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- हंगामे का सत्र
संसद का पूरा मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। उसे दो दिन पहले ही समाप्त करना पड़ा। यों इस सत्र में करीब बीस विधेयक पारित हुए, पर अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण से संबंधित विधेयक के अलावा किसी पर चर्चा नहीं हो सकी। सत्तापक्ष इसका दोष विपक्ष पर मढ़ रहा है। सरकार के आठ मंत्रियों ने प्रेस कान्फ्रेंस करके विपक्षी नेताओं पर आरोप लगाए कि उन्होंने सदन का कामकाज सुचारु रूप से नहीं होने दिया। उन्होंने सदन में पर्चे फेंके, मेज पर चढ़ कर अध्यक्ष की तरफ नियमावली पुस्तिका फेंकी और राज्यसभा में हिंसा की। उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। उधर विपक्षी पार्टियों ने विरोध प्रदर्शन कर आरोप लगाया कि सरकार ने सदन में उन्हें अपना पक्ष नहीं रखने दिया। वे कृषि कानून, महंगाई, बेरोजगारी और पेगासस जासूसी मामले में चर्चा चाहते थे, पर सरकार ने इन मुद्दों पर बातचीत नहीं होने दी। यह निस्संदेह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता कि जिन मुद्दों पर संसद के भीतर चर्चा होनी चाहिए, उन्हें लेकर विपक्ष को सड़क पर उतरना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री ने सत्र शुरू होने से पहले भरोसा दिलाया था कि सरकार विपक्ष के हर सवाल का जवाब देने को तैयार है। सदन को सुचारु रूप से चलने देना चाहिए। मगर इसे लेकर सरकार संजीदा नहीं दिखी।