सम्पादकीय

UP Assembly Election: मायावती की सक्रियता क्या उत्तर प्रदेश में दलित सियासत का रुख मोड़ देगी?

Gulabi
2 Feb 2022 3:15 PM GMT
UP Assembly Election: मायावती की सक्रियता क्या उत्तर प्रदेश में दलित सियासत का रुख मोड़ देगी?
x
उत्तर प्रदेश की दलित सियासत में एक नया मोड़ आने वाला है
संयम श्रीवास्तव।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की दलित सियासत में एक नया मोड़ आने वाला है, क्योंकि सूबे में अब मायावती (Mayawati) सक्रिय भूमिका में नजर आएंगी. बुधवार को आगरा में उनकी रैली हुई. अब तक चुनावी पंडित यह कयास लगा रहे थे कि मायावती जिस तरह से इस चुनावी मौसम में निष्क्रिय हैं, उनका दलित वोट बैंक कहीं उनसे खिसक कर चंद्रशेखर रावण या फिर बीजेपी या एसपी गठबंधन की तरफ डायवर्ट ना हो जाए. लेकिन चुनाव (Election) से ठीक पहले ऐन मौके पर बीएसपी प्रमुख मायावती ने अपनी सक्रियता दिखाते हुए बता दिया है कि सत्ता की लड़ाई में उनकी भी दावेदारी किसी से कम नहीं है.
मायावती उत्तर प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. उन्हें उनके दलित वोट बैंक के लिए जाना जाता है. लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में मिली हार, उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के घटते वोट बैंक ने मानो उनके राजनीतिक सफर पर विराम लगा दिया हो. हालांकि बीएसपी का एक कोर वोट बैंक है जो उसके साथ हमेशा खड़ा रहता है और इस बार जिस तरह के समीकरण बन रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि अगर मायावती अच्छी सीटें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में निकालने में कामयाब होती हैं तो वह बड़ा खेल कर सकती हैं. हालांकि, तमाम ओपिनियन पोल और सर्वे में बीएसपी को इतनी सीटें नहीं मिलती दिखाई दे रही हैं जो उसे बेहतर स्थिति में ला सकें.
सभी को जमकर घेरा
2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने अपनी पहली रैली आगरा में की, जहां पहुंचकर उन्होंने समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी तीनों को जमकर घेरा. सपा को लेकर मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में गुंडों और बदमाशों का राज होता है और यह सरकार एक विशेष समुदाय के लिए ही काम करती है. जबकि कांग्रेस को कहा कि यह केवल नाटक बाजी करती है. उन्होंने कहा जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी तब उसने महिलाओं के लिए क्या किया और अब सत्ता में नहीं है तो उसे महिलाओं की याद आ रही है. भारतीय जनता पार्टी को घेरते हुए मायावती ने कहा कि यह पार्टी सिर्फ RSS का एजेंडा चला रही है और इसके शासनकाल में दलितों का हाल बुरा है.
दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इस रैली में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी कार्यकर्ता पहुंचे थे. चुनाव आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक रैली में केवल एक हजार लोगों को ही प्रवेश दिया जा रहा है, हालांकि 1000 कुर्सियों के बावजूद भी लोग वहां ज्यादा दिखे.
बीते 10 सालों में दलित वोट बैंक का क्या हुआ
उत्तर प्रदेश में धोबी, पासी, कोरी, वाल्मीकि, गोंड जैसी तमाम जातियां अनुसूचित जाति समुदाय में आती हैं. हालांकि इस पूरे जाति समुदाय में जाटव जाति की आबादी लगभग 50 फ़ीसदी है जो पूरे उत्तर प्रदेश में फैले हुए हैं. इन्हें ही मायावती का कोर वोट बैंक माना जाता है. क्योंकि मायावती भी इसी समुदाय से आती हैं.
अगर सीटों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 84 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इन सीटों पर 2017 में बीजेपी को बढ़त मिली थी और उसने 84 में से 70 सीटें जीत ली थी. जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी ने इन 84 सीटों में से 58 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 62 सीटों पर चुनाव जीता था.
यानि कुल मिलाकर कहें तो यह 84 आरक्षित सीटें उत्तर प्रदेश की सत्ता की कुर्सी तक नेताओं को पहुंचाने में अहम योगदान देती हैं. जो इन सीटों पर अपनी मजबूती दिखा देगा वह कुर्सी के नजदीक पहुंच जाएगा.
कहां है दलित मतदाताओं का प्रभाव
उत्तर प्रदेश में दलितों की कुल आबादी लगभग 22 फ़ीसदी है. यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले हर हथकंडे अपनाती हैं. ताकि इस वोट बैंक को तोड़ा जा सके. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, जौनपुर, आगरा, बिजनौर, सहारनपुर, गोरखपुर, गाजीपुर, रायबरेली, हरदोई, प्रयागराज, लखनऊ, सुल्तानपुर और गाजियाबाद जैसे जिलों में दलित आबादी प्रभावी भूमिका में नजर आती है. हालांकि दलितों में भी कई उपजातियां हैं और यह उपजातियां पार्टियों में भी बंटी हुई हैं. दलितों की उत्तर प्रदेश में कुल 66 उपजातियां हैं.
इनमें 55 उप जातियों का संख्या बल उतना ज्यादा नहीं है, लेकिन जिलेवार तरीके से यह कहीं-कहीं प्रभावी हैं. जैसे लखनऊ और प्रयागराज के आसपास पासी समुदाय की आबादी ज्यादा है. तो वहीं सुल्तानपुर और गाजियाबाद जैसे जिलों में कोरी और धोबी जातियों का संख्या बल ज्यादा है. जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल के जौनपुर, गाजीपुर, गोरखपुर जैसे जिलों में जाटव समुदाय का ज्यादा प्रभाव माना जाता है.
चंद्रशेखर रावण कितना सेंध लगा पाएंगें
मायावती इस बार अपना पूरा फोकस पश्चिम उत्तर प्रदेश पर रख रही हैं, ताकि उन्हें वहां दलित और मुस्लिम समीकरणों को साधने का मौका मिल जाए. दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग 29 जिलों में अधिकांश सीटों पर बीएसपी का प्रभाव है. उसका कारण यह है कि इन सीटों पर जाटव मतदाता प्रभावी हैं और अगर दलित और मुस्लिम वोटर एक साथ आ जाएं तो बाकी की राजनीतिक पार्टियों के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टिक पाना मुश्किल हो जाएगा.
हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही मायावती के लिए सबसे बड़ी मुश्किल का सबब चंद्रशेखर रावण बन रहे हैं, जिन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. चंद्रशेखर रावण भी जाटव समुदाय से आते हैं और दलित युवाओं में इनकी पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है. अगर चंद्रशेखर ने मायावती के दलित वोट बैंक में सेंधमारी कर दी तो फिर बीएसपी घाटे में चली जाएगी.
Next Story