सम्पादकीय

UP Assembly Elections: असदुद्दीन ओवैसी को क्यों मंज़ूर नहीं मौलाना सज्जाद नोमानी का कम सीटों पर चुनाव लड़ने का सुझाव?

Gulabi
13 Jan 2022 3:14 PM GMT
UP Assembly Elections: असदुद्दीन ओवैसी को क्यों मंज़ूर नहीं मौलाना सज्जाद नोमानी का कम सीटों पर चुनाव लड़ने का सुझाव?
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सीटों पर उनसे बीजेपी को हराने वाली पार्टी या गठबंधन को वोट करने की अपील करने की गुज़ारिश की है
यूसुफ़ अंसारी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) के सदस्य मौलाना सज्जाद नोमानी (Sajjad Nomani) ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को 'खुला ख़त' लिखकर उनसे उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ने की गुजारिश की है, जहां उनकी पार्टी जीत सकती है. बाकी सीटों पर उनसे बीजेपी को हराने वाली पार्टी या गठबंधन को वोट करने की अपील करने की गुज़ारिश की है.
मौलाना नोमानी का ये सुझाव असदुद्दीन ओवैसी को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है. हालांकि ओवैसी ने मौलाना नोमानी की चिट्ठी पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन उन्होंने इसे पूरी तरह ठुकरा दिया है. ओवैसी यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर पूरी तरह क़ायम हैं. ग़ौरतलब है कि बुधवार की शाम को मौलाना सज्जाद नोमानी ने अपने टि्वटर हैंडल पर असदुद्दीन ओवैसी को लिखा 'खुला ख़त' साझा किया. इसमें असदुद्दीन ओवैसी से गुजारिश की गई है कि वह सिर्फ़ जीत सकने वाली चुनिंदा सीटों पर ही चुनाव लड़ें. उनके ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है.
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चुनावों की तारीख़ों के ऐलान के बाद मौलाना सज्जाद नोमानी की तरफ से ओवैसी को लिखी गई चिट्ठी से ओवैसी की पार्टी में बेचैनी है. अचानक ट्विटर पर साझा की गई इस चिट्ठी से ओवैसी न सिर्फ़ हैरान हैं बल्कि मौलाना से नाराज़ भी हैं. लेकिन उन्होंने इस पर किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं की. उन्होंने अपनी पार्टियों के नेताओं को भी इस पर बोलने से सख्ती से मना कर दिया है. ओवैसी के नज़दीकी सूत्रों के मुताबिक वो चुनाव के बीच मौलाना के साथ किसी विवाद में नहीं उलझना चाहते.
मौलाना ने चिट्ठी में क्या लिखा?
मौलाना सज्जाद नोमानी ने ओवैसी को लिखे 'खुले ख़त' में उत्तर प्रदेश के हालिया राजनीतिक घटनाक्रम का हवाला देते हुए लिखा है-
'मैं हाल की घटनाओं और उनके संभावित नतीजों की तरफ़ आपका ध्यान खींचना चाहता हूं. आप बख़ूबी वाक़िफ़ है कि मुल्क के मुस्लिम दुश्मन और फिरक़ापरस्ती के अलंबरदारों की असली ताक़त का स्रोत वो लोग हैं जिनका ताल्लुक़ पिछड़े वर्गों से है. पिछड़े वर्गों में बेशुमार समाजी इकाई (जातियां) आती हैं. इतिहास गवाह है कि जब इस तरह के लोग फिरक़परस्त ताक़तों के ख़िलाफ़ एकजुट हुए हो जाते हैं तो फिरक़ापरस्त ताकतों को शिकस्त होती है.'
