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वहां उपलब्ध बेहतर बुनियादी ढांचे और मानव पूंजी का लाभ उठा सकता है।
अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं के साथ उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोबारा वापसी की है। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने कानून-व्यवस्था की स्थापना, जीवन और संपत्ति की सुरक्षा और पूरे राज्य में बुनियादी ढांचों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। एक्सप्रेस-वे और अन्य विकास कार्य राज्य की औद्योगिक विरासत को फिर से हासिल करने के एजेंडे को बढ़ावा देंगे। योगी ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत धमाकेदार ढंग से की है और वर्ष 2027 तक राज्य की अर्थव्यवस्था को दस खरब डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
केंद्र सरकार ने ठीक ही माना है कि उत्तर प्रदेश का विकास देश के विकास को आगे बढ़ाएगा, क्योंकि राज्य में राष्ट्र की 16 फीसदी आबादी रहती है। विगत जून में प्रधानमंत्री मोदी ने 80,000 करोड़ रुपये से अधिक की 1,406 परियोजनाओं की आधारशिला रखी थी। उत्तर प्रदेश के विकास पर केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों के ध्यान दिए जाने से निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ा है। वित्त वर्ष 2022 में राज्य का निर्यात करीब 30 फीसदी बढ़ गया है। दूसरे चरण में राज्य इसमें तेजी ला सकता है और अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास रणनीतियों को अपना सकता है। ज्ञान-अर्थव्यवस्था में मौजूदा और भावी सामाजिक-आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए मानव पूंजी का विकास बेहद महत्वपूर्ण है।
उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था बेहतर प्रदर्शन कर रही है, लेकिन विशाल आबादी के चलते युवा पीढ़ी के भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए विशेष नीतियों की जरूरत है। राज्य सरकार ने 2022-23 शैक्षणिक सत्र के लिए सरकारी स्कूलों में 6 से 14 साल के बीच के दो करोड़ बच्चों को दाखिला दिलाने का लक्ष्य रखा था। जून 2022 तक, राज्य सरकार अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ रही है, क्योंकि इसने 1.88 करोड़ बच्चों को सफलतापूर्वक नामांकित किया है, जो पूरे प्रदेश के 1.3 लाख स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में शैक्षिक उपलब्धियों ने सीखने की गुणवत्ता में सुधार किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में दिए गए दूरगामी सुझावों के त्वरित कार्यान्वयन के साथ, सार्वजनिक और निजी, दोनों स्कूलों के विकास को सक्षम बनाने के लिए राज्य में स्कूल नीति को संतुलित किया जाना चाहिए। विविध प्रकार के कार्यबल तैयार करने के लिए कौशल और व्यावसायिक कार्यक्रमों और 12वीं के बाद उच्च शिक्षा जैसे विभिन्न विकल्पों के साथ मानव पूंजी विकास में सुधार के लिए अब 12वीं तक शिक्षा अनिवार्य कर दी जानी चाहिए। राज्य ने उच्च शिक्षा प्रणाली का काफी विकास किया है।
राज्य हर साल करीब 16 लाख स्नातक तैयार करता है, जिनमें से आधे से अधिक महिलाएं हैं। प्रदेश का सकल नामांकन अनुपात 25.3 है, जो राष्ट्रीय औसत (27.1) के बिल्कुल करीब है और राज्य की विशाल आबादी को देखते हुए उल्लेखनीय है। उत्तर प्रदेश इस व्यापक उच्च शिक्षा प्रणाली का उपयोग सीखने के परिणामों और उद्योग के लिए तैयार स्नातकों को आगे बढ़ाने के लिए कर सकता है। राज्य को हर साल इन स्नातकों के लिए रोजगार सृजन पर भी ध्यान देना चाहिए। युवा पुरुष रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश स्नातक महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं, जिससे कार्यबल में राज्य की भागीदारी घटती है। महिलाओं के बीच भारत के कम एलएफपीआर (श्रमबल भागीदारी दर) का एक प्रमुख कारण उत्तर प्रदेश में महिलाओं की उच्च स्नातक दर और उनके लिए व्हाइट कॉलर जॉब की न्यूनतम संभावनाएं हैं। राज्य में योग्य नौकरियों के सृजन से कार्यबल में बड़े पैमाने पर इस मानव पूंजी को शामिल करने में मदद मिलेगी।
बुनियादी ढांचे के विकास के साथ उत्तर प्रदेश पूरे क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास को चलाने के लिए चीनी मॉडल का अनुसरण कर सकता है। इससे निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। हाल ही में तैयार पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे और गंगा एक्सप्रेस-वे (जिस पर काम चल रहा है) और मौजूदा व्यापक सड़क नेटवर्क-सभी सही दिशा में हैं। नया जेवर हवाई अड्डा एक बार पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद राज्य और क्षेत्र यात्रियों और मालवाहक विमानों, दोनों के लिए एक वैश्विक केंद्र में तब्दील हो जाएगा। सफाई परियोजनाओं के साथ गंगा नदी को केंद्रीय जलमार्ग के रूप में विकसित किया जा सकता है।
राज्य में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को भी मजबूत किया जा रहा है। अधिक मेडिकल कॉलेज आने से नागरिकों को आपात चिकित्सा के लिए राज्य से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश भारतीय सभ्यता का उद्गम और असंख्य विरासत स्थलों वाला राज्य है। मथुरा, अयोध्या और वाराणसी को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूरा होने पर इस क्षेत्र को भारी बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर 1.2 अरब हिंदू श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगा। श्रम प्रधान उद्योगों में कपड़ा क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं। वित्त वर्ष 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश से निर्यात होने वाले सामान में कपड़ा/परिधान की हिस्सेदारी नौ फीसदी यानी 12,996 करोड़ रुपये थी। इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल उत्पादों के बाद, राज्य से निर्यात किए जाने वाले उत्पादों की सूची में परिधान तीसरे स्थान पर हैं।
इस बीच, नोएडा भारत का सबसे प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक निर्यात केंद्र बन रहा है। श्रम प्रधान उद्योगों को घरेलू उपयोग एवं निर्यात के लिए बड़े पैमाने पर उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण की आवश्यकता होती है, और यह विशिष्ट उद्योगों के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराता है। इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश को गहन शोध, बौद्धिक संपदा सृजन और उत्कृष्टता केंद्रों, अनुदान, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं तथा विनिर्माण सुविधाओं के साथ विशिष्ट कार्यबल तैयार करने के लिए निवेश खातिर अगले पांच वर्षों में 10,000 करोड़ रुपये का निवेश पूल बनाना होगा। इस निवेश से अगले दशक में बड़े पैमाने पर उत्पादन और विकास होगा। राज्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के करीब विशिष्ट औद्योगिक आधार तैयार कर सकता है और वहां उपलब्ध बेहतर बुनियादी ढांचे और मानव पूंजी का लाभ उठा सकता है।
सोर्स: अमर उजाला
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