सम्पादकीय

UP DGP Controversy : इस तरीके से यूपी डीजीपी को हटाया जाना प्रदेश में तबादलों की गंदी राजनीति की ओर इशारा करता है

Gulabi Jagat
14 May 2022 10:54 AM GMT
UP DGP Controversy : इस तरीके से यूपी डीजीपी को हटाया जाना प्रदेश में तबादलों की गंदी राजनीति की ओर इशारा करता है
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योगी आदित्यनाथ ने अचानक और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए यूपी पुलिस के पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल के तबादले का आदेश दिया है
विक्रम सिंह :– उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अचानक और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए यूपी पुलिस के पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल (UP DGP Mukul Goel) के तबादले का आदेश दिया है. गोयल ने जून 2021 में पुलिस विभाग का कार्यभार संभाला था. उनके तबादले का आदेश जारी करते हुए राज्य सरकार ने उनपर 'विभागीय कार्यों में रुचि न लेने, शासकीय कार्यों की अवहेलना करने और सुस्ती बरतने' का भी आरोप लगाया है. अपने कामों का ख़ामियाज़ा भुगतने के लिए मुकुल गोयल को डीजीपी के पद से हटाकर नागरिक सुरक्षा (Civil Defence) का डीजी बनाया गया है. यूपी गृह विभाग द्वारा साझा की गई जानकारी के मुताबिक, कानून व्यवस्था बनाए रखने में उनकी नाकामी के बाद उन्हें पद से हटाना आवश्यक हो गया. फ़िलहाल एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार को राज्य पुलिस प्रमुख का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है.
इन घटनाओं की वजह से गोयल पर गिरी गाज
मुकुल गोयल 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. 1 जून, 2021 को डीजी का पद संभालने से पहले गोयल सीमा सुरक्षा बल (BSF) के प्रमुख थे. यूपी के तत्कालीन डीजीपी एचसी अवस्थी की सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें केंद्र से उनके राज्य कैडर में वापस लाया गया और उन्होंने कमान संभाली. ऐसा कहा जाता है कि गोयल टीम की बैठकों में शामिल नहीं हो रहे थे और गृह विभाग के महत्वपूर्ण विभागीय प्रेजेंटेशन में भी मौजूद नहीं थे. पिछले महीने कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई शासन के आला अफसरों की बैठक में डीजीपी शामिल नहीं हुए.
दूसरी तरफ यह पता चला है कि गोयल को इन बैठकों के लिए भी नहीं बुलाया गया था, जिसमें एडीजी (एलओ) प्रशांत कुमार शामिल थे. उनकी अनदेखी की जा रही थी. सूत्रों ने बताया कि बाद में गोयल सरकार में बैठे बॉस को औपचारिक रूप से इन्फॉर्म किए बिना छुट्टी पर चले गए. उन्होंने हाल के दिनों में ललितपुर जैसे क्राइम स्पॉट का दौरा नहीं किया, जहां एक दलित लड़की के साथ पाली थाना परिसर में एसएचओ द्वारा दुष्कर्म किया गया था जब वह पुलिस स्टेशन गई थी. 2024 में सेवानिवृत्त होने वाले गोयल इस प्रतिष्ठित पद से हटाए जाने पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे. सरकार ने गोयल के जनरल स्टाफ ऑफिसर रवि जोसेफ को एडीजी पीटीसी के पद पर स्थानांतरित करते समय भी उनकी सहमति नहीं ली.
अभूतपूर्व तरीके से हुआ यूपी डीजीपी का तबादला
डीजीपी का पद किसी पुलिसकर्मी के पूरे करियर का प्रतीक है और ऐसा अक्सर नहीं होता है कि पद पर बैठे व्यक्ति को अभूतपूर्व तरीके से हटा दिया जाए. भारत के किसी भी राज्य में पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद को बहुत ही प्रतिष्ठा के साथ देखा जाता है और जहां तक पुलिस फ़ोर्स का संबंध है तो उसके लिए यह पद आदर्श है. पुलिस बल और लोग उन्हें बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और वे फादर फिगर होने के अलावा पुलिस बल की प्रचलित कार्य प्रणाली और ईकोसिस्टम के लिए रोल मॉडल और गाइडिंग फोर्स होते हैं.
