सम्पादकीय

UP Assembly Election : अंतिम चरण के लिए बीजेपी के ताकत झोंकने का मतलब उत्तर प्रदेश में कांटे की टक्कर है

Gulabi
7 March 2022 1:44 PM GMT
UP Assembly Election : अंतिम चरण के लिए बीजेपी के ताकत झोंकने का मतलब उत्तर प्रदेश में कांटे की टक्कर है
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बीजेपी के ताकत झोंकने का मतलब उत्तर प्रदेश में कांटे की टक्कर है
राजेश सिन्हा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) के अंतिम चरण से पहले ही यानि छठे चरण के मतदान के बाद ही तस्वीर कई मायनों में स्पष्ट हो गई. चुनावी एजेंडा तय करने के मामले में शुरू से ही अग्रसर दिखने वाली बीजेपी सभी सात चरणों के दौरान बड़े नैरेटिव सेट करने में असफल रही. बीजेपी (BJP) नेताओं के भाषणों में एक तरह की हताशा दिखाई देती रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का ज़िक्र करते हुए मतदाताओं से मजबूत केंद्र सरकार और मजबूत भारत के लिए चुनावों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने की अपील की.
उनकी बातों से ऐसा लगता है जैसे राज्यों की गैर-बीजेपी सरकारें देश को कमजोर कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर उनकी चिंता एक तरफ, लेकिन हक़ीकत है कि मोदी राष्ट्रीय राजधानी में नहीं थे. पार्टी ने उन्हें अंतिम चरण के मतदान के लिए वाराणसी में तैनात किया था.
मुफ्त राशन से जुड़े जोख़िम
बीजेपी नेता अपनी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बात करते रहे. उन्हें उम्मीद रही कि वे मुफ्त राशन पाने वालों को वोट देने के लिए लुभा लेंगे. मुफ्त राशन के लाभार्थी बीपीएल परिवार हैं. उनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति, पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्ग और मुसलमान हैं. राज्य में इनकी संख्या करीब 16 करोड़ है. इनमें से कोई भी वर्ग बीजेपी के प्रति आसक्त नहीं दिखा. क्या ये लोग फ्री खाना उपलब्ध कराने के लिए योगी सरकार के आभारी हैं? – यह एक महत्वपूर्ण सवाल है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के कुछ दिलचस्प पहलू हैं. चुनावी लड़ाई में बहुत कुछ दांव पर लगा है. यह 2024 में होने वाले संसदीय चुनावों तक राष्ट्रीय राजनीति की दिशा को प्रभावित कर सकता है. मतदान प्रतिशत में कमी दिख रही है. यह किस तरफ इशारा करता है और इससे किसका नुकसान या लाभ होगा, जैसे कुछ सवाल हैं जिन पर विश्लेषक माथापच्ची कर रहे हैं. कुछ लोग इसे मतदाताओं का पारम्परिक तरीका कह सकते हैं. अगर लोग बदलाव चाहते हैं तो ज्यादा मतदान होता है और कम मतदान सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में होता है.
हालांकि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की रैलियों में उमड़ी भीड़ इस मत की अवहेलना करता है. कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि बीजेपी के मतदाता और कार्यकर्ता निराश हैं और बाहर नहीं आ रहे हैं. मतदान के दिन पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के अनुपस्थित रहने की खबरें आईं. हालांकि यह जानकारी कही-सुनी बातों पर आधारित है. चुनाव परिणाम आने के बाद ही इसकी सत्यता या वास्तविकता का पता चलेगा.
शिकायतों की बाढ़
कई निष्पक्ष ख़बरों के मुताबिक बीजेपी ने अपनी स्थिति सुरक्षित करने के लिए कई हथकंडे अपनाए. मतदान केंद्रों पर मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में नहीं होने की कई शिकायतें हैं. एक रिपोर्टर के अनुसार, चुनाव आयोग के अधिकारियों ने स्पष्टीकरण दिया है कि कोविड-19 महामारी के कारण बूथों की संख्या बढ़ा दी गई है और कुछ मतदाता गलत मतदान केंद्र पर पहुंच गए हैं जबकि उनके नाम मतदाता सूची में कहीं और हैं.
