सम्पादकीय

उत्तर प्रदेश बीजेपी : 1992 से 2022 तक, सत्ता का कमल पथ

Rani Sahu
18 Sep 2021 5:36 PM GMT
उत्तर प्रदेश बीजेपी : 1992 से 2022 तक, सत्ता का कमल पथ
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अब बारी कल्याण सिहं के उस उत्तर की थी जो आने वाले तीस सालों के देश और यूपी की राजनीति की दिशा बदलने वाली थी

रवि मिश्रा। साल था 1992.. तब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) पुलिस के मुखिया यानि महानिदेशक थे एस.एम. त्रिपाठी. 6 दिसंबर को त्रिपाठी जी वर्तमान मुख्यमंत्री कल्याण सिहं (Kalyan Singh) के सामने बदहवास से खड़े थे. कल्याण सिंह से उन्होंने एक सवाल पूछा था.. एक अनुमति मांगी थी और सीएम के उत्तर का इंतजार कर रहे थे. त्रिपाठी जी को नहीं मालूम था कि कुछ मिनट में मिलने वाला उत्तर, पूरे देश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीजेपी के कमल बीज को बहुत गहरा बोने वाला है. आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या था उस उत्तर में! तो एक बार फिर से आपको पांच कालीदास मार्ग यानि मुख्यमंत्री आवास के उस कक्ष में ले चलते हैं जहां कल्याण सिंह यूपी के दो बड़े दिग्गज नेतओं के साथ मौजूद थे. कल्याण सिहं दोपहर का भोजन कर चुके थे कि तभी एस एम त्रीपाठी अपने सवाल के साथ उनके पास आएं. उन्होंने छूटते ही कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश मांगा ताकि विवादित ढाचे को बचाया जा सके.