इन परिस्थितियों में, डीजीपी के पद के लिए चयन करना आसान नहीं है. नामों का चयन करने के बाद, राज्य सरकार सूची को संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) को भेजती है जो फिर एक पैनल भेजता है और उस पैनल से राज्य सरकार चयन करती है. उत्तर प्रदेश में हाल ही में पुलिस महानिदेशक के तबादले की घटना इसलिए हैरान करने वाली है क्योंकि यह अभूतपूर्व है. यूपी पुलिस के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पूरी ईमानदारी से मुझे उन परिस्थितियों की जानकारी नहीं है जिनमें यह परिवर्तन हुआ है. अपनी पसंद के अधिकारी का चयन सरकार का विशेषाधिकार (prerogative) है.
इस रैंक के अधिकारी से ईमानदारी और उच्चतम स्तर की पेशेवर क्षमता की अपेक्षा की जाती है. कहा जाता है कि प्रदेश में कानून-व्यवस्था और अपराध की गंभीर घटनाएं हुईं, खास तौर पर इसमें प्रयागराज में मर्डर की वारदातें शामिल हैं. एक घटना में पांच और एक दूसरी घटना में पांच हत्याएं हुईं. चंदोली में एक जाने-माने गैंगस्टर को अरेस्ट करने के लिए छापेमारी की गई, लेकिन इस घटना में आरोप है कि गैंगस्टर की बेटी के साथ घोर दुराचार किया गया और उसने आत्महत्या कर ली.
टॉप लीडरशिप ने अन्य मामलों में सख़्ती क्यों नहीं बरती
ये ख़ौफ़नाक घटनाएं पुलिस व्यवस्था में भयानक फॉल्ट लाइन को उजागर करती हैं जिसके चलते नेतृत्व पर आरोप लगाया गया. जाहिर है, कोई भी नेतृत्व, खास तौर पर शीर्ष नेतृत्व न्याय व्यवस्था की कमी को पूरी तरह से दुरुस्त नहीं कर सकता है. हालांकि मुझे बहुत संतोष होता अगर उन्नाव बलात्कार के मामले में, जब आरोपी सत्ताधारी दल के विधायक थे, इसी तरह की कठोर कार्रवाई की जाती और हाथरस केस में भी, जहां सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्भया गाइडलाइन (Nirbhaya guidelines) को लागू करने की बात आई तो कई त्रुटियां और खामियां सामने आईं. इतना ही नहीं, इस मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशों का पालन नहीं किया गया. सीबीआई (CBI) की सिफारिशों का भी पालन नहीं किया गया और न ही उन पर तत्काल अमल किया गया.
जब प्रोफेशनल क्षमता, दोषरहित निष्ठा, सामाजिक संवेदनशीलता और तकनीकी कौशल की बात आती है तो डीजी पुलिस के ऑफिस को अनुकरणीय माना जाता है. मुकुल गोयल ने अपनी पिछली पोस्टिंग में खुद की उत्कृष्टता साबित की थी, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी पुलिस फोर्स यूपी में है और जहां पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और कश्मीर की कुल संख्या से अधिक अपराध होते हैं, इसलिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण भी है. हालांकि, गोयल को डीजीपी के पद से डीजी सिविल डिफेंस के पद पर तबादला करना कोई साधारण कदम नहीं है, यह अभूतपूर्व है. ऐसा पहले भी हुआ है, लेकिन शायद ही कभी डीजीपी पर नियंत्रण की कमी और अक्षमता का आरोप लगाया गया हो.
(विक्रम सिंह उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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