सम्पादकीय

यूपीएससी : सिविल सेवा में छोटे शहरों की धमक, रोजमर्रा के जीवन में बदलाव लाने की गुंजाइश

Neha Dani
8 Jun 2022 1:46 AM GMT
यूपीएससी : सिविल सेवा में छोटे शहरों की धमक, रोजमर्रा के जीवन में बदलाव लाने की गुंजाइश
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जो समाज के जरूरतमंद वर्गों की शिकायतों के बेहतर निवारण में मदद करेगा।

इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि सिविल सेवा के अधिकारी केंद्र एवं राज्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह सच्चाई तबसे प्रचलित है, जब 19वीं सदी में इसकी स्थापना की गई थी और इसे आईएएस के बजाय आईसीएस कहा जाता था। लॉर्ड कार्नवालिस को आधुनिक भारतीय सिविल सेवा का जनक कहा जाता है। अंग्रेज आईसीएस को भारतीय प्रशासन का स्टील फ्रेम कहते थे। वर्ष 1924 में यूपीएससी की स्थापना की गई और उसे इस प्रतिष्ठित सेवा के अधिकारियों के चयन का काम सौंपा गया।

यदि कोई यह मानता है कि केंद्र और राज्यों में नौकरशाही का शासन नहीं है, तो वह गलत है, इसे रोजमर्रा के जीवन में देखा जा सकता है। किसी भी शासन की सफलता सिविल सेवा के अधिकारियों के संचालन पर निर्भर करती है। यह ब्रिटिश राज से हमें विरासत में मिली है, जो आज भी बदली नहीं है। यह एक तथ्य है कि अधिकांश राजनेता, जो शासन में होते हैं, उनके पास अनुभव, निर्णय लेने की क्षमता, फाइल कार्य, तकनीकी, नियमों और विनियमों आदि का ज्ञान नहीं हो सकता है, इसलिए नौकरशाह उनके मार्गदर्शक बन जाते हैं, जो उन पर उनकी निर्भरता बढ़ाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी शासन तभी सफल हो सकता है, जब उसके पास प्रतिबद्ध, समर्पित और ईमानदार आईएएस अधिकारी हों, यदि ऐसा नहीं है, तो विफलता निश्चित है। अभी संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षा, 2021 के अंतिम परिणामों में शीर्ष स्थान पर महिलाएं ही चुनी गई हैं, जिनके नाम क्रमशः श्रुति शर्मा, अंकिता अग्रवाल और गामिनी सिंगला हैं। वर्ष 2021 में परीक्षा उतीर्ण करने वाले कुल उम्मीदवारों में 508 पुरुष एवं 177 महिलाएं हैं।
वर्ष 2011 से सिविल सेवा योग्यता परीक्षा की शुरुआत, प्रचुर प्रतिभा, कठिन मेहनत, महत्वाकांक्षा, प्रतिबद्धता एवं उत्साह के कारण बड़ी संख्या में छोटे शहरों एवं ग्रामीण इलाकों के गैर-अंग्रेजी भाषी उम्मीदवार अंतिम रूप से चयनित होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गैर-अंग्रेजी भाषी विश्वविद्यालयों और छोटे शहरों के उम्मीदवारों की सफलता सिविल सेवा परीक्षाओं में एक स्थायी विशेषता बन गई है, हालांकि कई अंतर्निहित कमजोरियों और वंचना के कारण यह बहुत उत्साहजनक नहीं है।
एक आकलन के अनुसार, गैर-अंग्रेजी पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की संख्या 2008 में 48.4 प्रतिशत थी, जो घटकर 2017 में केवल 8.7 प्रतिशत रह गई, लेकिन यूपीएससी अधिकारियों ने इन संख्याओं की पुष्टि करने से इनकार कर दिया। विशेषज्ञों और शिक्षाविदों का मानना है कि यूपीएससी को अपने चुने गए उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि का विश्लेषण करें, जिसमें क्षेत्रीय, भाषायी और शैक्षिक क्षमता शामिल है। उन्हें लगता है कि यह आवश्यक है, क्योंकि एक तरफ सरकार सिविल सेवाओं के भीतर क्षेत्रगत विशेषज्ञता पर जोर दे रही है, जबकि दूसरी तरफ यह समान पृष्ठभूमि से इंजीनियरों या डॉक्टरों को लेती रहती है।
