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अमेरिका- चीन में सुलह
विश्लेषकों की राय रही है कि अमेरिका और चीन के बीच सचमुच सैनिक टकराव हुआ, तो वह ताइवान के सवाल पर ही होगा। और चूंकि अमेरिका ने ताइवान के मसले पर चीन की भावनाओं के मुताबिक बात कह दी, तो उससे संयम के साथ मेल-मिलाप की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का रास्ता खुल गया है।
महीने भर पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अचानक चीन के राष्ट्रपति के शी जिनपिंग को फोन किया था। अब ये साफ है कि उनकी वो पहल एक ठोस समझ के सथ की गई थी। उसके बाद से चले घटनाक्रम का सबसे ताजा नतीजा बुधवार को स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में हुई अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान और चीन के सर्वोच्च राजनयिक यांग जिशी की बातचीत है। इस बातचीत के कार्यक्रम को गोपनीय रखा गया। जाहिर है, उसकी वजह हाल का इतिहास है। बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद इसके पहले हुईं तमाम वार्ताएं कड़वाहट के साथ खत्म हुई थीँ। बहरहाल, सुलिवान- जिशी की वार्ता के साथ ऐसा नहीं हुआ। खबरों के मुताबिक दोनों प्रतिनिधियों ने अपनी बातचीत में संयम बरता। बाइडेन ने जब शी को फोन किया था, तब उन्होंने साफ कहा था कि अमेरिका वन चाइना नीति पर कायम है। यानी उसका ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता देने का कोई इरादा नहीं है। यह बात सुलिवान ने भी दोहराई। तमाम विश्लेषकों की राय रही है कि अगर अमेरिका और चीन के बीच सचमुच सैनिक टकराव हुआ, तो वह ताइवान के सवाल पर ही होगा।
और चूंकि अमेरिका ने ताइवान के मसले पर चीन की भावनाओं के मुताबिक बात कह दी, तो उससे संयम के साथ मेल-मिलाप की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का रास्ता खुल गया है। इसी हफ्ते अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन टाय ने एलान किया कि वे चीन के साथ खुले दिमाग से व्यापार वार्ता शुरू करने जा रही हैं। सुलिवान- यांग की वार्ता के बाद बताया गया कि इसी साल बाइडेन और शी के बीच शिखर वार्ता होगी। मुमकिन है कि ये बातचीत वर्चुअल माध्यम से हो। तो कुल संकेत यह है कि इन दोनों बड़ी ताकतों ने वो प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनकी प्रतिस्पर्धा टकराव में ना तब्दील हो। यह एक बड़ा घटनाक्रम है। लेकिन इससे भारत क्या सबक लेगा? अमेरिकी खेमे में शामिल होने की जल्दबाजी और बेसब्री से क्या हासिल हुआ, अब ये सवाल सामने है। बेशक ठोस हालात ऐसे हैं, जिनमें चीन और अमेरिका के संबंध पहले जैसे शायद नहीं हो पाएंगे। इसके बावजूद वे तनाव को नियंत्रण में रखने का रास्ता जरूर ढूंढ लेंगे। इन हालात में भारत की नीति क्या होगी, अब ये गंभीर मंथन का विषय है।
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