पदारुढ़ नेताओं को तगड़ा सबक सिखा दिया है।
Next Story