सम्पादकीय

UP Election: क्या तारीफों के पुल बांधने वाली बीजेपी ने मायावती को राजनीतिक तौर पर निष्क्रिय बना दिया है

Rani Sahu
24 Feb 2022 2:27 PM GMT
UP Election: क्या तारीफों के पुल बांधने वाली बीजेपी ने मायावती को राजनीतिक तौर पर निष्क्रिय बना दिया है
x
उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) में बुधवार को एक नई बात उभर कर सामने आई

अजय झा

उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) में बुधवार को एक नई बात उभर कर सामने आई, जो राज्य की राजनीति में गहरा असर डाल सकती है. दरअसल, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के उस बयान (जहां उन्होंने हालिया इंटरव्यू के दौरान कहा था कि अभी बहुजन समाज पार्टी (BSP) को अप्रासंगिक कहना गलत होगा) पर प्रतिक्रिया देते हुए मायावती (Mayawati) ने उनकी प्रशंसा करते हुए उनके आकलन को सही बताया. आम तौर पर ऐसा नहीं होता कि चुनाव के दौरान राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एक दूसरे की तारीफ करें.
राजनीतिक विरोधियों की आलोचना करना और उनकी बातों को खारिज करना भारत के संपन्न लोकतंत्र का हिस्सा है. लेकिन क्या सही माएने में ये एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं? संभवत: नहीं. असल में इन दोनों का साझा प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी है. शाह और मायावती समाजवादी पार्टी, जो राज्य में बीजेपी को बेदखल करने के लिए पूरजोर कोशिश कर रही है, की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. बीजेपी और बीएसपी को अब एक दूसरे की प्रतिद्वंदी पार्टी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि माना जा रहा है कि बीएसपी का प्रदर्शन लगातार तीसरे चुनाव में कमजोर रह सकता है. बीएसपी सरकार बनाने का इरादा नहीं रख रही हैं और वह केवल अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए लड़ रही है. हालांकि, इस नतीजे पर भी पहुंचना कि गलत होगा कि शाह और मायावती अब एक दूसरे के प्रशंसक बन चुके हैं. शाह एक चतुर रणनीतिकार हैं, उनकी सोच में बीजेपी का तात्कालिक और लंबे समय का हित शामिल है.
मायावती की मजबूरियां भी समझने लायक हैं
तात्कालिक सोच यह है कि चुनाव के दौरान बीएसपी को एक प्रासंगिक पार्टी के तौर पर आगे बढ़ाया जाए, ताकि प्रभावशाली मुस्लिम वोट बैंक को विभाजित किया जा सके. माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी, मुस्लिम समुदाय द्वारा समाजवादी पार्टी को एकजुट वोट देने से नहीं रोक पाएगी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM का प्रभाव सीमित रहने वाला है. ऐसे में केवल बीएसपी ही मुस्लिम वोटों को विभाजित कर सकती है और सत्ता पर दोबारा काबिज होने के लिए बीजेपी यही सबसे अच्छा दांव है.
मायावती को खुश रखने के पीछे शाह की दीर्घकालिक दृष्टि भी हो सकती है. बीजेपी की वैकल्पिक रणनीति में मायावती टॉप पर हैं, क्योंकि यदि चुनाव में बीजेपी को सीटें कम पड़ जाएं तो सरकार बनाने के लिए उसका दूसरी पार्टी के साथ हाथ मिलाना आवश्यक हो जाएगा. मायावती की मजबूरियां भी समझने लायक हैं. खुद को लो-प्रोफाइल रखने और बीते पांच सालों से राजनीति में लगभग निष्क्रिय रहने का एक कारण यह है कि वह बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहतीं, खास तौर पर शाह को, जो बतौर गृह मंत्री सीबीआई पर पूरा नियंत्रण रखते हैं.
