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पूर्वांचल साधने की जुगत में सियासी दल
प्रवीण कुमार त्रिपाठी.
यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) में चार चरण की वोटिंग के बाद अब सियासी दलों का फोकस पूरी तरह से पूर्वांचल (Purvanchal) पर है. सियासी समीकरण साधने के लिए हर बड़ा नेता यूपी के अलग-अलग जिलों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है. पांचवें, छठे और सातवें चरण में पूर्वांचल की बची हुई सीटों पर सियासी दल पूरी ताकत झोंकने में जुटे हुए हैं. पूर्वांचल में कमल खिलाने के लिए पीएम मोदी (PM Modi) पूर्वांचल अभियान में जुटेंगे. पीएम इसकी शुरुआत अपनी संसदीय सीट बनारस से करेंगे, वहीं पूर्वांचल में कांग्रेस की जीत के लिए सूबे की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा तीन दिवसीय दौरे पर वाराणसी आ रही हैं.
पीएम के बनारस दौरे से दो दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह दो दिवसीय काशी दौरे पर रहेंगे और काशी क्षेत्र के सभी बड़े पदाधिकारियों के साथ बैठक कर पीएम के दौरे की तैयारियों को अमलीजामा पहनाएंगे. 27 फरवरी से पीएम मोदी का काशी दौरा शुरू हो रहा है. काशी आकर पीएम मोदी कार्यकर्ताओं को जीत का मूल मंत्र देंगे. पीएम पूर्वांचल फतह के लिए बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को संबोधित भी करेंगे. खास सूत्र कहते हैं कि पीएम मोदी 3 मार्च से लेकर 5 मार्च तक वाराणसी में रह सकते हैं.
काशी में विपक्ष का डेरा
बीजेपी के साथ-साथ विपक्षी खेमे की भी नजर नाराणसी पर है. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार 3 मार्च से प्रियंका गांधी वाड्रा बनारस के दौरे पर रहेंगी. प्रियंका यहां तीन दिनों तक डेरा डाल वोट तलाशने की जुगत में जुटेंगी. प्रियंका काशी में प्रवास करेंगी और यहीं से पूर्वांचल में जीत को पुख्ता बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को मंत्र देंगी. वहीं इस रेस में समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ 3 मार्च को वाराणसी में जनसभा करने वाले हैं. अखिलेश काशी से पूर्वांचल फतह करने का मार्ग प्रशस्त करने का काम करेंगे.
काशी बना पूर्वांचल का केंद्र
2014 से पहले अमेठी, रायबरेली केंद्र हुआ करता था, लेकिन 2014 के चुनाव के बाद बनारस, पूर्वांचल का सियासी केंद्र बन चुका है और अब काशी से संदेश पूरे देश को जाता है. यही वजह है कि वाराणसी में खेमे बंदी कर सभी राजनीतिक दल वाराणसी समेत आसपास के जिलों को साधना चाहते हैं. क्योंकि सियासत में ये कहा जाता है कि बनारस को जीतने वाला पूर्वांचल को जीतता है और जिसने पूर्वांचल जीता उसे लखनऊ की गद्दी मिलती है. इसलिए अभी सभी दल पश्चिम के चुनाव के बाद पूर्वांचल को जीतने को कोशिश में लग चुके हैं.
9 जिलों पर काशी का प्रभाव
माना जाता है कि राज्याभिषेक के लिए पूर्वांचल से ही लखनऊ तक का सफर तय किया जा सकता है. पूर्वांचल में करीब 150 विधानसभा सीटें हैं इनमें काशी क्षेत्र में 71 विधानसभा आती हैं. आगामी 7 मार्च को सातवें व अंतिम चरण में वाराणसी के साथ आसपास के 9 जिलों की 54 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है.
काशी को सवर्ण और पिछड़ी जातियों का गढ़ माना जाता है. 2017 चुनाव में बीजेपी को पूर्वांचल में 100 से ज्यादा सीटें मिली थीं, जिनमें काशी क्षेत्र की 71 सीटों में पिछली बार 65 बीजेपी और सहयोगी दलों ने जीती थीं. पूर्वांचल फतह के बाद बीजेपी ने 2017 में यूपी में सरकार बनाई, वहीं 2012 में पूर्वांचल में 100 सीटें जीतकर समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाई थी. सियासत के रण में पिछड़ी जाति के दिग्गज नेताओं का असल इम्तिहान इस बार पूर्वांचल में होगा. सुभासपा 2017 चुनाव में बीजेपी के साथ थी, जबकि इस बार कमल का साथ छोड़कर साइकिल की सवारी कर रही है.
ओमप्रकाश राजभर के कंधों पर साइकिल का बेड़ा पार लगाने की बड़ी जिम्मेदारी है. ओमप्रकाश राजभर को पूर्वांचल में निषाद पार्टी और अपना दल (S) से कड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी. वहीं, इसबार निषाद पार्टी बीजेपी के साथ चुनावी मैदान में है. संजय निषाद के कंधों पर पिछड़ों पर उनके प्रभाव को साबित करने की जिम्मेदारी रहेगी. अनुप्रिया पटेल का होल्ड पिछड़ों पर पहले से ही अच्छा खासा है. ऐसे में बीजेपी और समाजवादी पार्टी को पूर्वांचल में ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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