- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- 'अग्निपथ' का प्रयोग

x
‘अग्निपथ’ योजना के तहत वायुसेना में 3500 सैनिकों की भर्ती होनी है, लेकिन करीब 7.5 लाख आवेदन किए गए हैं
सोर्स- divyahimachal
'अग्निपथ' योजना के तहत वायुसेना में 3500 सैनिकों की भर्ती होनी है, लेकिन करीब 7.5 लाख आवेदन किए गए हैं। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। क्या यह योजना एक सफल प्रयोग साबित हो रही है? क्या सेना में भर्ती को लेकर युवाओं के सवालों के जवाब मिल रहे हैं? 'अग्निपथ' पर पूर्व सैन्य जनरलों की जो आपत्तियां थीं, आशंकाएं थीं, देश की सुरक्षा को लेकर चिंताएं थीं, क्या वे संबोधित हो रही हैं? अभी तो वायुसेना और नौसेना में भर्ती की अधिसूचनाएं जारी की गई थीं। अभी तो थलसेना की, विभिन्न श्रेणियों में, 40000 भर्तियों की अधिसूचना जारी की जानी है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उन भर्तियों के लिए जितने आवेदन किए जाएंगे, उन्हें देखकर देश दांतों तले उंगली दबा सकता है। सवाल फिर किया जा सकता है कि क्या 'अग्निपथ' योजना से तमाम युवा संतुष्ट हो चुके हैं? अब कोई तनाव या आक्रोश शेष नहीं है? दरअसल किसी भी योजना में आवेदनों के मद्देनजर सफलता या नाकामी नहीं आंकी जा सकती। उसके कई कारण हो सकते हैं। गौरतलब यह है कि देश में 15-29 वर्ष के आयु-वर्ग में करीब 12.9 फीसदी युवा बेरोज़गार हैं। कामकाजी आबादी में करीब 43 फीसदी लोगों के पास नौकरी है, जबकि बांग्लादेश में यह औसत करीब 54 फीसदी है। भारत और बांग्लादेश की आर्थिक और विकासात्मक तुलना समझी जा सकती है। भारत विश्व की सबसे बड़ी छठी अर्थव्यवस्था वाला देश माना जाता है, लेकिन बेरोज़गारी का आलम यह है कि चपरासी की नौकरी के लिए बी.टेक, एम.टेक., स्नातकोत्तर और पीएचडी आदि उपाधि प्राप्त आवेदक भी सामने आते रहे हैं। संभव है कि बेरोज़गारी के मद्देनजर लाखों युवाओं ने 'अग्निपथ' के लिए आवेदन किया हो! संभव है कि बेरोज़गार, निठल्ला घूमने के बजाय 4 साल की नौकरी और 11.71 लाख रुपए की जमा पूंजी युवाओं के लिए बेहतर विकल्प हो! कमोबेश 4 साल की नौकरी के बाद वे 'अग्निवीर' कहे जाएंगे और अर्द्धसैन्य बलों, पुलिस और कॉरपोरेट कंपनियों में उन्हें नौकरियां मिल सकेंगी। चार साल की नौकरी के बाद युवाओं के जो सवाल थे, वे आज भी हैं।
सरकार ने चार साल की सैन्य-सेवा के बाद नौकरियों, स्व रोज़गार के लिए ऋण और अन्य सुविधाएं मुहैया कराने का आश्वासन दिया है। अर्द्धसैन्य बलों में ऐसी नौकरियों के लिए आरक्षण के प्रावधान पहले से हैं, लेकिन नौकरियों का औसत नगण्य है। सरकार के आश्वासन या प्रशासनिक आदेश बेमानी हैं, लिहाजा सरकार को गज़ट अधिसूचना जारी कर 'अग्निवीरों' की बाद की स्थिति को मजबूत करना चाहिए। बेशक सेना ऐसे जवानों को 'सैनिक' का नाम न दे, लेकिन अवसर आएगा, तो वे भी देश की सुरक्षा के लिए लड़ेंगे, 'शहीद' हो सकते हैं या स्थायी तौर पर विकलांग हो सकते हैं। बेशक ऐसी स्थितियों के लिए सरकार ने एक करोड़ रुपए तक का बीमा तय किया है, लेकिन जवानों के परिवारों के लिए भी कुछ पेंशन सरीखी आर्थिक मदद की जानी चाहिए। फिलहाल युवाओं का फोकस 'अग्निपथ' के जरिए सेना में भर्ती होने पर है, क्योंकि 25 फीसदी पात्र और योग्य 'अग्निवीरों' को सेना में स्थायी नौकरी भी मिलेगी। सेना का पैकेज और पेंशन भी मिलेंगे। 'अग्निपथ' फिलहाल एक प्रयोग ही है। उसके प्रावधानों में बदलाव किए जा रहे हैं। यह मामला सर्वोच्च अदालत में भी विचाराधीन है, क्योंकि लाखों युवा ऐसे हैं, जिन्होंने शारीरिक और चिकित्सा संबंधी परीक्षाएं पास कर ली हैं। कोरोना-काल के कारण बीते 2-3 सालों में भर्तियां नहीं हो पाई हैं। ऐसे युवाओं की लिखित परीक्षा शेष थी, लेकिन 'अग्निपथ' योजना की घोषणा के साथ ही सभी को खारिज कर दिया गया। तब जो युवा उम्र के लिहाज से पात्र थे, आज वे अयोग्य हैं। इसमें युवाओं का दोष क्या है? सेना उनके लिए अलग व्यवस्था कर सकती है। बिल्कुल खारिज करने का मतलब यह है कि इतने लाख युवाओं को बेरोज़गारों की जमात में शामिल कर दिया गया।

Rani Sahu
Next Story