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एक तरफ तो बीजेपी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे चुनाव जीतना चाहती है
यूसुफ़ अंसारी एक तरफ तो बीजेपी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे चुनाव जीतना चाहती है वहीं वो पहली बार मुस्लिम वोट हासिल करने की भी कोशिश कर रही है. इसके लिए बीजेपी एक खास रणनीति के तहत ख़ामोशी से काम कर रही है. अब संघ से जुड़ा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बीजेपी को मुसलमानों के वोट दिलाने के लिए मैदान में उतर आया है. मंच मुस्लिम समाज में बीजेपी के हक़ में माहौल बनाने की कोशिशों में जुट गया है. ये मंच संघ परिवार का एक संगठन है. ये मुसलमानों के बीच संघ की विचारधारा पहुंचाकर उन्हें राजनीतिक रूप से बीजेपी से जोड़ने की काम करता है.
बीजेपा को मुसलमनों के वोट दिलाने के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच घर-घर जाकर मुसलमानो को मोदी-योगी के राज में मुसलमानों के हुए फायदे गिनवाकर उन्हें बीजेपी को वोट देने के लिए राज़ी करने का अभियान छेड़ रखा है. इसके लिए मंच ने मोदी-योगी सरकारों से मुसलमानों को हुए फायदों पर पर एक बुकलेट तैयार की है. मंच से जुड़े कार्यकर्ता घर-घर जाकर ये बुकलेट मुसलमानों को देंगे और उनसे इसे पढ़ने के बाद ही वोट देने का फ़ैसला करने को कहेंगे. हालांकि मंच का ये अभियान विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों के लिए है, लेकिन यूपी पर खास ज़ोर है. अहम सवाल यह है कि जब चुनाव जीतने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर अन्य मंत्री और बीजेपी के नेता मुसलमानों के खिलाफ़ बयानबाज़ी करके ध्रुवीकरण की कोशिशों में जुटें हैं तो ऐसे माहौल में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बीजेपी को मुसलमानों के वोट कैसे दिला पाएगा?
क्या है एमआरएम की बुकलेट में
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की तरफ से जारी की गई इस बुकलेट मे कहा गया है कि बीजेपी के शासन में मुसलमान सबसे सुरक्षित और खुश हैं, जबकि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उन्हें केवल वोट बैंक मानती हैं. एमआरएम ने समुदाय के कल्याण के लिए केंद्र और राज्यों में भाजपा सरकारों की तरफ़ से लागू की गईं विभिन्न योजनाओं का जिक्र करते हुए बीजोपी को देश में मुसलमानों की सबसे बड़ी शुभचिंतक पार्टी बताया है. इसस बुकलेट में एमआरएम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस, सपा और बीएसपी सहित विपक्षी दलों ने मुसलमानों को केवल अपना वोट बैंक माना है. इन पार्टियों ने सत्ता में आने के बाद मुस्लिम समुदाय के लिए विकास के काम करने के बजाय उन्हें ग़रीबी, अशिक्षा, पिछड़ापन और तीन तलाक जैसी सामाजिक बुराई की दलदल में धकेल कर उन पर अत्याचार किया है.
मोदी-योगी सरकार की योजनाओं पर भरोसा
मुस्लिम राष्टीय मंच को भरोसा है कि केंद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार के दौरान जिन मुसलमनों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है वो बीजेपी को वोट देंगे. पर्चे में पूरी तरह ये साबित करने के कोशिश की गई है मोदी-योगी सरकार ने अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाने में बग़ैर किसी धार्मिक भेदभाव के काम किया है. पर्चे में बताया गया है, ''नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 से अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण के लिए नयी रोशनी, नया सवेरा, नयी उड़ान, सीखो और कमाओ, उस्ताद और नयी मंजिल सहित 36 योजनाएं शुरू की हैं.' संगठन ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना, मुद्रा योजना, जन धन योजना, उज्ज्वला योजना, अटल पेंशन योजना, स्टार्टअप इंडिया और मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई अन्य योजनाओं से भी लाभ हुआ है.
बीजेपी के मुस्लिमों की शुभचिंतक होने का दावा
एमआरएम ने इस पर्चे में दावा किया है कि बीजेपी मुसलमानों की सबसे बड़ी शुभचितंक पार्टी है. जबकि बाक़ी दल उहें सत्ता हथियाने के लिए उनके वोटों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें कहा गया है कि 2014 के बाद से मुसलमानों के खिलाफ 'सांप्रदायिक दंगों और अत्याचारों' की घटनाओं में काफी कमी आयी है. लिहाज़ा चुनाव के दौरान मुसलमान कांग्रेस, सपा-बसपा के झांसे में न आएं. देश के मुसलमान बीजेपी के शासन में सबसे सुरक्षित और खुश हैं और आगे भी रहेंगे. इसलिए सोच-समझकर वोट करें. जरा सी चूक परेशानी का कारण बन सकती है. पर्चे में सवाल किया गया है, ''कांग्रेस, सपा और बीएसपी समेत विपक्षी दल आरएसएस एवं बीजेपी के खिलाफ लंबे समय से यह कह कर दुष्प्रचार कर रहे हैं कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जाएगा..कितने मुसलमानों को देश से निकाल दिया गया है पिछले सात वर्षों में?'
