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यूपी विधानसभा चुनाव 2022
यूसुफ़ अंसारी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा ( UP assembly election) के पहले चरण के मतदान के बाद बीजपी (BJP) को भारी नुकसान की चर्चा है. तमाम चुनाव विश्लेषक कह रहे हैं कि बीजेपी जाट-मुस्लिम एकता को तोड़ने में नाकाम रही. इस लिहाज़ से दूसरा चरण उसके लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. दूसरे चरण में 9 ज़िलों की 55 सीटों पर मतदान होना है. इनमें से पांच ज़िलों में मुसलमानों ( Muslim Vote)की आबादी 40 फीसदी से ज़्यादा है. यहां सपा-रालोद गठबंधन महान दल का साथ पाकर और भी मज़ूबत नज़र आ रहा है. लकिन कुछ सीटों पर बीएसपी की मज़बूती उसके लिए ख़तरा बन सकती है. वहीं बीजेपी की जीत का दारोमदार मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर है.
दूसरा चरण बीजेपी और सपा गठबंधन दोनों ही पार्टियों के लिए आग का दरिया है. जो इसे पार कर लेंगी वो ही सत्ता की दहलीज़ तक पहुंचेंगी. पिछले तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि पहले चरण में बढ़त बनाने वाली पार्टी ही सत्ता पर कब्ज़ा करती है. पहले चरण के मतदान के बाद चुनाव सर्वेक्षण और एग्जिट पोल करने वाली संस्था के निदेशक संजय सिंह ने दावा किया है कि यहां बीजेपी की डबल इंजन की सरकार के ख़िलाफ़ आंधी चल रही है. उन्होंने ये दावा पहले चरण में एग्जिट पोल करने गई अपनी टीम से मिले फीडबैक के आधार पर किया है. अगर ये दावा सच है तो दूसरे चरण में इस आंधी की रफ्तार और तेज़ हो सकती है. अगर पहले चरण में बीजेपी का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का दांव नहीं चला तो दूसर चरण में भी ये दांव नहीं चलेगा. इस सूरत में बीजेपी को यहां पहले चरण के मुकाबले ज़्यादा नुकसान हो सकता है.
पिछले चुनाव में किसकी कितनी सीटें
दूसरे चरण वाली 55 सीटों में से पिछले चुनाव में बीजेपी ने 38 सीटें जीती थीं. समाजवादी पार्टी को 15 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं. पिछली बार सपा और कांग्रेस का गठबंधन था. बीएसपी और आरएलडी नौ ज़िलों की इन 55 सीटों पर खाता भी नहीं खोल पाईं थीं. पिछले चुनाव में इन मुस्लिम बहुल ज़िलों की कई सीटों पर एसपी और बीसपी के मुस्लिम उम्मीदवार आमने सामने थे. इससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ और बीजेपी को इस इलाक़े में 38 सीटें यानि कुल सीटों की 70 प्रतिशत सीटें मिलीं. जबकि पहले चरण की 58 में से बीजेपी को 53 यानि 91 प्रतिशत सीटें मिलीं थीं. इस लिहाज से दूसरा चरण बीजपी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.
55 सीटों पर 7 मुस्लिम उम्मीदवार
दूसरे चरण वाली 55 सीटों पर एसपी, बीसपी, कांग्रेस और ऑल इंडिया मजलिस—इत्तहादुल मुस्लमीन के 77 उम्मीदवार चुनाव मदान मे हैं. एसपी गठबंधन के 19, बसपा के 23, कांग्रेस के 21 और ओवैसी की पार्टी के 19 मुस्लिम उम्मीदवार हैं. इनमें से 11 सीटों पर एसपी-बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवार आमने सामने हैं. इनमें से 4 सीटों पर कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी के भी मुस्लिम उम्मीदवार हैं. इन चार सीटों पर मुस्लिम वोटों के लिए मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच चौतरफा मुकाबला है. छह सीटों पर कांग्रेस का मुस्लिम उम्मीदवार एसपी-बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवीरों के सामने है. तीन सीटों पर ओवैसी की पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार इनके सामने हैं. ज़ाहिर है इन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों की आपसी टक्कर से बीजेपी फायदा उठाने की कोशिश करेगी.
मुरादाबाद ज़िले में है दिलचस्प मुक़ाबला
दूसरे चरण में मुरादाबाद ज़िले में दिलचस्प मुकाबले के आसार हैं. ज़िले की सभी छह सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों की आपसी टक्कर है. चार सीटों पर सपा गठबंधन, बसपा, कांग्रेस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के मुस्लिम उम्मीदवार आमने सामने हैं. मुरादाबाद शहर, मुरादाबाद ग्रामीण, कुदंरकी और कांठ सीट पर इन चारों मुख्य पार्टियों के मुस्लिम उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं. पिछली बार कांठ और मुरादाबाद नगर बीजेपी जीती थी और ज़िले की बाक़ी चारों सीटें एसपी जीती थी. इस बार चार मुस्लिम उम्मीदवारों के आपसी टकराव के चलते इन पर एसपी की राह मुश्किल हो सकती है. ज़िले में बाक़ी बची दो सीटों में से ठाकुरद्वारा पर सपा गठबंधन और बसपा के साथ कांग्रेस का मुस्लिम उम्मीदवार त्रिकोणीय मुक़ाबला बना रहा है तो बिलारी सीट पर सपा गठबंधन के मुस्लिम उम्मीदवार की राह ओवैसी की पार्टी का मुस्लिम उम्मीदवार मुश्किल बनाने की कोशिश कर रहा है.
