सम्पादकीय

UP Assembly election : इतिहास में लिखा जाएगा 2022 का यूपी चुनाव, क्या कई नेताओं की खत्म होने वाली है राजनीति

Rani Sahu
20 Feb 2022 5:19 PM GMT
UP Assembly election : इतिहास में लिखा जाएगा 2022 का यूपी चुनाव, क्या कई नेताओं की खत्म होने वाली है राजनीति
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यूपी का 2022 विधानसभा चुनाव (UP Assembly election 2022 ) ऐतिहासिक हो रहा है

संयम श्रीवास्तव

यूपी का 2022 विधानसभा चुनाव (UP Assembly election 2022 ) ऐतिहासिक हो रहा है. इस चुनाव में देश के 4 नेताओं का भविष्य दांव पर लगा है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ( Yogi Adityanath) , पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), पूर्व मुख्यमंत्री व बीएसपी सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. हालांकि सभी जानते हैं कि यूपी में मुख्य मुकाबला बीजेपी वर्सेस समाजवादी पार्टी की ही है. पर मायावती और प्रियंका गांधी की पूरी राजनीति भी दांव पर लगी है. इन दोनों महिला राजनीतिज्ञों के लिए सरकार बनाना नहीं बल्कि ठीक-ठाक प्रदर्शन ही इनकी राजनीति बचा सकता है. यानि कि अगले इलेक्शन के लिए इन्हें प्राणवायु दे सकता है. इसके साथ ही यूपी का यह चुनाव देश की राजनीति भविष्य में किस ओर जाएगी इसे भी निर्धारित करेगी. 2024 में होने वाले आम चुनावों के लिए और देश के अगले राष्ट्रपति चुनने के लिए भी यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण होने वाला है.