आगे उन्होंने लिखा, '11 जनवरी को जो कुछ लखनऊ में हुआ, जानकारी के मुताबिक़ यह सिर्फ़ शुरुआत है. आगे और बहुत कुछ होने वाला है. इस पेशे नज़र यह और ज्यादा ज़रूरी हो गया है कि ज्यादा जालिम लोगों के ख़िलाफ़ वोटों की तक्सीम कम से कम हो. आपको शायद अंदाजा नहीं है कि इन पंक्तियों के लेखक के दिल में आपके अज़ाइम और सलाहियतों की कितनी क़द्र है. यह बात जो मैंने आपसे की है ये खुद ज़मीनी हालात और हक़ीक़त की वजह से लिखी है, वरना सच यह है कि ये राय मेरे जज़्बात से मुताबिक़त नहीं रखती. काश के तमाम मज़लूम और कमज़ोर तबक़ों को साथ लेकर अपनी क़यादत में सियासी ताक़त की तश्कील का काम आज से 40-50 साल पहले शुरू हुआ होता.
अगर आप मेरी गुजारिश से सहमत हों तो आप ही बेहतर फ़ैसला कर सकते हैं कि वोटों की तक़्सीम (बंटवारा) को किस तरह से कम किया जा सकता है. मेरी समझ के मुताबिक़ आप सिर्फ़ उन सीटों पर ताक़त खर्च करें जहां कामयाबी यक़ीनी हो और बाक़ी सीटों पर आप ख़ुद गठबंधन के लिए अपील कर दें. मेरे ख्याल में इससे आपकी मक़बूलियत (लोकप्रियता) और आप पर एतमाद (भरोसा) बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा. इससे आइंदा यानि चुनाव के फौरन बाद अपने असल मक़सद के लिए फौरी तौर पर शुरू की जाने वाली कोशिशों की कामयाबी की संभावनाएं बहुत बढ़ जाएंगी.'
मौलाना की चिट्ठी से क्यों नराज़ हैं ओवैसी
ओवैसी के नज़दीकी सूत्रों के मुताबिक़ मौलाना सज्जाद नोमानी के इस खुले ख़त से ओवैसी सख़्त नाराज़ हैं. मोटे तौर पर इसकी दो वजहे हैं. पहली ये है कि चुनाव के बीच में इस तरह 'खुला ख़त' लिखने की न तो कोई ठोस वजह है और न ही ज़रूरत. अगर मौलाना को कोई सुझाव देना ही था तो वो व्यक्तिगत रुप से वह फोन करके दे सकते थे या फिर चिट्ठी निजी तौर पर उन्हें भेज सकते थे. दूसरी ये कि मौलाना ने खुला ख़त लिख कर मुस्लिम वोटों के बंटवारे का ठीकरा सीधे-सीधे ओवैसी के सिर फोड़ दिया है. लिहाज़ा ओवैसी ने भी मौलाना के इस खुले ख़त को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करके ये साफ़ कर दिया है कि उन्हें उनकी या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सलनल लॉ बोर्ड की कोई परवाह नहीं है. उनकी राय है कि धार्मिक संगठनों को बेवजह सियासत में अपनी टांग नहीं नहीं अड़ानी चाहिए.
क्या है मौलाना का एजेंडा
दरअसल मौलाना सज्जाद नोमानी का एजेंडा भी साफ़ नहीं है. मौलाना ने ओवैसी को चिट्ठी लिखने के लिए आल इंडिया मुस्लमि पर्सनल लॉ बोर्ड के लेटरहेड का इस्तेमाल किया है. इससे लगता है कि ओवैसी को ये राय बोर्ड की तरफ़ से दी गई है. एक तरफ तो बोर्ड खुद को राजनीति से दूर रखने का दावा करता है. फिर बोर्ड से जुड़े लोग पिछले दरवाज़े से राजनीति में घुसने की कोशिश करते हैं. मौलाना सज्जाद नोमानी अक्सर राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलते रहते हैं. कुछ महीनों पहले उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मुलाक़ात की थी. वो बहुजन मुक्ति पार्टी के अध्यक्ष वामन मेश्राम से भी मिले थे. केरल की विवादित एसपीडाआई के साथ भी वो मंच साझा कर चुके हैं. उनकी राजनीतिक विचारधारा संदिग्ध है. जब मौलाना ख़ुद राजनीतिक गतिविधियों मे शामिल होते रहे हैं तो फिर उन्हें ओवैसी को ये सुझाव देने का कोई हक़ नहीं कि वो कितनी सीटों पर चुनाव लड़ें.
