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उत्तर प्रदेश चुनाव परिणाम 2022
Anupam Pathak
उत्तर-प्रदेश में लम्बे समय तक चली मतदान प्रक्रिया, चुनाव प्रचार, चुनावी-सर्वेक्षण, एग्जिट पोल, राजनीतिक वाद-विवाद और राजनीतिज्ञों के विश्लेषण और अवलोकन के बीच हम मतगणना की निर्णायक प्रक्रिया तक पहुंच गए हैं। दोपहर तक के रुझान को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ पूर्ण बहुमत से सरकार दोहरा रही है। जहां एक ओर पक्ष-विपक्ष अपने जीत हार के संदर्भ में अलग अलग दावे कर रहे हैं, वहीं राजनीतिक विश्लेषक अपने मत को उदाहरणों से स्थापित करने की कोशिश में हैं।
राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी के रूप में, समाज विज्ञान के शोधार्थी के रूप में तथा महत्वपूर्ण रूप में सीएसडीएस के क्षेत्र-सर्वेक्षक के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में सर्वेक्षण, मतदाताओं के साक्षात्कार और सहभागी अवलोकन से चुनाव परिणाम के ऐसे होने के तमाम कारण मैं खंगाल पाया।
भारतीय राजनीति में जाति और धर्म लम्बे समय से एक प्रमुख कारक रहा है और इस चुनाव में उसका प्रभाव रहा है,लेकिन उसका प्रभाव भाजपा के हित में रहा, कारण ये है कि भाजपा ने गांव यानी बूथ स्तर से लेकर प्रान्त-स्तर और राष्ट्रीय स्तर तक हर जाति और वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है।इसके साथ-साथ बसपा के अपेक्षाकृत नर्म रवैये और हिन्दू पहचान के नाम पर वो कुछ मात्रा में जाटव और भारी मात्रा में अन्य जाटव दलित पर कब्जा जमाने में सफल रहे हैं।
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दल अपने दावे के अनुसार यादव के अतिरिक्त अन्य पिछड़ा वर्ग को अपने पाले में लाने में असफल रहे हैं। मेरे अवलोकन और क्षेत्र सर्वेक्षण के अनुसार ब्राह्मणों के भाजपा से नाराज और असंतुष्ट होने के दावे पूर्ण विफल रहे हैं।
सपा गठबंधन को जो एक महत्वपूर्ण लाभ हुआ और जो परिणामों में दिखा भी है,वो ये है कि मुस्लिम मत उसके पक्ष में एकतरफा लामबन्द हुए हैं,और किसान आंदोलन के प्रभाव तथा जयंत चौधरी के साथ आने से अच्छी मात्रा में जाट वोट समाजवादी पार्टी गठबंधन को मिले हैं।
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मुस्लिम मतदाताओं का हाल
यहां सबसे महत्वपूर्ण और गौर करने वाली बात ये है कि मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग इस चुनाव में मतदान केंद्र पर नहीं पहुंचा है। मेरे अवलोकन में हमने पाया कि तमाम मुस्लिम सऊदी अरब,कुवैत,दुबई और मुंबई जैसी जगहों पर अपनी रोजी की जुगत कर रहे हैं।
ताज्जुब ये है कि कि मेरे अवलोकन में पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसे मुस्लिम मतदाता, कुल मुस्लिम मतदाताओं का 25 से 30 प्रतिशत है। दूसरी तरफ इस चुनाव में तमाम विधानसभा क्षेत्रों में ये देखने को मिला कि बसपा ने ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दिया जिन्होंने अप्रत्यक्ष सपा के वोट काटे और इस तरह भाजपा को उसका लाभ मिला।
हालांकि कांग्रेस भी लगभग इसी भूमिका में थी और उसके प्रत्याशी ऐसे थे जो अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा गठबंधन के वोट में सेंधमारी कर सकें लेकिन वे ज्यादा प्रभाव डालने में नाकाम रहे।
पूरे क्षेत्र सर्वेक्षण में हमने पाया कि उत्तर-प्रदेश के लोकतंत्र में एक नई जाति का उभार हुआ है जिन्हें हम लेवता (लाभार्थी) कह सकते हैं, जिन्होंने जमीनी स्तर मिलने वाली सुविधाओं के आलोक में और अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के अभाव भाजपा का दामन थामा और यह कृत्रिम जाति या वर्ग इस चुनाव में निर्णायक साबित हुआ है।
मुद्दों को भुनाने में नाकाम विपक्ष
इस चुनाव में एक प्रमुख और प्रभावकारी मुद्दा आवारा पशुओं का था जिससे जनता काफी प्रभावित थी लेकिन विपक्ष समय से और व्यवस्थित तरीके से इसे भुनाने में नाकाम रहा, क्योंकि मोदी जैसे बड़े नेता ने 10 के बाद एक स्थायी समाधान का वादा किया और विपक्ष यह नहीं बता पाया कि वह इस समस्या का क्या समाधान देगा।
लोग भ्रमित थे कि वो समाधान के तौर पर बूचड़खानों पुनः बहाली देंगे, इस कारण हिन्दू मानसिकता के लोग अखिलेश से खुद को जोड़ नहीं पाए।
महिलाओं ने भी इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाई है और महिलाओं ने उज्ज्वला गैस योजना गैस योजना, महिला स्वयं सहायता समूह आदि योजनाओं के प्रभाव में सत्ताधारी पार्टी को समर्थन दिया। दूसरी तरफ सुरक्षा के नाम पर नवयुवतियों ने भाजपा को एकमात्र विकल्प के तौर पर देखा।
इन सबके साथ उत्तेजक दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक युवकों ने अयोध्या,काशी और मथुरा के नाम पर योगी-मोदी की जोड़ी को बनाये रखने का फैसला किया। साथ ही समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियों के समर्थकों द्वारा बेहतर नीतियों पर भाजपा के समर्थन पर भी अंधभक्त कहकर कई बार पढ़े लिखे और समझदार लोगों पर कटाक्ष भी नकारात्मक रहा है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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