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शहरी मनरेगा स्थानीय और प्रवासी मजदूरों के लिए संजीवनी है
शहरी मनरेगा स्थानीय और प्रवासी मजदूरों के लिए संजीवनी है। कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन ने सरकारी नीतियों में बदलाव करने के लिए और सोचने पर मजबूर कर दिया है। जब देश में संपूर्ण लॉकडाउन हुआ था, तब शहरी प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी पर गहरा संकट आ गया था। इसका कारण था, इनके लिए सरकारों की तरफ से कोई भी रोजी-रोटी का इंतजाम न होना। मनरेगा के तहत गरीब-मजबूर लोगों के लिए गांवों में रोजगार प्राप्त करना आसान है क्योंकि वहां खेतीबाड़ी और दूसरे छोटे-छोटे काम हैं। लेकिन शहरों में मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराना सरकारों के लिए टेढ़ी खीर है। फिर भी सरकारों को शहरी मनरेगा के लिए रुचि दिखाना जरूरी है क्योंकि इससे स्थानीय गरीब लोगों और प्रवासी मजदूरों को लाभ मिल सकेगा।
-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा
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