किसके इशारे पर लिखी ओवैसी को चिट्ठी
राजनीतिक गलियारों में ये सवाल उठ रहा है कि क्या मौलाना ने अखिलेश के इशारे पर ओवैसी को 'खुला ख़त' लिखा है ? अपने ख़त में मौलाना ने ओवैसी को गठबंधन के हक़ में वोट देने का ऐलान करने का सुझाव दिया है. बीजेपी गठबंधन के खिलाफ सिर्फ़ एक ही गठबंधन चुनाव मैदान मे है. वो है सपा, आरएलडी, सुभासपा और अन्य पार्टियों का. मौलाना का इशारा इसी के समर्थन में वोट देने का था. इसी लिए ये सवाल उठ रहा है. सवाल वाजिब है. ओवैसी की पार्टी के एक बड़े नेता पूछते हैं कि क्या मौलाना अखिलेश यादव को भी इसी तरह 'खुला ख़त' लिखकर मजलिस के मज़बूत उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का सुझाव देंगे? उनका ये सवाल भी है कि क्या मौलाना मुस्लिम वोटों का बंटवारा रोकने के लिए सपा गठबंधन में मजलिस को शामिल करने के लिए अखिलेश को राज़ी कर सकते हैं?
राजनीति में दखल ने दें धार्मिक संगठन
मजलिस के नेताओं का कहना है कि मौलाना की चिट्ठी का उनकी पार्टी के राजनीतिक भविष्य और यूपी में चुनावी संभावनाओं पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. अब वक्त बदल चुका है. मुसलमान अब मौलवियों के कहे मुताबिक़ वोट नहीं करते. लिहाज़ा मौलनओं को भी राजनीति में दखलअंदाजी करने से बाज़ आना चाहिए. अगर मौलाना सज्जाद नोमानी को राजनीति में इतनी ही दिलचस्पी है तो वह किसी पार्टी से टिकट लेकर चुनाव लड़ लें. यू बाहर से बैठकर नसीहत और सुझाव न दें. मौलाना या तो ख़ुद राजनीति के मौदान मे कूदें या फिर बाहर से तमाश देखें. वो किसी पार्टी पर ये हुक्म नहीं चला सकते हैं कि वो कहां कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. मजलिस को चुनाव के बारे में किसी के मशवरे की ज़रूरत नहीं है. अगर ज़रूरत होगी तो राजनीतिक लोगों से इस बारे में सलाह मशवरा करेगी धर्मगुरुओं से नहीं. धर्मगुरू अपना काम करें और राजनीति राजनीतिक लोगों पर छोड़ दें.
मौलाना ने खुला ख़त लिख कर ओवैसी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. क्योंकि मुस्लमि समाज के भीतर से भी ऐसा की मशवरा आ रहा है. ओवैसी को दी गई मौलाना की नसीहत फिलहाल तो बेअसर होती नजर आ रही है. ओवैसी पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक सूबे में 100 सीटों पर उम्मीदवार तय करने की क़वायद में जुटे हैं. कुछ सीटों उम्मीदवार तय हो चुके हैं. बाकी सीटों पर भी जल्द उम्मीदवारों की लिस्ट सामने आ जाएगी. ओवैसी और उनकी पार्टी अपने राजनीतिक मक़सद में कितना कामयाब होंगे यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे. फिलहाल तो वो चुनाव को प्रभावित करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. यही वजह है कि मौलाना को उन्हें रोकने के लिए 'खुला ख़त' लिखना पड़ा.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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