'देवबंद' और 'बरेली' का असर
दुनियाभर में सुन्नी मुसलमानों के दो बड़े मसलकों के गढ़ में दूसरे चरण में ही मतदान होना है. देवबंदी मसलक का केंद्र सहारनपुर के देवबंद में है तो बरेलवी मसलक का बरेली में है. सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा और मुरादाबाद के आधे हिस्से में देवबंदी मसलक को मानने वाल मुसलमान रहते हैं तो आधे मुरादाबाद, बरेली, रामपुर, बदायूं में बरेलवी मसलक के मुसलमानों का दबदबा है. बरेलवी मसलक के सबसे बड़े धार्मिक नेता मौलाना तौकीर रज़ा खान कांग्रेस के साथ हैं तो देवबंद में असर रखने वाले मदनी परिवार का एक सदस्य ओवैसी की पार्टी से चुनाव मैदान में है. दोनों ही अखिलेश के खिलाफ मुखर हैं. ये देखना दिलचस्प होगा कि धर्मगुरु अपने गढ़ में सियासत को कितना प्रभावित कतर पाते हैं. आमतौर पर मुसलमान को मसलक उनके वोटिंग्स पैटर्न में आड़े नहीं आता.
खल रही है आज़म ख़ान की कमी
दूसरे चरण के चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के फायरब्रांड नेता आज़म ख़ान की कमी खल रही है. पिछले कई चुनाव में आज़म ख़ान अपने विवादित बयानों को लेकर खूब चर्चा में रहे हैं. लेकिन इस बार वह राजनीतिक परिदृश्य से पूरी तरह गायब हैं.
यह पहला मौका है जब आजम खान चुनाव तो लड़ रहे हैं लेकिन चुनाव प्रचार से नदारद हैं. वो पिछले 2 साल से वह जेल में हैं. उन पर जेब काटने और बकरी चोरी से लेकर ज़मीन हड़पने जैसे क़रीब 100 मुकदमे दर्ज हैं. हमेशा की तरह इस बार भी वह रामपुर सदर सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं. उनका बेटा सवार सीट से मैदान में है. आज़म खान को हराने के लिए तो बीजेपी ने कोई रणनीति नहीं बनाई. लेकिन उनके बेटे को हराने के लिए अपना दल से एक मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिया है.
राजनीतिक विश्लेषकों की इस सीट पर खास नजर है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी अपना दल के उम्मीदवार को अपना वोट ट्रांसफर करके आज़म ख़ान के बेटे को हरवा पाती है?
किस ज़िले में कितने मुसलमान?
दूसरे चरण में मुसलमानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रहेगी. क्योंकि नौ ज़िलों में से सात में मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत 20 से लेकर 50 प्रतिशत है. उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक ही ज़िला है जहां मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है वो है रामपुर. यहां मुसलमान 50. 57% हैं. उसके बाद मुरादाबाद और संभल में 47%, बिजनौर में 43.04%, अमरोहा में 40.78%, बरेली में 34.54%, संभल में 32.88% और बदायूं में 23.26% मुस्लिम मतदाता हैं. इन ज़िलों में मुसलमानों का रुझान एसपी गठबंधन की तरफ देखा जा रहा है. लेकिन कुछ सीटों पर बीएसपी भी ताक़तवर है. दलित मुस्लिम गठज़ोड़ के चलते वो मुकाबले में आने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है. बीजेपी के लिए ये स्थिति फायदेमंद हो सकती है.
बीएसपी की ताक़त
ये बात सही है कि पिछल विधानसभा चुनाव में बीएसपी दूसरे चरण वाली 55 सीटों में से एक भी नहीं जीत पाई थी. लेकिन 2019 के लेकसभा चुनाव में वो ताक़तवर बनकर उभरी थी. तब एसपी,बीएसपी और आरएलडी का गठबंधन था. तब इस गठबंधन ने इन नौ ज़िलों की 11 लोकसभा सीटों में से 7 सीटें जीती थीं. सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा बीएसपी ने जीती थी तो रामपुर, मुरादाबाद और संभल पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की थी. इन सात सीटों के तहत 35 विधानसभा सीट हैं. इन मुस्लिम बहुल ज़िलों में बीएसपी की ताक़त को कम करके नहीं आंका जा सकता. बीएसपी के 23 मुस्लिम उम्मीदवारों में से कई काफी मज़बूत है. वो काफी मज़बूती से चुनाव मदान में डटे हुए हैं. अगर इन सीटों पर एसपी और बीएसपी के बीच मुस्लिम वोटों का बराबर का बंटवारा हुआ तो बीजेपी को फायदा हो सकता है.
कुछ दिनों पहले तक राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि चार मुख्य पार्टियों के मुस्लिम उम्मीदावरों के आपस में टकराने से दूसरे चरण में बीजेपी को फायदा हो सकता है. वो पिछले चुनाव वाला आंकड़ा फिर से हासिल कर सकती है. लेकिन पहले चरण के मतदान के बाद नज़रिया बदला है. पहले चरण में ध्रुवीकरण नहीं हुआ. मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा सपा-आरएलडी गठबंधन को मिला है. लिहाज़ा अब ये माना जा रहा है कि दूसरे चरण में भी मुसलमानों के वोट का बड़ा हिस्सा सपा गठबंधन को ही जाएगा. पिछले चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगे के हुए ध्रुवीकरण और मोदी लहर का फायदा बीजेपी को मिला था. इस इलाके में अब स्थिति एकदम अलग है. फसल की ख़रीद न होने और गन्ना बकाया भुगतान में देरी से किसान बीजपी से नाराज़ हैं. इस संकट को भांपते हुए ही बीजपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अपने सभी स्टार प्रचारकों को इन इलाकों में उतारा है. एक बात साफ है कि योगी और अखिलेश को सत्ता की चाबी हासिल करने के लिए दूसरे चरण के आग के दरिया को डूब कर ही पार करने होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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