सम्पादकीय

यूपी असेंबली इलेक्शन 2022: क्या पूर्वांचल का खांटी सपाई किला अब दरक रहा है ?

Gulabi
2 Jan 2022 4:06 PM GMT
यूपी असेंबली इलेक्शन 2022: क्या पूर्वांचल का खांटी सपाई किला अब दरक रहा है ?
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लखनऊ में साल 2021 के आखिरी दिन सपा के विधान परिषद सदस्य शतरुद्र प्रकाश को भाजपा में शामिल
उत्पल पाठक।
लखनऊ में साल 2021 के आखिरी दिन सपा के विधान परिषद सदस्य शतरुद्र प्रकाश को भाजपा में शामिल करवा कर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने बड़ी सफलता हासिल की है. बीजेपी की रणनीतिकारों के घोड़े यहीं नहीं रुके और अगले ही दिन शतरुद्र प्रकाश दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करके उन्हें मोतीचंद अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तक काशी का इतिहास देते हुए नज़र आए.
ऐसा नहीं है कि सपा से भाजपा में पहली बार कोई नेता आ रहा हो लेकिन जिस तरह एक एक दिन अलग अलग उपक्रम हुए और जिस आसानी से उनकी मुलाक़ात प्रधानमंत्री से हो गयी उसके पीछे की माया को समझ पाना फिलहाल मुश्किल है. बहरहाल, शतरुद्र प्रकाश का नाम बड़ा है , पृष्ठभूमि सम्मानित है, और साथ ही उनकी पत्नी के सगे भाई ख्यात समाजशास्त्री डॉ. आनंद कुमार के नाम और प्रतिष्ठा पर तो किसी प्रकार का संशय ही लगाया जा सकता. ऐसे में इतने बड़े समाजवादी परिवार के सिपहसालार के आने के बाद भाजपा के अंदरखाने में उल्लास अपने चरम पर है.
लोकबंधु राजनारायण की पुण्य तिथि पर भाजपा में शामिल हुए समाजवादी शतरुद्र प्रकाश
31 दिसंबर को स्वर्गीय लोकबंधु राजनारायण की 35 वीं पुण्यतिथि के दिन उनके ही परम शिष्य एवं राजनैतिक सहयोगी शतरुद्र प्रकाश को भाजपा में शामिल करवाना भले ही एक दुर्लभ संयोग हो या भाजपा के रणनीतिकारों द्वारा रची गयी एक योजना लेकिन यह झटका यकीनन समाजवादी पार्टी को कई दिशाओं में नुकसान पहुंचाएगा. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से सामाजिक जीवन में प्रवेश करने वाले शतरुद्र प्रकाश सिर्फ पार्टी से ही नहीं बल्कि मन से भी समाजवादी थे. लोकबंधु राजनारायण से लेकर सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव तक के बगल में बैठने वाले समाजवादी. ऐसे में उनका भाजपा में जाना इस बात का सीधा संकेत है कि समाजवादी पार्टी जातिगत एवं अन्य क्षेत्रीय समीकरणों से चुनाव जीतने की जुगत भले बैठा रही है लेकिन संगठनात्मक दृष्टिकोण से पार्टी के कद्दावर स्तम्भ अब खिसक रहे हैं. स्पष्ट है कि आज के दौर में समाजवादी पार्टी को पूर्वांचल में हो रहा संगठन के बाजीगरों का अभाव भाजपा को गाहे बगाहे फायदा पहुंचा सकता है.
शतरुद्र प्रकाश का राजनैतिक जीवन
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का चिंतन शिविर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में आयोजित था , बतौर छात्र शतरुद्र प्रकाश ने पहली बार डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों को सुना और समाजवादी युवजन सभा की सदस्यता हासिल की. 1969 में विश्व विद्यालय में जनतांत्रिक आंदोलन चलाने के आरोप में पहली बार जेल गए, उसके बाद 1970 में राष्ट्रपति भवन के सामने प्रदर्शन करने के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद हुए. लगभग 30 बार गिरफ्तार एवं बीस बार जेल जाने के बीच ही आपातकाल के दौरान उनके घर की तीन बार कुर्की हुयी. वर्ष 1972 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से निष्कासित होने के बाद वे वाराणसी की कैंट विधानसभा सीट से 1974 में पहली बार भारतीय क्रांति दल के टिकट से चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने.
शतरुद्र प्रकाश उस विधानसभा में निर्वाचित हुए सबसे युवा विधायक थे. इसके बाद वे इसी सीट से 1977 में जनता पार्टी के टिकट से विधायक चुने गए. 1985 में लोक दल के टिकट से तीसरी बार इसी सीट से विधायक चुने गए, 1989 में जनता दल के टिकट से चौथी बार इसी सीट से निर्वाचित हुए. 1991 एवं 1993 में हुए विधानसभा चुनावों में शतरुद्र प्रकाश क्रमशः जनता पार्टी एवं समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े लेकिन इन दोनों ही चुनावों में उस दौर के चर्चित नेता अतहर जमाल लारी का रिकार्ड वोटों से दूसरे स्थान पर आने और भाजपा की ज्योत्सना श्रीवास्तव को लगातार मिली जीत के कारण तीसरे एवं चौथे स्थान पर पहुंच गए. हालांकि सपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से नजदीकियों का लाभ सपा की हर कार्यकाल में मिला और उन्हें नियोजन, कारागार एवं होमगार्ड मंत्री समेत राज्यमंत्री पद का दर्जा मिलने के अतिरिक्त कई अन्य पदों से भी नवाज़ा गया.
शतरुद्र प्रकाश के भाजपा में जाने के सवाल पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर उनके करीबी मित्र एवं वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं "देखिये मेरे पास शब्द नहीं हैं और न ही मैं उनके इस कदम की व्याख्या कर पाने की मनोस्थिति में हूं. लेकिन जहां तक राजनैतिक असर पड़ने का सवाल है तो इतना स्पष्ट कह सकता हूं कि समाजवादी खेमे पर यह एक तरह का ऐसा शांत हमला हुआ है जिसमें धमाका नहीं बल्कि एक सर्द कम्पन है और इस कम्पन का असर चौतरफा होगा. ऐसे में वे विधान सभा चुनाव लड़ें या भाजपा उनके दोबारा एमएलसी बना दे या फिर उन्हें कोई और जिम्मेदारी मिले तो भी इस बात से उन्हें या किसी को फर्क नहीं पड़ता है क्यूंकि उस रिक्त स्थान को भर पाना सपा के लिये फिलहाल दुष्कर ही नहीं बल्कि असंभव है."
शतरुद्र प्रकाश के भाजपा में जाने के ठीक एक महीना पहले बलिया से सपा के एमएलसी एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के पौत्र रवि शंकर सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह भी तीन अन्य विधान परिषद सदस्यों के साथ भाजपा का दामन थाम चुके हैं. गौरतलब है कि चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर पहले ही सपा छोड़कर भाजपा से राज्य सभा सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं. भाजपा के अंदरखाने में ऐसी चर्चा है कि पप्पू सिंह के साथ शामिल हुए सीपी चंद, रमा निरंजन और नरेंद्र भाटी जैसे नेताओं को आने वाले एमएलसी चुनाव एवं कुछ को विधान सभा चुनाव में टिकट दिए जा सकते हैं.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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