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चढ़ाई एवरेस्ट की चोटी पर करना है तो इसकी तैयारी बहुत पहले से ही शुरू करनी पड़ती है
सुष्मित सिन्हा। अजय झा। चढ़ाई एवरेस्ट की चोटी पर करना है तो इसकी तैयारी बहुत पहले से ही शुरू करनी पड़ती है. उत्तर प्रदेश में फिलहाल किसी गैर-बीजेपी दल के लिए सरकार बनाने के बारे में सोचना एवरेस्ट पर चढ़ने से कम कतई नहीं है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 9-10 महीने दूर है पर डबल इंजन की सरकार को पटरी से उतारने के लिए कड़ी मेहनत का फ़िलहाल कोई और विकल्प है भी नहीं. समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव से बेहतर कौन जानता है कि मेहनत का फल वाकई में मीठा होता है, यह सिर्फ किताबी बातें नहीं है.
2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को हराना आसान नहीं था. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को हाथी पर से उतारने के इरादे से युवा नेता अखिलेश अकेले साइकिल पर निकल पड़े. पूरे प्रदेश का दौरा किया और आख़िरकार साइकिल के टक्कर से हाथी धराशायी हो ही गई. 38 वर्ष के उम्र में अखिलेश उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे. अगर 2017 में अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी चुनाव हार गयी तो इसके जिम्मेदार अखिलेश नहीं थे बल्कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव, चाचा शिवपाल यादव और पिता के खासमखास अमर सिंह थे.
चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं अखिलेश यादव
अखिलेश के मुख्यमंत्रित्व में उत्तर प्रदेश में विकास दिखा ज़रूर था, यह अलग बात है कि उनकी कई परियोजनाओं का फीता काटने का सौभाग्य वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिला. पर एक तरफ मोदी लहर और दूसरी तरफ अपने परिवार का असहयोग, अखिलेश का साइकिल 2017 के चुनाव में पंचर हो गया, पर अखिलेश का हौसला नहीं. जहाँ दूसरे दलों के नेता कोरोना की कहर और चिलचिलाती गर्मी की वजह से घर पर रहना पसंद कर रहे हैं, अखिलेश अभी से चुनाव की तैयारी करने में जुट गए हैं. इस बार अखिलेश परिवार के जंजीर से आजाद हो चुके हैं, पिता मुलायम सिंहयादव अब 81 वर्ष के हो चुके हैं और राजनीति से सेमी-रिटायर हो चुके हैं, चाचा शिवपाल यादव को भी अब तक अपनी राजनीतिक औकात का पता चल चुका है और अमर सिंह स्वर्गवासी हो चुके हैं.
आगामी चुनाव में अकेले लड़ेगी समाजवादी पार्टी
अखिलेश ने चुनाव की तैयारी में एक बात पहले से ठान ली है कि समाजवादी पार्टी का अगले चुनाव में किसी भी दल से कोई गठबंधन नही होगा, जो कांग्रेस पार्टी के लिए के बड़ा झटका है. 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन था, जो दो वर्ष बाद बिहार विधानसभा चुनाव का एक झांकी मात्र था कि कांग्रेस पार्टी देश के दो सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में अपना अस्तित्व खो चुकी है. कांग्रेस पार्टी 107 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ सात सीटें ही जीतने में सफल रही. यह तो नहीं कहा जा सकता कि बिहार की तरह कांग्रेस पार्टी खुद भी डूबी और अपने सहयोगी दलों को भी डुबा दिया, क्योकि समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए सिर्फ 47 सीटों पर ही सफल रह पायी थी. पर इतना तो स्पष्ट हो गया था कि समाजवादी पार्टी ही एकमात्र ऐसी विपक्षी पार्टी है जो बीजेपी के लिए चुनौती पेश कर सकती है.
पिछले चार सालों में कांग्रेस पार्टी में इसके सिवा की अब प्रदेश में कमान राहुल गाँधी के पास नहीं बल्कि उनकी बहन प्रियंका गाँधी के हाथों में है, और कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ है. 2019 के लोकसभा चुनाव में खानदानी सीट अमेठी से चुनाव हारने के बाद राहुल गाँधी के हाथों उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के जीर्णोद्धार के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, ना ही राहुल गाँधी कुछ ऐसा सोच भी रहे हैं. पर समय के साथ प्रियंका गाँधी ने भी साबित कर दिया कि उनसे भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं रखी जा सकती. हरियाणा राज्य के गुरुग्राम में रह कर प्रियंका द्वारा उत्तर प्रदेश की राजनीति करना इतना आसान भी नहीं है, और वह भी तब जबकि पिछले चार वर्षों में उनको यदा कदा ही उत्तर प्रदेश में देखा गया है.
मायावती की सक्रियता कम हुई है
रही बात मायावती की तो वह फिलहाल अपने हाथी के साथ आराम फरमा रही हैं. ना तो उन्हें उत्तर प्रदेश में देखा जाता है ना ही वह राहुलऔर प्रियंका गाँधी की तरह सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं. हाँ, चुनाव के तीन-चार महीने पहले वह ज़रूर सक्रिय हो जाएंगी.
मौजूदा परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी ही एकलौती पार्टी बची है तो बीजेपी को किसी हद तक चुनौती दे सकती है. क्योकि करोना के दौर में अखिलेश अभी एक बार फिर से साइकिल यात्रा निकाल नहीं सकते, लिहाजा घर में ही बैठ कर चुनाव जीतनी की तैयारी करने में लग गए हैं. फिलहाल उन्होंने प्रदेश के सभी सीटों से संभावित उम्मीदवारों को आवेदन करने को कहा है और उनकी दमखम की समीक्षा हो रही हैं. अखिलेश का इरादा है कि जितनी जल्दी हो सके अनौपचारिक स्तर पर ही सही, संभावित प्रत्याशियों की सूची को तैयारकर लिया जाए.
अखिलेश की सोच है कि जहाँ प्रत्याशियों को जनता के बीच जाने और समय से पूर्व ही प्रचार करने का भरपूर समय मिल जाए, जो इससे नाखुश हो उन्हें मानाने-पटाने का भी पर्याप्त समय मिल जाए ताकि चुनाव के आते-आते पार्टी में कोई अनिश्चित्तता की स्थिति ना रही.
अखिलेशकी कोशिश सफल रहेगी या नहीं इस बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता. कोरोना से लडाई को छोड़ दें तो योगी आदित्यनाथ सरकार पर भी ऊँगली नहीं उठाई जा सकती. और चुनाव आते-आते उत्तर प्रदेश में डबल इंजन के विकास के साथ साथ अयोध्या और काशी विश्वनाथ मंदिर का तड़का भी लग जाएगा. चुनाव अभी भी दूर है. पर अगर अग्रिम तैयारी और बुलंद इरादों पर ही अंक दिया जाए तो अखिलेश यादव 10/10 अंक के हक़दार हैं.
Gulabi
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