सम्पादकीय

मानव जीवन के लिए योग की उपादेयता

Rani Sahu
11 Jun 2023 6:58 PM GMT
मानव जीवन के लिए योग की उपादेयता
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आज सम्पूर्ण विश्व में स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा अवदान यदि कोई दे रहा है तो वह योग है। इसकी चर्चा और महत्ता के साथ प्रायोगिक ढंग से योग की उपादेयता को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस दर्शता है। प्रतिवर्ष 21 जून को यह पावन दिवस विश्वभर में मनाया जाता है। 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग से सम्बन्धित एक प्रभावशाली भाषण के साथ भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी नींव रखी थी। इसी का प्रतिफल है कि प्रतिवर्ष 21 जून को वर्ष 2015 से अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जा रहा है। अपने गौरवमयी वांग्मय की सौरभ को सम्पूर्ण विश्व में प्रचारित-प्रसारित करना और इसे विश्व उत्सव के रूप में रूपायित करना हम सभी के लिए सम्मान का विषय है। इसी आधार को समक्ष रखते हुए केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला भी योग की प्रासंगिकता के लिए कटिबद्ध है। यह सत्य है कि संसार के सभी मनुष्य शान्त और मैत्रीवत्त भाव से अपने जीवन को व्यतीत करना चाहते हैं। आज किसी भी राष्ट्र और समाज का व्यक्ति जो भी कार्य कर रहा है, उसका उद्देश्य स्वयं को सुखी रखना रहा है।
यह भी सत्य है कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति इस बात को मानता है कि सम्पूर्ण विश्व में शान्ति स्थापित होनी चाहिए। यह शान्ति कैसे स्थापित हो? सभी राष्ट्र अपनी-अपनी चिन्तनसरणी से उपाय तलाश करने का प्रयत्न करते हैं। अनेक अवधारणाओं द्वारा सभी मतैक्य की सम्भावना समक्ष नहीं आती। यह कहना समीचीन है कि एक रास्ता है जो समग्र रूप में परिपूर्ण है जिससे समस्त विश्व की मानवता निर्भय होकर सुख, शान्ति और आनन्द की अनुभूति प्राप्त कर सकती है, वह है योग। भारत राष्ट्र के लिए यह गौरव का विषय है कि महर्षि पतंजलि ने भारतीय वांग्मय में जिस दिव्य औषधि का उन्नयन किया, जिससे शारीरिक-मानसिक और आत्मिक शान्ति का प्रणयन हो वह है योग, जिसे अष्टांग योग से भी अभिहित किया गया है। यह एक ऐसा आधार है जिससे व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर, शारीरिक और मानसिक शान्ति स्थापित की जा सकती है। हमारे शास्त्रों में योग को समाधि का वाचक भी माना गया है।
जिसमें मन को भली-भान्ति समाहित किया जा सके। योग भारत भूमि की ऐसी अपरिमेय सम्पत्ति है जो अनवरत अखण्ड, अटूट और नवीन दिशा का सन्धान करने वाली है। व्यक्तित्व के निर्णायक तत्वों का निर्माण भी योग से ही सम्भव है जिससे व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, धैर्य और अनुशासन का प्रादुर्भाव होता है। अनुशासन व्यक्तित्व निर्मिती करता है तथा व्यक्तित्व से चरित्र और चरित्र से नवीन समाज का सन्धान होता है। वशिष्ठ संहिता का अवलोकन किया जाए तो वहां मन को शान्त करने की प्रक्रिया को योग कहा गया है। योग दर्शन में चित्त की वृत्तियों के निग्रह को योग कहा है। उपनिषदों में कहा गया है कि जब पांच इन्द्रियां एकाग्र हो जाती हैं, ऐसी स्थिति में बुद्धि एकात्मकता को लिए स्थिर हो जाती है, वही अवस्था योग है। व्यावहारिक स्तर पर योग शरीर, मन और भावनाओं का संतुलन है। भावनाओं का सम्बन्ध हमारी मानसिक वृत्तियों से है। वृत्तियां जब निरुद्ध होंगी तो मानसिक रूप से जीवन स्वस्थ होग, यही योग का मूल उत्स है।
भारतीय संस्कृति में योग आदि से उच्चतर शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक व्यक्तित्व के निर्माण के लिए अग्रणी रहा है। भौतिक दृष्टि से भी देखें तो शरीर को स्वस्थ रखने का मूल आधार भी योग है, जिससे मानसिक शक्ति का विकास, रचनात्मकता का विकास, तनाव से मुक्ति, प्रकृति विरोधी जीवनशैली का सुधार, उत्तम शारीरिक क्षमता और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। आज व्यक्ति जिस तीव्रता से अपनी जीवन यात्रा व्यतीत कर रहा है इस जीवन शैली में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है। हमारे जीवन की व्यवस्था पूर्णत: बदल गयी है। स्वास्थ्य और खानपान का ध्यान न रखने के कारण मनुष्य का जीवन तनाव और अवसाद से ग्रसित हो रहा है। ऐसी अवस्था में योग ही एक संजीवनी है जो मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य और तनावमुक्ति दे सकता है। इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति शेष नहीं बचा है जो मानसिक रूप में शान्ति के साथ हो, मन की शान्ति के लिए योग ही रामबाण हो सकता है, यदि हमारा जीवन का शिष्टाचार उपयुक्त हो। दुखों की निवृत्ति के लिए भी योग जीवन के लिए अतुल्य औषधि है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम धारणा, ध्यान, प्रत्याहार, समाधि जीवन की आनन्दानुभूति के मुख्य अवयव हैं जिन्हें हम योग के आठ अंग भी कहते हैं। जीवन शक्ति की ऊर्जा का नियंत्रण प्राणायाम है।
योग में इसका विशेष महत्त्व है। अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भ्रामरी प्राणायाम उक्त ऊर्जा को संगृहीत करते हैं। यही संग्रहण मानसिक रोगों का रेचन करता है। महर्षि पतंजलि ने अनेक ऐसे अभ्यास बतलाए हैं जो विश्व मानवता को असीम शान्ति प्रदान कर सकते हैं। भारतवर्ष की यह अमूल्य निधि स्व की नहीं पर की चिन्ता करती है। आध्यात्मिक उन्नति का मुख्य आधार भी योग है जिसे भारतीय दर्शन प्रमुखता से अंगीकार करता है। इस प्रकार विश्व मानवता सुखी, स्वस्थ और आनन्द से अपने जीवन का यापन करती रहे, यही उपादेयता योग की है। भारत इस औषधि को प्रसारित करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है जिसमें व्यक्ति से परमेष्टि, आत्मा से विश्वात्मा, व्यष्टि से समष्टि का पाथेय प्रशस्त होता है। यही कारण है कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्रोतस्विनी इतनी पावन और सशक्त है कि संसार के सभी अग्रणी राष्ट्र भारत को देख रहे हैं। इसका मूल आधार हमारा वांग्मय और दर्शन है, वे महर्षि, ऋषि हैं जिन्होंने अपनी साधना के द्वारा विश्व को ज्ञान से आलोकित किया है। योग की खोज भारत में हुई और आज इसे पूरे विश्व ने अपना लिया है, यह भारत के लिए गौरव की बात है।
डा. इंद्र सिंह ठाकुर
शिक्षाविद
By: divyahimachal
Rani Sahu

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