सम्पादकीय

उत्तर प्रदेश: माफिया-बदमाशों पर लगाम तो कसी पर पुलिस अब पब्लिक को डराती है

Rani Sahu
1 Oct 2021 12:27 PM GMT
उत्तर प्रदेश: माफिया-बदमाशों पर लगाम तो कसी पर पुलिस अब पब्लिक को डराती है
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कानपुर के प्रॉपर्टी डीलर मनीष गुप्ता (Manish Gupta) की गोरखपुर (Gorakhpur) के एक थाने में हत्या का मामला जिस तेज़ी से उछला, उसी तेज़ी से ठंडे बस्ते में चला गया

शंभूनाथ शुक्ल कानपुर के प्रॉपर्टी डीलर मनीष गुप्ता (Manish Gupta) की गोरखपुर (Gorakhpur) के एक थाने में हत्या का मामला जिस तेज़ी से उछला, उसी तेज़ी से ठंडे बस्ते में चला गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ (CM Yogi Adityanath) ने मनीष की पत्नी को कानपुर विकास प्राधिकरण में नौकरी और ठीक-ठाक राहत राशि देने का भरोसा दिया तो मनीष की पत्नी मीनाक्षी ने उनकी बात को मान लिया. लेकिन अभी तक न तो दोषी पकड़े गए न संदिग्ध लोगों पर कोई शिकंजा कसा. उल्टे उसी गोरखपुर के उस थाने, जहां 28 सितंबर को मनीष गुप्ता की हत्या होने की बात कही गई है, से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित मॉडल बीयर शाप में एक बार टेंडर की हत्या कर दी गई. बढ़ते अपराधों ने मुख्यमंत्री की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. पांच महीने बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं लेकिन अचानक अपराधों की बाढ़ आ गई है. वह भी मुख्यमंत्री के गृह जनपद में.