केंद्र सरकार राज्य सरकारों को राज्य स्तरीय लोक सेवा परीक्षा के लिए नए पाठ्यक्रम शुरू करने की सलाह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जो सिविल सेवाओं के अनुरूप है, जिससे आईएएस उम्मीदवारों की बुनियाद तैयार की जा सकती है, जो आत्मविश्वास के अलावा उन्हें बेहतर ढंग से तैयार करेंगे। अब तक राज्य सरकारों ने आईएस पैटर्न नहीं अपनाया है, जिससे करोड़ों वैसे छात्र नौकरी से वंचित रह जाते हैं, जिन्हें पुराने पैटर्न के आधार पर कई वर्षों की तैयारी को छोड़ना पड़ता है, क्योंकि यह अगले स्तर की सिविल सेवा परीक्षा के लिए पूरी तरह से अप्रासंगिक है।
हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) के पूर्व अध्यक्ष और भारत में राज्य लोक सेवाओं के सभी अध्यक्षों की स्थायी समिति के पूर्व अध्यक्ष के रूप में, इस लेखक को हिमाचल प्रशासनिक सेवा पाठ्यक्रम को आईएएस पैटर्न में तब्दील करने का अवसर मिला, जिसने छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों की काफी मदद की। भारत के कई राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा उस पैटर्न को लागू किया जा रहा है, क्योंकि यह सिविल सेवाओं की नींव बनाने में बहुत योगदान दे रहा है, खासकर तब, जब विभिन्न राज्य आयोगों के पाठ्यक्रम सिविल सेवाओं की तैयारी के लिए अप्रासंगिक थे।
दूसरी बात, इस लेखक ने अंग्रेजी या हिंदी में साक्षात्कार का विकल्प पेश किया, जिसने ग्रामीण उम्मीदवारों के सिविल सेवाओं में सफलता अनुपात में वृद्धि हुई। ऐसा ही उन राज्यों में भी देखा गया, जो एचपीएससी का अनुसरण करते थे। तीसरी बात, आंकड़ों से पता चला कि आईएएस परीक्षा में सफलता उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता या शैक्षणिक पृष्ठभूमि पर निर्भर नहीं करती है। यह काफी हद तक एकांगी निष्ठा, समर्पण और अनुशासन के साथ यूपीएससी की तैयारी पर निर्भर करती है।
अधिकतम अभ्यर्थी उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली आदि राज्यों से चुने जाते हैं और तीन साल के आंकड़े से पता चलता है कि चयनित उम्मीदवारों में से 40 प्रतिशत इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले थे, क्योंकि उन्हें अच्छे अंक दिलाने वाले विषयों का चयन करने में फायदा होता है। यूपीएससी के विविधीकरण के प्रयासों के बावजूद, देश की नई सिविल सेवाओं में अभी इंजीनियरों का हिस्सा 60 प्रतिशत है। यूपीएससी के पूर्व अध्यक्षों का कहना है कि अंग्रेजी माध्यम और निजी स्कूलों की पृष्ठभूमि न होना छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों के लिए आईएएस अधिकारी बनने में बाधा नहीं बना है, अन्यथा इसे पहले बड़ा कलंक माना जाता रहा है।
उन्हें लगता है कि अमीर और कुलीन वर्ग के उम्मीदवारों के कोचिंग करने का एक फायदा है, लेकिन समाज के अन्य समूहों के उम्मीदवारों की प्रतिभा और कड़ी मेहनत के कारण अंतर कम हो गया है। हमारे लोकतंत्र के अन्य भ्रष्ट स्तंभों की तरह नौकरशाही भी स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट हो गई है। हालांकि कई ईमानदार अधिकारी हैं, लेकिन कई घोटाले सामने आए हैं, जो राजनीतिक आकाओं के साथ आईएएस अधिकारियों की संलिप्तता साबित करते हैं। विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा के लिए समर्पण और प्रतिबद्धता की भावना पैदा करने के लिए युवा आईएएस अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण की सख्त आवश्यकता है, जो समाज के जरूरतमंद वर्गों की शिकायतों के बेहतर निवारण में मदद करेगा।

सोर्स: अमर उजाला

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