- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- यूपी असेंबली इलेक्शन...
x
यूपी असेंबली इलेक्शन 2022
संयम श्रीवास्तव।
रविवार को दिल्ली में एक मीटिंग के बाद उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा (Shrikant Sharma) कह रहे थे कि यह एक अफवाह है, दुष्प्रचार है, विपक्ष के द्वारा फैलाया गया है कि ब्राह्मण नाराज हैं. ऐसा कुछ नहीं है, कोई नाराजगी नहीं है और सबसे ज्यादा ब्राह्मणों का सम्मान यदि कहीं है तो वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) में ही है. बड़ी संख्या में ब्राह्मण सरकार में मंत्री हैं. उत्तर प्रदेश के एक कद्दावर ब्राह्मण मंत्री को यह बयान क्यों देना पड़ गया? हो सकता है कि श्रीकांत शर्मा जो बात कर रहे हों सही हो, पर शायद ऐसा नहीं है. क्योंकि पार्टी को भी शायद ऐसा लग रहा है कि ब्राह्मण पार्टी से दूर जा रहे है. इसलिए 4 सदस्यीय कमेटी बनाई गई है जो इस समुदाय की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है.
पार्टी में ब्राह्मण कम्युनिटी (Brahmin Community) को मनाने की कवायद के लिए कमेटी बनाना वैसे ही है जैसे कोई सरकार किसी मुद्दे से बचने के लिए उसे कुछ दिन और टालने के इरादे से किसी कमेटी को भेज देती है. जहां सरकार को एक्शन लेना होता है वहां न कोई नियम फॉलो किया जाता है न उस पर बहस ही की जाती है. शायद कुछ ऐसे ही ब्राह्मणों को मनाने का क्रम है. यहां शायद बस संदेश देने की कोशिश की जा रही है. कमेटी को जिन बातों पर फोकस करने के लिए कहा गया है उसे देखकर आप समझ सकते हैं कि ये कवायद कितना सफल होने वाला है. ब्राह्मण समुदाय की वैसे भी सबसे जागरूक लोगों में गिनती होती है. पार्टी अगर ये समझती है कि समान्य वर्ग के आरक्षण, मंदिरों के जीर्णोद्धार की बात समुदाय को समझा कर बहला-फुसला लेगी, तो दिल को बहलाने के लिए गालिब ये ख़याल अच्छा है. या तो पार्टी ब्राह्मण कम्युनिटी का दर्द नहीं समझ पा रही है या जानबूझकर अनदेखा कर रही है.
पहले समझना होगा ब्राह्मण चाहते क्या हैं?
दरअसल ब्राह्मणों को कोई आरक्षण या सरकारी योजनाओं का लाभ जैसी चीजें नहीं चाहिए सरकार से. ब्राह्मण शुरू से ही अपने सम्मान के लिए जीते आएं हैं. उनको लगता है कि उनके सम्मान में कमी हुई है. दरअसल कांग्रेसी सरकारों ने एक परंपरा बनाई थी, सरकार और संगठन के पदों को ठाकुर और ब्राह्मण में बांटने का जो अब उन्हें नहीं दिख रहा है. अगर मुख्यमंत्री राजपूत बन गया तो संगठन अध्यक्ष ब्राह्मण होता था. मंडल रिपोर्ट लागू होने के पहले तक मेन स्ट्रीम राजनीति में ब्राह्मण और ठाकुर ही होते थे. पर अब चीजें बदल गईं हैं. ब्राह्मणों की पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस की तीन राज्यों में सरकार है और कहीं भी ब्राह्मण नंबर एक की कौन कहे, नंबर दो पर भी नहीं है. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में यही हाल है. ओबीसी और दलित आज कांग्रेस की भी प्रॉयरिटी में हैं.
आज यूपी में कांग्रेस भले ही यह कहते फिरे कि उसने प्रदेश में 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए, पर आज की स्थित में ये संभव नहीं है. यही कारण है कि कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष खुद पिछड़ी जाति से है. आज किसी भी पार्टी की ये औकात नहीं है कि वो ओबीसी को दरकिनार कर सके. पिछड़ी जाति को नेता बनाना ही है चाहे वो भले ही मुखौटा ही रहे. ये बात यूपी के ब्राह्मण भी अच्छी तरह समझते हैं. इसके अलावा ब्राह्मणों को जो चाहिए वो सब बीजेपी सरकार कर रही है. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, हिंदू धर्म की प्रभुता आदि के लिए जो भी काम हो रहा है वो ब्राह्मण शुरू से चाहता रहा है. जहां तक सरकार में मंत्री और विधायक या सांसद की बात है आज भी सभी पार्टियों की तुलना में ब्राह्मणों की संख्या बीजेपी मे सबसे ज्यादा है.
क्या बीजेपी में ब्राह्मणों को तरजीह नहीं दी जा रही है?
