सम्पादकीय

आखिर कब तक

Subhi
10 July 2021 3:37 AM GMT
आखिर कब तक
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किसान आंदोलन खिंचता जाना चिंता की बात है। आंदोलन को सात महीने से ज्यादा हो चुके हैं।

किसान आंदोलन खिंचता जाना चिंता की बात है। आंदोलन को सात महीने से ज्यादा हो चुके हैं। अभी तक भी सरकार या किसानों की ओर से कोई ठोस पहल होती दिखाई नहीं दी। दोनों पक्ष अपनी-अपनी ऐंठ में हैं। दोनों ही राजनीतिक नफे-नुकसान को देखते हुए रणनीतियां बना रहे हैं। सरकार की ओर से कृषि मंत्री ने फिर दो टूक शब्दों में कह दिया है कि कृषि कानून वापस नहीं होंगे। साथ ही यह भी कि किसान प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद संशोधन तो हो सकते हैं, पर कानून वापसी का सवाल पैदा नहीं होता। जब-तब ऐसा ही जवाब सरकार के मंत्री पहले भी देते रहे हैं। इससे यह तो साफ है कि सरकार ठान कर बैठी है कि भले किसान महीनों सड़कों पर गुजार दें, धरने-प्रदर्शन करते रहें, उसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। ऐसा ही रवैया किसानों ने भी अपना रखा है कि कानून वापसी से कम पर नहीं मानेंगे। दोनों पक्षों की ऐसी हठधर्मी से तो गतिरोध और जटिल रूप ही धारण करेगा।

गौरतलब है कि किसानों ने मानसून सत्र के दौरान संसद घेरने का एलान कर दिया है। अभी किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है, तब से सीमाएं सील हैं। सरकार को लगता है कि राजधानी में किसानों के घुसने से कहीं फिर वैसी अराजकता पैदा न हो जाए जैसी इस साल छब्बीस जनवरी को देखने को मिली थी। इसलिए अब संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले किसानों को रोकना चुनौती बन गई है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित देश के तमाम इलाकों में महापंचायतों और धरने-प्रदर्शनों के जरिए किसान अपनी एकजुटता बढ़ाते ही रहे हैं

महापंचायतों में बड़ी संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। इसे हलके में नहीं लिया जा सकता। हरियाणा में आए दिन मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के मंत्रियों और विधायकों, सांसदों तक को जगह-जगह किसानों के जोरदार विरोध से दो-चार होना पड़ रहा है। इससे साफ है कि किसान कृषि कानूनों को लेकर सरकार के रुख से बेहद खफा हैं।

सरकार दावा करती रही है कि नए कृषि कानून पूरी तरह से किसानों के हित में हैं। इनके लागू होने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी। साथ ही मंडियों को भी खत्म नहीं करने का भरोसा दे रखा है। लेकिन सवाल है कि ये बातें किसानों के गले क्यों नहीं उतर रहीं? आखिर क्यों किसान को लग रहा है कि नए कृषि कानून उसके हितों के खिलाफ हैं? सवाल है कि अगर सरकार यह लिख कर देने को तैयार है कि एमएसपी खत्म नहीं होगा तो फिर वह इसके लिए कानून बनाने से क्यों बच रही है? इसी से संदेह पैदा होता है कि इन कानूनों के अंदर कोई खोट जरूर है।

किसानों की मांग है कि एमएसपी के बारे में कानून बने। हैरानी की बात तो यह है कि सरकार किसानों को अब तक यह भरोसा नहीं दिला पाई कि ये कानून उनके हित में हैं। बेहतर हो किसानों को समझाने के लिए ऐसी कोई सर्वदलीय समिति ही बना दी जाए जिसमें कृषि मामलों के जानकार मंत्री, सांसद और कृषि अर्थशास्त्री हों, और वह समूह किसानों को संतुष्ट कर सके। लचीले रुख की दरकार तो किसानों की तरफ से भी है। जटिल मुद्दों का समाधान सिर्फ बातचीत से ही निकल सकता है। वरना समाधान की दिशा में बढ़ना दिनोंदिन मुश्किल होता चला जाएगा।


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