योगी का भविष्य निर्धारित करेगा चुनाव
यूपी का सीएम बनने के बाद से ही योगी को लेकर बीजेपी के एक तबके में बहुत उत्साह है. उनकी कम उम्र को देखते हुए कुछ लोग उन्हें देश के भावी पीएम के तौर पर भी देखते हैं. इसके पीछे तर्क दिए जाते हैं कि जिस तरह गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की छवि भविष्य के पीएम के रूप में गढ़ी जा रही थी उसी तर्ज पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को भी तैयार किया जा रहा है. गुजरात मॉडल की तरह पूरे देश में यूपी मॉडल के जयकारे किए जाते हैं. गुजरात के डिवेलपमेंट को नरेंद्र मोदी से जोड़ने की तर्ज पर यूपी के डिवलपमेंट को भी योगी से जोड़ा जा रहा है. यूपी को भविष्य का ग्रोथ इंजन बताया जा रहा है. योगी के कार्यकाल में यूपी का जीडीपी देश में 18वें स्थान से उठकर दूसरे नंबर पर पहुंच चुका है. विदेशी निवेश औ र ग्रोथ रेट में प्रदेश नंबर वन हो चुका है. यह सब उसी तरह से प्रचारित और प्रसारित हो रहा है जैसे कभी गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को भविष्य का पीएम कैंडिडेट तैयार किया जा रहा था. दूसरी तरफ एक बात यह भी कही जा रही है कि बीजेपी में योगी को लेकर कुछ ठीक नहीं चल रहा है. अगर यूपी में बीजेपी अच्छा परफार्म नहीं कर पाई और जोड़ तोड़ से सरकार बनती है तो यूपी में दुबारा सीएम बनने का सपने पर भी ग्रहण लग सकता है. दुबारा सीएम नहीं बन पाने पर बीजेपी में पीएम कैंडिडेट के सपने को भी खत्म कर देगा.
अखिलेश अच्छा परफार्म नहीं कर सके तो मुख्य विपक्षी से भी रिप्लेस हो सकते हैं
अखिलेश यादव के लिए यह चुनाव हारने पर वैसा ही कुछ हो सकता है जैसा कांग्रेस में राहुल गांधी के लिए हो चुका है. लगातार चौथी हार उनके नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के लिए घातक हो जाएगी. असंतोष के स्वर उभरेंगे ही पार्टी के कोर वोटर्स का भी भरोसा खत्म होगा. 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा, 2019 विधानसभा के बाद 2022 का विधानसभा भी अगर हारने पर यह भी कहा जाएगा कि 2012 का इलेक्शन उन्होंने अपने बल पर नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव के चलते जीता था. दरअसल भारतीय लोकतंत्र में जनता में लोकप्रिय होना और जनता का वोट पार्टी को दिलवाना दोनों में बहुत अंतर हो जाता है. यह हो सकता है कि उनकी हार बिहार में आरजेडी की तरह कुछ सीटों के अंतर से रह जाती है तो जरूर उनकी राजनीति जीवित रहेगी. पर 2017 की तरह का डिजास्टर पार्टी बर्दाश्त नहीं कर सकेगी. वैसे भी आम आदमी पार्टी बहुत तेजी से प्रदेश में पांव पसार रही है. पंजाब में अगर आम आदमी पार्टी की सरकार बनती है तो यह निश्चित है कि अगले चुनाव तक वह उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्ष की भूमिका का लक्ष्य निर्धारित करने वाली है.
मायावती के जीवन मरण का सवाल
बहुजन समाज पार्टी के लिए इससे बुरा क्या हो सकता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह पार्टी जिसका कोर वोटर (करीब 22 परसेंट) अब भी उसके साथ है वो पार्टी सरकार बनाने की रेस में ही नहीं है. दरअसल चुनावों की घोषणा के बाद देर से बीएसपी सुप्रीमो के सक्रिय होने , लगातार बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेताओं के पार्टी छोड़ने के चलते मतदाताओं के बीच गलत संदेश चला गया. मायावती की ढलती उम्र और चंद्रशेखर उर्फ रावण का युवा नेतृत्व दलितों को धीरे-धीरे लुभा रहा है. रावण की कार्यशैली और दलितों के बीच उनकी सक्रियता उन्हें वोट न देने वाले दलितों के बीच लोकप्रिय बना रही है. मायावती अगर इस बार के चुनावों में 50 सीट से भी कम पर पहुंचती हैं तो फिर यूपी की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी इतिहास बन जाएगी. हालांकि मायावती के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि चुनाव दर चुनाव उनके वोटर्स की संख्या घटी नहीं है . और इस बार के चुनावों में भी उनके खास प्रतिद्वंद्वी चंद्रशेखर उर्फ रावण उनके वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल नहीं हो सके हैं. साथ ही समाजवादी पार्टी को भी दलितों के वोट मिलते नजर नहीं आ रहे हैं.
कांग्रेस की आखिरी उम्मीद का भी लग जाएगा पलीता
कांग्रेस पार्टी में एक धड़े का यह मानना रहा है कि राहुल गांधी की जगह प्रियंका को सक्रिय राजनीति में आना चाहिए. इस बार के चुनावों में प्रियंका गांधी पूरी तैयारी के साथ पूरे जोर-शोर के साथ चुनावों में हिस्सा ले रही है. उनके नेतृत्व में यूपी में कांग्रेस ने बज क्रिएट किया है. लड़की हूं मैं , लड़ सकती हूं का नारा देकर उन्होंने कांग्रेस के परंपरागत वोटरों को फिर से जिंदा करने की कोशिश की है. कांग्रेस के मेनिफेस्टो में महिलाओं के लिए अलग से किए गए बड़े ब़ड़े वादों न प्रियंका के पक्ष में माहौल तैयार किया है. पर अनुभव की कमी, पार्टी संगठन का कमजोर होना उनके फेवर में वोट देने का माहौल नहीं तैयार कर सका है. प्रियंका के नेतृत्व में भी अगर कांग्रेस सीटों का अर्धशतक नहीं पूरी कर सकी तो भारतीय राजनीति में कांग्रेस में नेहरू परिवार का यह ट्रंप कार्ड खत्म हो जाएगा.
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