अब बारी कल्याण सिहं के उस उत्तर की थी जो आने वाले तीस सालों के देश और यूपी की राजनीति की दिशा बदलने वाली थी. क्या बहुत सारे कारसेवक मारे जाएंगे?, कल्याण सिंह ने पूछा. जैसे ही यूपी के पुलिस मुखिया ने हां में जवाब दिया कल्याण सिंह ने कहा, 'मैं आपको ये आदेश नहीं दे सकता.' उसके बाद क्या हुआ ये सारी दुनिया जानती है. आज इस घटना को मुड़कर देखने के पीछे कारण ये है कि तब बीजेपी राम मंदिर, हिंदुत्व, हिंदू छवि वाले यूपी के एक बड़े नेता के साथ शासन और सत्ता में आने वाले कल की चुनावी राजनीति की पटकथा लिख रही थी. तीस साल बाद एक बार फिर कुछ ऐसे ही विषय और व्यक्तित्व के साथ बीजेपी यूपी में आने वाले कल की अपनी राजनीतिक इबारत लिखने के मुहाने पर है. दो कालखंडों के बीच बीजेपी के यूपी की सत्ता में आने, जाने और बने रहने की पूरी कहानी है.
कल्याण सिंह यूपी का सबसे बड़ा चेहरा
कल्याण सिंह बीजेपी के पहले सीएम थे जो पहली बार 1991 में पूर्ण बहुमत वाली सरकार के मुखिया बने. 6 दिसंबर की इस घटना के बाद कल्याण सिंह को बहुत अच्छे से पता था क्या होने वाला है. सत्ता को रामलला की राह में त्याग देने की बात खुद कल्याण सिंह ने कई बार कही और वो यूपी में हिंदु हृदय सम्राट बन गए. लेकिन बीजेपी और संघ दोनों को पता था कि ये एक लंबी यात्रा की शुरूआत थी.
अलीगढ़ के अतरौली से निकला एक युवा लोध नेता देखते ही देखते यूपी का सबसे बड़ा नेता बन गया.. और देश के सबसे बड़े चेहरों में शामिल हो गया. 6 दिसंबर की घटना के बाद 1993 के चुनाव में बीजेपी भले ही सत्ता न हासिल कर पाई.. लेकिन उसकी सत्ता की दावेदारी बनी रही.. 1991 में बीजेपी की कल्याण सिंह सरकर के पास अपनी 221 सीटें थी. 1996 में तेरहवीं विधानसभा में बीजेपी के 173 विधायक पहुंचे. किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. 1995 में बीजेपी+बसपा का अनोखा गठजोड़ हुआ और सरकार बन गई.
'केंद्र में अटल, यूपी में कल्याण' था नारा
पहले 6 महीने मायावती और फिर बाद में सितंबर 1997 में कल्याण सिंह फिर से मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार सीएम की कुर्सी पर एक नेता नहीं एक हिंदू हृदय सम्राट बैठा था. एक महीने में ही मायावती ने समर्थन ले लिया और कल्याण सिंह अपने मुश्किल राजनीति दौर में प्रवेस कर गए. 19 अक्टूबर को माया ने समर्थन वापस लिया और दो दिन में ही कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने को कहा गया. बहुत गुणा-गणित करने के बाद जब 21 अक्टूबर को विधानसभा आहूत हुई, तब जो हुआ उसकी किसी ने कल्पना नहीं की. सदन में वोटिंग छोड़कर सब हुआ. लात-घूंसे, जूता-चप्पल, और माइक फेंका-फेंकी सबकुछ. लेकिन अंत में कल्याण सिंह ने बहुमत साबित करते हुए पक्ष में 222 विधायकों का समर्थन साबित कर दिया. लेकिन 1998 आते-आते कल्याण सिंह और बाजेपी के केंद्रीय नेताओं के रास्ते अलग होने लगे जिसने 90 के दशक में सत्ता की पहली कमल यात्रा पर विराम लगाना शुरू कर दिया. कल्याण सिंह के बाद दो मुख्य मंत्री बने- एक राम प्रकाश गुप्ता और उसके बाद राजनाथ सिंह.
लेकिन 90 के दशक में बीजेपी के जितने भी यूपी में मुख्यमंत्री रहे उनको लेकर एक खास बात है- वो ये कि कोई भी पांच साल तक सीएम नहीं रहा. 1991 में कल्याण सिंह 1 साल 165 दिन के लिए पहली बार सीएम रहे. 1997 में जब कल्याण सिंह सीएम बने तो वो पद पर 2 साल 52 दिन तक रहे. 1999 में राम प्रकाश गुप्ता 351 दिन के लिए यूपी के सीएम रहे. साल 2000 में राजनाथ सिंह 1 साल 131 दिन के लिए इस पद पर रहे. ना जाने कितनों के याद होगा केंद्र की राजनीति में अटल उदय के साथ यूपी में कल्याण सिंह का उदय हुआ और तब एक नारा था, केंद्र में अटल, यूपी में कल्याण.
क्या दोबारा सत्ता में लौट कर बीजेपी इतिहास बनाएगी
अब लौटते हैं आज के समय में यानि पहली बार बीजेपी के पूर्ण बहुमत वाले सीएम कल्याण सिंह के समय से 30 साल बाद बीजेपी के प्रचंड बहुमत वाले सीएम योगी आदित्यनाथ के समय में. बीजेपी के हिंदू छवि वाले नेता कल्याण सिंह के बाद योगी आदित्यनाथ दूसरे हिंदू छवि के नेता हैं जो यूपी की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ मौजूद हैं. साथ ही ये भी ध्यान देना होगा कि आज यूपी में ये विचार आम है कि केंद्र में मोदी और यूपी में योगी.
लेकिन 15 साल के सत्ता से वनवास के बाद योगी ने कल्याण सिंह को भी एक मामले में पीछे छोड़ दिया है. योगी यूपी के सीएम पद पर सबसे लंबे समय तक रहने वाले बीजेपी नेता बन गए हैं. 90 के दशक में और 2000 के दशक के वनवास से पहले बीजेपी के सत्ता में बने रहने के पीछे कल्याण सिंह की लोकप्रियता और राम मंदिर का मुद्दा बहुत बड़ा कारण थी. आज तीस साल बाद राम मंदिर का निमार्ण पूर्ण होने की तरफ है तो दूसरी ओर बीजेपी का चेहरा एक हिंदू छवि वाले नेता योगी आदित्यनाथ हैं.
कहने का मतलब ये है कि अगर तीन दशक पहले ये राजनीतिक कॉम्बिनेशन बीजेपी को यूपी की सत्ता के करीब ले आई… तो इस बात की भी संभावना प्रबल है कि एक बार फिर से योगी-मोदी की छवि और राम मंदिर निमार्ण का मुद्दा और इतिहास बना सकता है जो यूपी में बीजेपी के उदय के बाद कभी नहीं देखा गया. यानि सत्ता में लगातार दूसरी पारी.
केंद्र और राज्य दोनों जगह है प्रचंड बहुमत
लेकिन ये भी याद रखना होगा कि बीजेपी के पास राम मंदिर का मुद्दा शायद अपने आखिरी दौर में है और जिस राजनीतिक बीज को कल्याण सिंह के काल में बोया गया वो वट वृक्ष बन चुका है. जब मोदी सबका साथ सबका विकास का नारा देकर आगे बढ़ते हैं तो इसका अर्थ ये है कि योगी को भी इस लाइन पर काम करते हुए अपनी छवि और अपने वोटर दोनों को बनाए और बचाए रखना होगा. कल्याण सिंह के समय में कमल की सत्ता यात्रा राम मंदिर और हिंदूवादी छवि के ईर्दगिर्द ही थी लेकिन योगी की यात्रा अब इससे आगे बढ़ने के मुहाने पर है.
साथ ही एक बड़ा अंतर इन तीस सालों में ये आया है कि रामलला के रथ पर सवार 90 के दशक की बीजेपी जोड़-तोड़ और गठबंधन वाली सत्ता तक पहुंची थी लेकिन आज मोदी और योगी जनता के दिए प्रचंड बहुमत के रथ पर सवार हैं. आने वाले 2022 और 2024 में कमल की सत्ता यात्रा के बीच राम मंदिर का पूर्ण होना एक युग के अंत और नए युग की शुरूआत होगी. शायद 2024 के बाद राम मंदिर वास्तव में बीजेपी के लिए एक सांस्कृति और भावनात्मक मुद्दे के रूप में रहेगी क्योंकि इस मुद्दे की राजनीति यात्रा करने वाले बीजेपी के सभी नेता अपनी यात्राएं तब पूरी कर चुके होंगे. 90 के दशक का नारा था- राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे. लेकिन 2022 के बाद ये बदल जाएगा- राम लला हम आ गए, मंदिर वहीं बना गए.


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