डाक मतपत्रों में हेराफेरी की भी शिकायतें मिली हैं. अधिकारी कथित तौर पर अपने अधीनस्थों के मतपत्र लेते हैं और उनकी जगह खुद वोट दे देते हैं. एक विधानसभा क्षेत्र में पोस्टल बैलेट की संख्या करीब 10 हजार है. 2017 के चुनावों में कई निर्वाचन क्षेत्रों में वोटों का अंतर, विशेष रूप से पूर्वी यूपी में, 10 हजार से कम था. इस दृष्टि से यह संख्या महत्वपूर्ण है.
हालांकि 'लहर' की स्थिति होने पर ये तरकीबें परिणामों को प्रभावित नहीं करती हैं, क्योंकि लोग किसी पार्टी के पक्ष या विपक्ष में एकतरफा मतदान करते हैं. यूपी में ऐसी स्थिति है या नहीं, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता. इस मुद्दों पर विचार करने के लिए परस्पर विरोधी बातें हैं. इनमें से कौन-सा सही है, यह कहना मुश्किल नहीं है.
क्या बीजेपी को फायदा मिलेगा?
बीजेपी को बूथ स्तर पर पार्टी की उपस्थिति और प्रभावी पार्टी मशीनरी का फायदा मिल सकता है. पार्टी ने अपने सभी पन्ना प्रमुखों को मतदाता सूची एक-एक पृष्ठ आवंटित किए हैं और मतदान के दिन उन्हें मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने का काम सौंपा है. पार्टी के पन्ना प्रमुखों की विशाल सेना पार्टी के लिए सोशल मीडिया अभियान में लगी है. मुख्यधारा के प्रिंट और टेलीविजन मीडिया पर इस बात को प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है कि योगी सरकार ने कानून और व्यवस्था की स्थिति पर अच्छा काम किया है.
यह भी बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने 'गुंडा राज' को समाप्त कर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की और मुफ्त राशन देकर गरीबों की मदद की. ये सभी बातें मतदाताओं की भावनाओं को बीजेपी के पक्ष में कर सकते हैं. हिंदुओं के एक बड़े हिस्से की संतुष्टि के लिए राम मंदिर मुद्दा निपटाने का श्रेय भी बीजेपी को दिया जाता है. दूसरी तरफ बीजेपी के विरोध में किसानों का एकजुट होना और गन्ना किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने में योगी सरकार की विफलता पार्टी के खिलाफ काम करती है.
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद के हुए चुनावों में बीजेपी को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा मिला था. लेकिन वर्तमान चुनावों में यह गायब है. गोहत्या और पशु व्यापार पर प्रतिबंध के बाद पैदा हुई आवारा पशुओं की भारी समस्या किसानों की परेशानी को बढ़ा रही है. सरकार द्वारा स्थापित गौशालाएं इस समस्या से निपटने में सक्षम नहीं हैं. फसलों को नष्ट करने के अलावा आवारा सांड और गाय लोगों पर हमले कर रहे हैं. किसानों को अपने खेतों की रखवाली के लिए रातों की नींद हराम करनी पड़ रही है. किसानों का गुस्सा इस कदर था कि कुछ गांवों में बीजेपी नेताओं को प्रवेश नहीं करने दिया गया.
चुनावी फ़िज़ा में बेरोजगारी का रोना
एक प्रमुख मुद्दा जो बीजेपी के खिलाफ है, वह है बेरोजगारी. बहुप्रचारित 'डबल इंजन' सरकार में बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. वैकन्सी निकलना, परीक्षाएं आयोजित करना और फिर पेपर लीक होने के बाद परीक्षा रद्द करना – इन बातों ने नौकरी चाहने वाले बेरोजगार युवकों को नाराज और निराश किया है. नौकरी के बिना कोई आय नहीं होने के कारण लोग परेशान हैं. बढ़ती कीमतों की वजह से कई लोग दोहरी मार झेल रहे हैं. इस मुद्दे पर आक्रोश खासकर उन छात्रों में देखा जाता है जिन्हें लगता है कि भविष्य अंधकारमय है. सरकारी कर्मचारियों के लिए नौकरियां पैदा करने और पेंशन बहाल करने वाला अखिलेश यादव का वादा कई मतदाताओं के लिए उम्मीद जगाता है. मतदान के समय मतदाता के दिमाग में कौन-सा मुद्दा हावी होता है, यह परिणाम निर्धारित करेगा. स्पष्ट है कि यह बीजेपी के लिए आसान नहीं है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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