ज़मीनी हक़ीक़त एमआरएम के दावों से उलट
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच कुछ भी दावा करे, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है. केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद देश भर में मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद मुसलमानों के खिलाफ ज़्यादातियों और भेदभाव की खबरें सुर्ख़िया बनती रही हैं. सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन में शामिल रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं पर योगी सरकार ने जिस दमनकारी रवैया अपनाया, उसकी देश-विदेश में आलोचना हुई. डॉ. कफील समेत तमाम मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं पर रासुका लगाकर उन्हें महींनों जेल में रखा गया. इन घटनाओं के ज़ख्म अभी ताजा हैं. लिहाज़ा इन हालात में को देखकर तो नहीं लगता कि मुसलमान बीजेपी के राज में इतने खुश हैं की मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कहने से वो बीजेपी को वोट देने टूट पड़ेंगे. बहरहाल मंच का काम अपील करने का है. वोट देना या नहीं देना मुसलमानों पर निर्भर करेगा.
मुसलमान क्यों माने एमआरएम का फ़रमान
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पिछले 20 साल से मुस्लिम समाज के बीच संघ की विचारधारा पहुंचाने का काम कर रहा है. देशभर में लाखों मुसलमान मंच के साथ जुड़े हुए भी हैं. लेकिन मुस्लिम समाज में मंच से जुड़े लोगों की स्वीकार्यता बहुत ज्यादा नहीं है कम से कम इतनी तो नहीं है कि इनके कहने पर मुसलमान किसी पार्टी को वोट देंगे. दूसरी बात यह भी है कि मुसलमानों ने अपने धार्मिक रहनुमाओं के फतवों पर ही वोट डालना छोड़ दिया है तो फिर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के फ़रमान पर बीजेपी को वोट भला क्यों देंगे. सरकारी योजनाएं सबके लिए होती हैं. केंद्र और उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार से पहले भी सरकारी योजनाओं में मुसलमानों को फायदा होता था. बीजेपी सरकार के दौरान अगर मुसलमानों सरकारी योजनाओं का फायदा मिल रहा है तो बीजेपी उन पर कोई अहसान नहीं कर रही. सरकार सबकी होती है और सबके लिए होती है.
80% बनाम 20% की लड़ाई में मुसलमान कहां
हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई टीवी चैनलों को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव 80% बनाम 20% के बीच की लड़ाई में तब्दील हो गया है. उनका इशारा सीधे-सीधे हिंदू बनाम मुस्लिम के बीच लड़ाई से था. यूपी में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ही बीजेपी की जीत का एकमात्र रामबाण है. इसी के सहारे पिछले चुनाव में उसने अपने सहयगियों के साथ मिलकर 325 सीटें जीती थीं. पिछले चुनाव में बीजेपी ने अखिलेश सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए थे. रमज़ान में बिजली देने और दिवाली पर अंधेरा रखने के अलावा क़ब्रिस्तानों के विकास और शमशान की अनदेखी का मुद्दा उठाया था. इस बार बीजेपी खुले आम हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेल रही है. अयोध्या और काशी के बाद मथुरा में भव्य मंदिर बनाने का सपना दिखा रही है. ऐसे हालात में भला मुसलमान बीजेपी के पाले में क्यों आएगा. ये लाख टके का सवाल है.
दरअसल चुनावों की तारीखों से पहले उत्तर प्रदेश में लग रहा था कि बीजेपी प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी करेगी. लेकिन तारीखों का ऐलान के फौरन बाद जिस तरह बीजेपी में भगदड़ मची है, उसे देखते हुए सत्ता में उसकी वापसी की राह काफी मुश्किल लगती है. खासकर तब जबकि बीजेपी का गैर-यादव पिछड़ा और ग़ैर-जाटव दलित वोट उससे छिटक रहा है. ऐसे में बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी और भी बड़ी चुनौती बन गई है. हालांकि बीजेपी ने खुद क़रीब 50,000 पोलिंग बूथों पर मुस्लिम कार्यकर्ता तैनात करके मुस्लिम वोट हासिल करने की रणनीति बनाई है. लेकिन जब बीजेपी के ही बड़े नेता सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों में जुटे हैं तो फिर उन्हें मुसलमानों के वोट की ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
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