सम्पादकीय

UP Election: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीन चरणों के मतदान के बाद क्या हैं रुझान?

Gulabi
22 Feb 2022 5:15 AM GMT
UP Election: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तीन चरणों के मतदान के बाद क्या हैं रुझान?
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव
यूसुफ़ अंसारी।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में रविवार को तीसरे चरण के मतदान के बाद 172 सीटों पर सत्ता के लिए लड़ रही पार्टियों और उनके उम्मीदवारों का भाग्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में बंद हो गया है. 2017 के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में तीन चरणों की इन 172 सीटों में से बीजेपी को 140 सीटें मिली थीं. केवल 32 सीटें ही विपक्ष को मिली थीं. इस बार बीजेपी (BJP) को भारी नुकसान की आशंका जताई जा रही है. वहीं सपा गठबंधन को पहले चरणों की तरह बढ़त मिलने की चर्चा है. तीसरे चरण में बीजेपी और सपा गठबंधन के बीच करो या मरो की लड़ाई रही है. माना जा रहा है कि तीन चरणों में भारी पड़ने वाले को ही सत्ता की चाबी मिलेगी.
पहले दो चरणों की तरह तीसरे चरण में भी पिछले चुनाव के मुकाबले क़रीब दो प्रतिशत कम वोट पड़े हैं. लेकिन यादव बहुल सीटों पर औसत से दो प्रतिशत तक ज़्यादा तक मतदान की खबरें है. इसे सपा गठबंधन के हक़ में माना जा रहा है. पहले दो चरणों के मतदान के दौरान मुस्लिम बहुल सीटों पर औसत से ज्यादा मतदान की खबरें आईं थीं. ये भी माना जा रहा है कि मुसलमानों ने बीजेपी को हराने के मक़सद से सपा गठबंधन के हक़ में जमकर वोटिंग की है. शायद यही वजह थी कि अखिलेश यादव ने दो चरणों के बाद सीटों के शतक लगाने का दावा कर दिया था. लिहाज़ा तीसरे चरण में सपा गठबंधन की बढ़त रोकने के लिए बीजेपी ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है. वहीं सपा ने अपने ही गढ़ में अपनी साख़ बचाने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी है. मुलायम सिंह को शिवपाल और अखिलेश को एक साथ लाकर परिवार की एकता का सार्वजनिक प्रदर्शन करना पड़ा.
औसत से ज्यादा वोटिंग सत्ताधारी दल के लिए खतरे की घंटी
रविवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर 59.47 फीसदी वोट पड़े. जबकि 'यादव लैंड' कहे जाने वाले 8 ज़िलों की कुल 29 में से 23 सीटों पर औसत से 2 फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं. यानि इन सीटों पर औसतन करीब 60 फीसदी मतदान हुआ है. अखिलेश यादव की सीट करहल पर 62.32 और शिवपाल की जसवंतनगर सीट पर करीब 60 फीसदी वोट पड़े हैं.
इन 59 सीटों में से 23 सीटों पर 30 से 50 फीसदी तक यादव मतदाता हैं. इनमें इटावा, फिरोजाबाद और मैनपुरी के आसपास के जिलों की विधानसभाएं हैं. 59 सीटों में 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. सबसे ज़्यादा महरौनी सीट पर 67.5 फीसदी वोट पड़ें हैं. पिछले चुनाव में यहां 74.16 फीसदी वोट पड़े थे. सबसे कम 47 फीसदी वोटिंग आर्य नगर में हुई है. पिछले चुनाव में ललितपुर में 52.58 फीसदी वोटिंग हुई थी. ऐसे में पिछले दो चुनावों के मतदान और चुनावी नतीजों के विश्लेषण से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि तीसरे चरण में कौन किस पर कितना भारी पड़ रहा है. 2017 में इन 59 सीटों पर 62.21 फीसदी मतदान हुआ था, यानि इस बार करीब 2 फीसदी कम वोटिंग हुई है. 2012 में इन 59 सीटों पर 59.79 फीसदी वोटिंग हुई थी.