हालांकि अभी प्रदेश में बीजेपी ही सबसे बड़ी पार्टी है और उसका जनाधार भी यथावत है. लेकिन जिस तरह ख़ुद पुलिस वाले अपराध में संलिप्त हो रहे हैं, उससे यह लगता है कि वोटरों के दिल में एक उदासीनता आ गई है. पुलिस के विरुद्ध वे खुल कर बोल नहीं सकते और सरकार भी पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई करने से सकुचा रही है. बस किसी तरह पीड़ित परिवार को मना लिया जाता है. तीन वर्ष पहले 28 सितंबर को ही लखनऊ में एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी की पुलिस वालों ने हत्या कर दी थी. पर उस मामले में भी कुछ नहीं हुआ. सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस बेलगाम है. प्रशासन ईमानदार नहीं है, रिश्वतख़ोरी खुले आम है किंतु अफ़सरों की कोई जवाबदेही नहीं.
योगी का दामन पाक-साफ़!
यद्यपि लोग मानते हैं कि निजी तौर पर योगी आदित्य नाथ के दामन पर कोई दाग नहीं. किंतु वे एक साधु हैं. एक मठ के महंत हैं और उनका चोला धर्म से ओतप्रोत है. मगर प्रदेश एक मठ नहीं है. यहां आपराधिक चरित्र वाली पुलिस होती है और अफ़सरशाही करप्ट. यही कारण है कि लोग इस चुनावी राजनीति से ऊबने लगे हैं. पिछले सप्ताह मैं दिल्ली से वाया अलीगढ़ फ़र्रुख़ाबाद गया और वाया आगरा लौटा. इस तरह मैंने आगरा और अलीगढ़ मंडल के ज़िलों को घूमा. उनके गांवों को देखा और लोगों से मिला भी. कहीं भी और कोई भी ना बीजेपी को लेकर उत्साहित दिखा ना समाजवादी पार्टी या बीएसपी के प्रति. उसकी यह विरक्ति चिंताजनक है.
चमक-दमक सिर्फ़ दिल्ली में
दिल्ली से जब मैं निकला, तब हल्की बारिश हो रही थी. दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे से लाल कुंआ में उतर कर जैसे ही जीटी रोड में आए, सरकार की सारी चमक-दमक की पोल खुलने लगी. इस टोल रोड में अलीगढ़ तक इतने बड़े-बड़े गड्ढे हैं कि ज़रा भी चूके तो गाड़ी गई चार फ़िट गहरे गड्ढे में. अलीगढ़ से सिकंदराराऊ की तरफ़ बढ़ते ही हाई-वे निर्माणाधीन था इसलिए रास्ता बदल लिया. गाड़ी बाएं मोड़ी और वाया अतरौली-छर्रा-कासगंज से एटा जाने का तय किया. यहां गड्ढे कम थे किंतु सड़क इतनी सकरी और घुमावदार कि अक्सर सामने वाला वाहन दिखता ही नहीं. इसके अलावा यह रास्ता गांवों के भीतर से भी निकलता था. इसका एक लाभ यह मिला कि लगभग हर गांव में राम-राम होती रही और इसी बहाने चुनावी चर्चा भी. हरे-भरे खेतों के बीच से गुजरते हुए हम अतरौली पहुंचे.
कोऊ नृप होय, हमें का हानी!
अतरौली पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता कल्याण सिंह का अपना क्षेत्र रहा है. यहां मध्यवर्ती जातियों में से लोध राजपूतों की आबादी सबसे अधिक है. ये लोग पैसे और ताक़त दोनों से मज़बूत हैं. लेकिन आश्चर्य कि किसी ने भी खुल कर नहीं कहा कि 2022 में किसके आसार हैं. सब यही कहते रहे, कि कोई आए हमें क्या फ़र्क़ पड़ता है. चुनाव के प्रति वोटरों की यह उदासीनता पहली बार दिखी. अलबत्ता अतरौली में गांव के अंदर की गलियां पक्की हैं और नालियां भी दोनों तरफ़ दिखीं. गांव में अंग्रेज़ी स्कूल की बस भी दिखी. सभी लड़कियां स्कूल जाती हैं, भले वे किसी बिरादरी की हों. यह एक सुखद संकेत था कि अतरौली में वोटरों में उदासीनता भले हो किंतु पढ़ाई के प्रति अनुराग खूब है.
सिर्फ़ जातियां बदलीं
अतरौली से ही हमने सिकंदराराऊ जाने का फ़ैसला किया. क्योंकि अतरौली में ही बताया गया कि अलीगढ़ से एटा तक फ़ोर लाइन सड़क है. यह सच था, लेकिन एटा किनारे छूट गया. एटा को इस सड़क से कोई लाभ नहीं. एटा जाने के लिए इस फ़ोर लेन हाई-वे से कट है. लेकिन यह पांच किमी की सड़क वैसी ही है जैसी कि किसी गांव को जाने वाली सड़क. एटा आज भी वैसा ही है, जैसा चार दशक पहले था. बस पहले यहां उपाध्याय लोगों का बोलबाला था, आज यादवों का. वकील, सरकारी कर्मचारी और प्रॉपर्टी डीलर इसी एक जाति से. यह पहल बता रही थी कि राजनीति समृद्धि की दिशा भी बदलती है. कांग्रेस के समय सारे संसाधनों पर उपाध्याय थे आज यादव हैं.
पुलिस की वसूली
यहां से हम चले अलीगंज की तरफ़. अलीगंज एटा से उत्तर की ओर 50 किमी है. यहां के जंगलों में डकैतों का आतंक रहा है और लूट व फिरौती यहां आम बात है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पिछले चार वर्षों में योगी सरकार ने इस फिरौती माफिया को साफ़ कर दिया है. लेकिन पुलिस उतनी ही बेलगाम हो गई है. कहीं भी किसी को रोक कर पूछ-ताछ करने लगती है. ज़रा भी विरोध किया तो हाथ उठा देती है. अलीगंज जैसे क़स्बे में चारों तरफ़ पानी भरा था क्योंकि नालियां चोक हो चुकी हैं. प्रशासन को इन्हें साफ़ करने की सुधि नहीं आई. यहां भी जिन लोगों से बात हुई सब ने एक सुर से कहा कि चाहे जो आ जाए, हमें क्या फ़र्क़ पड़ता है.
आम लोगों की फ़िक्र किसे
फ़र्रुख़ाबाद का हाल तो इतना ख़राब है कि मुख्य मार्ग में नाला सड़क के ऊपर से बह रहा था. इतना पुराना शहर लेकिन रख-रखाव का ज़िम्मा किसी पर नहीं. यहां का प्रशासन छह किमी दूर फ़तेहगढ़ में बैठता है. वहां राजपूत रेजिमेंट का मुख्यालय है, कई ट्रेनिंग सेंटर हैं, सेंट्रल जेल है. वहां की तो साफ़-सफ़ाई चाक-चौबस्त है. लेकिन जहां आम लोग रहते हैं, शहर को रेवेन्यू देने वाले व्यापारी रहते हैं, उनकी फ़िक्र किसी को नहीं है. ऐसी सरकारों में कौन इन नेताओं के लिए वोट का प्रबंध करे. राजनीति और राजनेताओं तथा जन प्रतिनिधियों के प्रति यह उपेक्षा इसलिए भी है. यही कारण है कि हम रोज़ सुनते-पढ़ते हैं कि अमुक विधायक या सांसद को पब्लिक ने धुन दिया. सुन कर विरोधी दल मज़े ज़रूर लें लेकिन यह भी समझ लें कि अगला नम्बर आपका है.
ख़तरा अब सिस्टम को
चुनाव के पहले सपा और बसपा भी आ गई है. कांग्रेस भी अपना चेहरा चमका रही है. लेकिन जनता भूली नहीं है 2007 और 2012 की क्रमशः बसपा और सपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकारों के चाल चार्टर और चेहरे को. यही कारण है कि जनता अब हर घटना-दुर्घटना के प्रति उदासीन हो गई है. यह राजनीतिक दलों को अपने लिए हितकारी भले लग रहा हो, मगर है यह एक ग़ुस्सा है जो कभी भी फट सकता है. तब क्या होगा, पता नहीं.


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