बीते समय में, मायावती पर कई बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं. हालांकि, राजनीतिक कारणों की वजह से उनके खिलाफ ज्यादातर मामलों को या तो वापस ले लिया गया है या फिर केंद्र में काबिज रही कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल के दौरान बंद कर दिया गया. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनके खिलाफ कोई नया मामला बनाने की संभावना भी खत्म हो गई है. जब सीबीआई, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट या फिर प्रवर्तन निदेशालय बीजेपी के विरोधी खेमे के राजनेताओं के खिलाफ छापा मारती है तो केंद्र में विराजमान बीजेपी सरकार को अपने सलेक्टिव होने के आरोपों से कोई फर्क नहीं पड़ता.
भ्रष्टाचार के मामलों की वजह से निष्क्रिय हैं मायावती
मूर्ति घोटाले में 2019 तक मायावती के कई करीबियों पर केंद्रीय जांच एजेंसियों ने कई बारे छापे मारे थे. यह कथित घोटाला उस समय का है जब मायावती सरकार के दौरान लखनऊ और नोएडा में दलित मेमोरियल पार्क बनाए जा रहे थे. आरोप है कि इसमें 1100 करोड़ रुपये का गबन किया गया था. इन पार्कों में मायावती ने अपनी मूर्तियां स्थापित की थीं और इन पार्कों को बीएसपी के चुनावी चिन्ह- हाथी की मूर्तियों से सजाया था. यह संभव है कि जांच के दौरान केंद्रीय एजेंसियों के हाथ कुछ सबूत लगे हों और यदि मायावती बीजेपी के खिलाफ रुख अपनाती हैं तो इनका इस्तेमाल उनके खिलाफ किया जा सकता है. उनके खिलाफ आय से अधिक मामले के केस को कभी भी खोला जा सकता है, इसी तरह ताज कॉरिडोर घोटाले का भूत अभी भी उनकी रातों की दिन हराम करता है.
मायावती को भारत के सबसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञों में से एक माना जाता है. वह एक गरीब दलित परिवार में पैदा हुई थीं और जब कांशीराम ने उन्हें राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया तब वह दिल्ली के एक स्कूल में प्राइमरी टीचर थीं. अपने मेंटर कांशीराम के साथ वह बीएसपी की संस्थापक नेता रहीं. जैसे-जैसे मायावती की लोकप्रियता बढ़ी, वैसे-वैसे उनकी संपत्ति भी बढ़ी. मोटा-मोटी अनुमानों के मुताबिक, बीएसपी की इस मुखिया के पास 200 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है और उनके परिवार वाले भी करोड़पति बन चुके हैं. एक समय ऐसा था, जब वह देश के टॉप 10 आयकर दाताओं में से एक थीं. उन पर यह भी आरोप लग चुके हैं कि बड़े पैमाने पर आयकर जमा कर उन्होंने अपने कालेधन को सफेद करने की कोशिश की थी. एक स्टिंग ऑपरेशन में, उन्हें यह करते हुए भी देखा गया कि वह पार्टी के एक विधायक को ठेकेदारों से मिले कमीशन को उनके साथ न बांटने पर डांट रही हैं. उन पर पार्टी टिकट बेचने के आरोप भी लगते रहे हैं. हालांकि, अपनी संपत्ति के मामले में उनका सबसे दिलचस्प तर्क यह रहता है कि उन्हें यह संपत्ति पार्टी के कार्यकर्ताओं से बतौर गिफ्ट प्राप्त हुए है.
कुल मिलाकर, मायावती के खिलाफ कई सबूत हासिल किए जा सकते हैं. और यह बात उन्हें मालूम भी है और वह जेल जाने के डर में जीवन बिता रही हैं. यह आसानी समझा जा सकता है कि अपने इसी भय की वजह से बीएसपी की मुखिया को बीजेपी के शासनकाल में सक्रिय राजनीति से दूर रहना पड़ता है और बुआ-भतीजा का गठबंधन (बीएसपी-एसपी) भी अब टूट चुका है. बीएसपी-एसपी का गठबंधन बीजेपी के लिए कठिनाई पैदा कर सकता था, लेकिन यह नहीं हो सकता, क्योंकि मायावती को राजनीतिक तौर पर निष्क्रिय बना दिया गया है. हो सकता है कि यदि बीजेपी को सरकार बनाने के लिए किसी साथी की जरूरत पड़ी तो मायावती ही पहली ऐसी नेता होंगी जो बीजेपी को समर्थन करने की पेशकश कर दें.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story