2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में करीब 2.42 फीसदी का इजाफा हुआ था. पिछले 3 चुनावों में इन 59 सीटों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि वोट प्रतिशत बढ़ने पर उस समय के विपक्षी दलों को फायदा हुआ. 2012 में सपा को 37 और 2017 में भाजपा को यहां 41 सीटों का फायदा हुआ. इस बार इन 59 सीटों पर 2 फीसदी वोटिंग घटी है. इस हिसाब से देखें तो बीजेपी को फायदा होना चाहिए. लेकिन यादव बहुल सीटों पर औसत से दो फीसदी ज्यादा मतदान की वजह से सपा गठबंधन को फायदा होता दिख रहा है.
2017 में बदला 2012 का गणित
पिछले चुनावों के नतीजे बताते हैं कि सत्ता पर कब्ज़ा करने वाली पार्टी का ही इन 59 सीटों पर भी दबदबा रहा है. सत्ता पर पकड़ ढीली होने पर यहां सत्ताधारी पार्टी को जबरदस्त नुकसान हुआ है. 2012 में यूपी में सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. तब उसे इन 59 में से 37 सीटें मिली थीं. 2017 में बीजेपी को इन 59 सीटों में से 49 पर जीत मिली थी, जबकि 2012 में इन 59 सीटों में से उसे महज 8 सीटें मिली थीं. यानि 2017 में उसे 41 सीटों का फायदा हुआ था. सपा को 2012 में इन 59 सीटों में से 37 सीटें मिली थीं. जबकि 2017 में उसे महज 8 सीटें मिलीं. यानि 29 सीटों का नुकसान हुआ. 2017 में बसपा को एक और कांग्रेस को एक सीट मिली. बसपा को 9 और कांग्रेस को 2 सीटों का नुकसान हुआ.
2012 में बदला 2007 का गणित
2007 में तीसरे चरण वाली इन 59 सीटों पर बसपा का दबदबा रहा था. लेकिन 2012 में क़रीब 10 फीसदी वोटिंग में इजाफा हुआ तो यहां का गणित एकदम बदल गया. बसपा को 18 सीटों का नुकसान और सपा को 20 सीटों का फायदा हुआ था. दरअसल 2007 में इन 59 सीटों पर क़रीब 50 फीसदी वोटिंग हुई थी. तब बसपा को 28 सीटों पर जीत मिली थी. उसकी पूर्ण बहुमत से सरकार बनी थी. सपा को 17 और भाजपा को 7 सीटें मिली थीं. लेकिन 2012 में इन्हीं 59 सीटों पर 59.79 फीसदी वोटिंग हुई थी. इस बार वोटिंग में तकरीबन 10 फीसदी का इजाफा हुआ. इसका फायदा तब के मुख्य विपक्षी दल सपा को हुआ था. सपा को यहां 59 में से 37 सीटों पर जीत मिली, यानि 20 सीटों का फायदा हुआ. वहीं बसपा को 18 सीटों का नुकसान हुआ.
क्या 2022 में बदलेगा 2017 का गणित?
मतदान के बाद चुनाव विश्लेषक ये अनुमान लगाने में जुटे हैं कि क्या 2022 में इन 59 सीटों का गणित बदलेगा? अगर बदलेगा तो कितना बदलेगा? दरअसल तीसरे चरण में मुलायम सिंह के परिवार के साथ ही समाजवादी पार्टी और व्यक्तिगत रूप स अखिलेश यादव की साख़ दांव पर लगी है. वो आजमगढ़ से लोकसभा सदस्य हैं लेकिन मैनपुरी की करहल सीट से वो पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने उन्हें हराने के लिए मोदी सरकार में मंत्री एसपी सिंह बघेल को उनके सामने चुनाव मैदान में उतारा है. चुनाव में जहां अखिलेश की अग्निपरीक्षा होनी है, वहीं बीजेपी के सामने अखिलेश को उनके गढ़ में पटखनी देने की चुनौती है. ज्यादातर चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि पिछले चुनाव में हिदुंत्व और मोदी लहर में भावनात्मक रूप से बीजेपी की तरफ गया यादव इस चुनाव में घर वापसी कर गया है. लिहाज़ा बीजेपी के मुकाबले सपा गठबंधन का पलड़ा भारी लगता है.