तो फिर सवाल उठता है कि आखिर ब्राह्मणों की नाराजगी क्या है? पहला- पश्चिमी यूपी की राजनीति के पिछले 4 दशकों से गवाह रहे वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि वेस्ट यूपी के 3 ब्राह्मण नेताओं को पार्टी ने वेस्ट किया है. गौतमबुद्धनगर से सांसद और पूर्व मंत्री महेश शर्मा के पास पिछले 3 साल से कोई काम नहीं है, अब उन्हें ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए बनाई कमेटी में रखा गया है. अलीगढ़ से लगातार दूसरी बार चुने गए सांसद सतीश गौतम को भी सरकार में जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई. उत्तर प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी कई सालों से समय काट रहे हैं. इस बीच जतिन प्रसाद जैसे आधारहीन लोग बाहर से आकर मलाई काट रहे हैं. यही बात कुछ ब्राह्मणों को खटकती है. पूर्व आईएएस अरविंद शर्मा को जिस तरह मुख्यमंत्री योगी ने किनारे लगाया हुआ है उसका संदेश भी गलत गया है. विनोद शर्मा कहते हैं कि ब्राह्मणों को लगता है कि जिस पार्टी को उन्होंने अपने खून से सींचा है उन्हें उस पार्टी में ही महत्व नहीं मिल रहा है.
दूसरा – इसी तरह पूर्वी यूपी के कद्दावर ब्राह्मण नेताओं कलराज मिश्रा, रमापति राम त्रिपाठी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को यथोचित सम्मान न मिलना. कलराज मिश्रा जैसे नेता को पहले हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया बाद में राजस्थान भेजा गया. उन्हीं के साथ पार्टी के बाहर से आए उनसे कम अनुभवी नेता फागू चौहान को बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. मुरली मनोहर जोशी जैसे सीनियर नेता को घर बैठने पर मजबूर होना पड़ा. रमापति राम त्रिपाठी भी सांसद केवल इसलिए बन सके क्योंकि उनके पुत्र को जूता कांड के चलते टिकट नहीं दिया गया था.
तीसरे पूर्वी यूपी के ब्राह्मणों को लगता है, जबसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुर्सी पर बैठें हैं ब्राह्मणों की अनदेखी हो रही है. ऐसा ब्राह्मण क्यों सोचते हैं इसके लिए यूपी और गोरखपुर के इतिहास में जाना होगा. हो सकता है कि लोकल लेवल पर ठाकुरों को कहीं महत्व मिल गया हो पर स्टेट लेवल पर ऐसी बात नहीं की जा सकती है. लखनऊ के एक नेशनल डेली में कार्यरत पत्रकार बताते हैं कि ब्राह्मणों की नाराजगी की बात विपक्ष का एक शिगूफा है. प्रदेश सरकार में करीब 9 ब्राह्मण मंत्रिमंडल में हैं, वो भी महत्वपूर्ण विभागों में. ब्राह्मणों के हित वाले सभी कार्य सरकार के एजेंडा में हैं. सवर्णों को आरक्षण, मंदिरों का उद्धार, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद आदि की बात ब्राह्मण बहुत पहले से करते रहे हैं, जो अब जाकर साकार हुए हैं. प्रदेश स्तर के सभी बड़े अधिकारी जो योगी की कोर टीम में हैं ब्राह्मण समुदाय से ही आते हैं.
बीजेपी में दूसरी पार्टियों से ज्यादा कद्दावर ब्राह्मण नेता
पार्टी में कद्दावर ब्राह्मण नेताओं की कमी नहीं है. अगर पार्टी अपने इन नेताओं में से कुछ को ब्राह्मणों को जोड़ने और पार्टी के लिए भरोसा जीतने के लिए प्रोजेक्ट कर दे तो कहानी ही बदल जाएगी. क्योंकि अभी भी दूसरी पार्टियों जैसे समाजवादी पार्टी या कांग्रेस में बीजपी जैसे कद वाले ब्राह्मण नेताओं का अभाव है. पार्टी में उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक, हरीश द्विवेद्वी, रमापतिराम त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, महेंद्रनाथ पांडेय, पत्रकार से नेता बने शलभमणि त्रिपाठी, कांग्रेस से अभी कुछ महीने पहले आए जतिन प्रसाद और हाल में नए ब्राह्मण नेता बनकर उभरे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी भी हैं.
समाजवादी पार्टी की सरकार में ब्राह्मणों की क्या हैसियत रही?
बीजेपी से नाराज ब्राह्मण मतदाताओं को पता है कि समाजवादी पार्टी में उसकी क्या हैसियत थी. पार्टी नंबर1, नंबर2, नंबर 3, नंबर 4, नंबर5 तक भी कोई ब्राह्मण नेता नहीं था. लोक सेवा आयोग से लेकर सभी प्रमुख रोजगार भर्तियों वाले सभी आयोगों पर एक विशेष जाति के लोग काबिज थे. विधायक, सांसद और मंत्रियों की गिनती भी बीजेपी के मुकाबले में आधी से भी कम रही है. आज के डेट में ब्राह्मणों के हितैषी होने का दावा कर रही समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण जिलाध्यक्षों की संख्या गिनती के ही होंगे. और सबसे बड़ी बात एंटी ब्राह्मण सेंटीमेंट को उभार कर ही पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के ध्रुवीकरण की राजनीति यहां होती रही है. चुनाव के समय कहें या मौका देखकर कि ब्राह्मण नाराज हैं परशुराम की मूर्ति लगवाने से अगर ब्राह्मण कम्युनिटी खुश हो जाएगी ये केवल भ्रम ही है. समाजवादी पार्टी के मुकाबले बहुजन समाज पार्टी में ब्राह्मण कम से कम नंबर 2 में तो रहा ही है.
Next Story