'यादव लैंड' के साथ बुंलेदखंड का भी बदला मिज़ाज
तीसरे चरण का चुनाव यादव बेल्ट, कानपुर क्षेत्र और बुंदेलखंड के पांच ज़िलों की सीटों पर हुआ है. तीसरे चरण में यादव वोट अहम है. बृज में कासगंज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, और हाथरस की 19 सीटें हैं. अवध में 6 जिलों कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 सीटें हैं. बुंदेलखंड क्षेत्र में 5 जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा में 13 सीटों पर चुनाव हुए हैं. पिछले चुनाव में यादव लैंड वाले बृज और अवध क्षेत्र में बीजेपी के गैर-यादव ओबीसी कार्ड का दांव सफल रहा था. ये सपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था. इसके बावजूद सपा सिर्फ़ आठ सीटें ही जीत सकी थी. वहीं, बुंदेलखंड के इलाके में बीजेपी ने दलित और ओबीसी जातियों के साथ-साथ सवर्णों के वोटों के दम पर दबदबा बनाया था. यहां बीजपी ने कभी बसपा का मजबूत क़िला कहे जाने वाले इलाके में भी भगवा फहरा दिया था. लेकिन इस बार यादवों की सपा में घर वापसी और ग़ैर यादव पिछड़े वर्गों के बीजेपी से मोहभंग की वजह से मिजाज बदला हुआ लगता है.
दलित-मुस्लिम सीटों पर वोटिंग पैटर्न
तीसरे चरण में जिन 16 जिलों में चुनाव हुआ है उनमें से 9 में अनुसूचित जाति की आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है. ऐसी सीटों पर औसत से ज्यादा वोट पड़े हैं. तीसरे चरण की 59 सीटों पर 60.46 वोट पड़े हैं जबकि दलित बाहुल्य वाली सीटों पर वोटिंग प्रतिशत अधिक रहा. ऐसे ही यादव लैंड की सीटों पर भी औसत से दो फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं. तीसरे चरण की 15 सीटें आरक्षित थीं. वहीं मुस्लिम प्रभाव वाली सीटें ज्यादा नहीं थीं. कानपुर में सबसे ज्यादा 18 फीसदी तो कन्नौज में 16 फीसदी मुस्लिम आबादी है. बाक़ी ज़िलों में इससे कम ही हैं, लेकिन सपा के मुस्लिम-यादव समीकरण को देखें तो ऐसी जगहों पर खूब वोट पड़े हैं. मुस्लिम आबादी वाले जिलों को देखें तो पहला नंबर कन्नौज का है. यहां 16.54 फीसदी मुसलमान हैं और यहां 62 फीसदी वोट पड़े हैं. दूसरा नंबर कानपुर नगर का है. यहां 51 फीसदी, फर्रुखाबाद में 14.69 फीसदी मुसलमान हैं और यहां 55 फीसदी वोट पड़े हैं. फिरोजाबाद में 12.6 फीसदी मुसलमान हैं और यहां 58 फीसदी वोट पड़े हैं.
तीसरे चरण में औसतन कम लेकिन यादव बहुल और मुस्लिम इलाकों में बंपर वोटिंग के जारी सिलसिले को देखते हुए सपा गठबंधन का पलड़ा भारी माना जा रहा है. वहीं बीजेपी भी पिछले चुनाव में जीती सीटों का रिकॉर्ड कायम रखने का दावा कर रही है. हालांकि उसके नेताओं के बयानों में झल्लाहट देख कर लगता है कि सत्ता की बागडोर उनके हाथ से निकल रही है. बहरहाल चुनाव के बीच सभी पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे करती हैं. नतीजे आने तक दावों और प्रतिदावों का ये सिलसिला जारी रहेगा. सियासत का यही दस्तूर है. असलियत तो वोटों की गिनती के दिन ही सामने आएगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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