सम्पादकीय

बच्चों के भविष्य का अनसुलझा सवाल, परीक्षा प्रणाली में बदलाव समय की मांग

Gulabi
21 April 2021 12:03 PM GMT
बच्चों के भविष्य का अनसुलझा सवाल, परीक्षा प्रणाली में बदलाव समय की मांग
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कोरोना काल में छात्रों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि

प्रो. विजय कुमार सिंह। कोरोना काल में छात्रों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि वे एक जगह पर सामूहिक रूप से एकत्रित न हों, परीक्षा भवन तक आने-जाने के लिए कोई यात्र न करें। दरअसल बोर्ड परीक्षा जिस तरह से आयोजित की जाती है, उसमें शारीरिक दूरी जैसे नियमों का समुचित पालन करवाना मुश्किल था और मौजूदा हालात में परीक्षाएं कराने पर कोरोना के फैलने का खतरा ज्यादा था। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान दूसरी लहर में रोजाना संक्रमण के मामले ढाई लाख को पार कर चुके हैं। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश सहित कई राज्य कोविड संक्रमण की दूसरी लहर से बहुत अधिक प्रभावित हैं। कई अन्य राज्यों में भी स्थिति खराब होने की ओर बढ़ रही है। ऐसे में परीक्षा कराना बड़ी चुनौती थी।


विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि आने वाले दिनों में कोरोना के प्रतिदिन तीन लाख से ज्यादा मामले आ सकते हैं। आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों की टीम ने गणितीय मॉडल के आधार पर कहा है कि देश में कोरोना की लहर 25 अप्रैल के आसपास पीक पर होगी। चूंकि 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के बच्चों की कुल संख्या को अगर देखा जाए तो यह 50 लाख से ज्यादा होती है, लिहाजा इतनी बड़ी तादाद में ऐसे समय में परीक्षाओं का आयोजन करवाना खतरे से खाली नहीं था।
वैसे यह पहला मौका है जब सीबीएसई ने 10वीं की परीक्षा पूरी तरह रद कर दी हो। सीबीएसई द्वारा कहा गया है कि अब आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर 10वीं के नतीजे तैयार किए जाएंगे। यानी प्री बोर्ड और सेमेस्टर के आधार पर हुई परीक्षाओं के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा एवं इसी आधार पर परिणाम तैयार होगा। अच्छी बात यह है कि अगर छात्र इस मूल्यांकन से असंतुष्ट हुए तो वे स्थिति सामान्य होने पर परीक्षा दे सकेंगे। कहा जा सकता है कि सरकार ने छात्रों के हितों का भी ख्याल रखा है। हालांकि सीबीएसई द्वारा 10वीं के बच्चों को आगे प्रमोट करने को लेकर अभिभावकों के मन में तमाम तरह के सवाल और शंकाएं अभी भी हैं। सीबीएसई को इन शंकाओं को दूर करने पर ध्यान देना चाहिए।
इसमें दो राय नहीं कि 10वीं के छात्रों को कक्षा 11 में प्रमोट कर देने के कुछ नुकसान भी होंगे। मसलन 11वीं में विज्ञान, कला और वाणिज्य विधा का आधार अभी तय नहीं हो पाएगा। शिक्षकों के फेवरेटिज्म का खतरा भी रहेगा। इस बात में भी सच्चाई है कि परीक्षाओं के रद करने से उन मेहनतकश विद्याíथयों को जरूर निराशा हुई होगी जिन्होंने अच्छे अंक लाने के लिए दिन रात पिछले एक साल से मेहनत की थी। लेकिन सरकार की चिंता भी जायज है कि परीक्षाओं के लिए बच्चों के जीवन को खतरे में नहीं डाला जा सकता। बच्चे देश का भविष्य हैं और देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
विकल्प पर हो विचार : सीबीएसई बोर्ड की 12वीं की परीक्षा रद करने के बजाय स्थगित करने के निर्णय को अभी ज्यादा उचित कहा जा सकता है। हम अक्सर देखते हैं कि 12वीं के अंकों के आधार पर कोई छात्र मेडिकल, इंजीनियरिंग, प्रशासन, अकाउंटेंट, विज्ञानी या फिर कुछ और करियर का चयन करता है। ऐसे में प्रयास तो यही होना चाहिए कि जून तक अगर स्थिति सामान्य होती है तो 12वीं की परीक्षा ली जाए। अगर हालात सामान्य नहीं होते हैं तो 10वीं की तर्ज पर 12वीं के बच्चों को भी आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर अंक जारी किए जा सकते हैं। कोरोना के संकट को देखते हुए शिक्षाविदों के एक तबके का मानना है कि सरकार को जून महीने में 12वीं की मैनुअल परीक्षा कराने की बजाय वर्चुअल परीक्षा करवाने का प्रबंध करने पर विचार करना चाहिए। लेकिन बड़ी दिक्कत यह है कि हमारे देश में जहां करीब 46 प्रतिशत छात्रों के पास ऑनलाइन परीक्षा के लिए उपकरण ही न हों, करीब 32 प्रतिशत बच्चों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं हो, ऐसे में ऑनलाइन परीक्षा के समुचित प्रबंध करना बेहद मुश्किल है।
अभी कोई भी कहने की स्थिति में नहीं है कि जून में कोरोना संक्रमण की क्या स्थिति बनेगी, लेकिन उचित यही रहेगा कि शिक्षा प्रशासक हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहें। यह बात बिल्कुल सही है कि बार-बार परीक्षाएं टालने और अगली क्लास में प्रमोट कर देने का सीधा असर बच्चों के भविष्य पर पड़ता है, वो किताबों से दूर होने लगते हैं। या फिर बच्चे अपने भविष्य को लेकर अधिक चिंतित होने लगते हैं। ऐसे में इस कठिन वक्त में शिक्षक और अभिभावक बोर्ड परीक्षा के छात्रों का मनोबल बनाए रखें और उन्हें हर तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित करें। खासकर 12वीं के छात्रों को मानसिक रूप से मजबूत रखने की आवश्यकता है। साथ ही सीबीएसई शिक्षा विशेषज्ञों व मनोविज्ञानियों की मदद लेकर 12वीं की परीक्षा से जुड़ी समस्याओं का हल निकाले। अभी 12वीं की परीक्षा स्थगित होने से एक तरफ छात्रों पर परीक्षा का तनाव बना हुआ है, दूसरी तरफ विद्यार्थी अपने भविष्य की योजना को लेकर भी असमंजस में हैं। अगर कक्षा 12 के परिणाम को भी आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर जारी किया जाता है तो उच्च शिक्षा के डिग्री कोर्स जैसे बीए, बीएससी और बीकॉम में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा होनी चाहिए।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा करवाने का सुझाव दिया गया है। इसे जल्द लागू करने की जरूरत है। एक अहम बात यह भी है कि कोरोना के विषम संकटकाल में भी देशभर के अलग-अलग शिक्षा बोर्ड को परीक्षा, परिणाम और पाठ्यक्रम के मामले में भिन्न-भिन्न नीति पर चलने की क्या जरूरत है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि 2021 के लिए केंद्र और राज्यों के सभी शिक्षा बोर्ड आपसी विचार-विमर्श के बाद एक जैसे फैसले लें। इससे अलग-अलग शिक्षा बोर्ड के कारण बनने वाली भ्रम की स्थिति भी दूर होगी।
विचारणीय विषय यह भी है कि पिछले वर्ष जिस प्रकार से कोविड के कारण परीक्षाओं पर गंभीर प्रभाव देखा गया था, उसे देखते हुए ऑनलाइन परीक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान देने की जरूरत थी। यदि इस तरह की व्यवस्था पर समुचित ध्यान दिया गया होता, तो इस साल की बोर्ड परीक्षा रद करने की नौबत नहीं आती। अहम सवाल यह है कि अगर कोरोना का असर ऐसे ही अगले वर्ष रहा तब भी क्या बोर्ड परीक्षा रद की जाएगी? समय की मांग को देखते हुए परीक्षाएं आयोजित कराने वाले बोर्डो को नए सिरे से इस पर विचार करना चाहिए कि कैसे हम ऑनलाइन परीक्षा की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
कोरोना महामारी ने हर तबके के लोगों की जिंदगियों पर गंभीर असर डाला है। अगर बात शिक्षा जगत में कोविड महामारी के प्रभाव की की जाए तो यहां भी जख्म बड़े गहरे हैं। प्राथमिक हो माध्यमिक या उच्च शिक्षा, छात्रों का पठन-पाठन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस महामारी ने शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं को भी नए सिरे से सोचने और मौजूदा शैक्षिक नीतियों को फिर से तैयार करने के लिए मजबूर कर दिया है। लंबे अरसे से यह बहस चली आ रही है कि क्या तीन घंटे की बोर्ड परीक्षा से किसी छात्र की योग्यता और काबिलियत को मापा जा सकता है। आज कोरोनाकाल में पुन: एक बार परीक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। कहा जा सकता है कि महामारी की विषम परिस्थितियों ने एक अवसर दिया है जिसमें नई परीक्षा प्रणाली पर बात हो ताकि छात्रों के समग्र मूल्यांकन का बेहतर तरीका सामने निकल कर आए।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कक्षा 10 तथा कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव के लिए सुझाव दिए गए हैं। बोर्ड परीक्षाओं की अहमियत घटाने की बात कही गई है। अच्छी बात है कि बोर्ड परीक्षाओं का दबाव कम करने के लिए रटने की बजाय विषयों के कॉन्सेप्ट और ज्ञान को महत्व दिया गया है। कुछ इस तरह के बदलाव की सिफारिश की गई है ताकि बोर्ड परीक्षा पास करने के लिए छात्रों को कोचिंग की आवश्यकता न पड़े। ऐसे में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नवीन प्रविधानों को अगले शैक्षणिक सत्र तक लागू करने पर विचार करना चाहिए। एक अरसे से कहा जा रहा है कि वर्तमान परीक्षा प्रणाली जड़ होकर महज एक नंबर गेम में बदल गई है। जो जितना बेहतर तरीके से प्रश्नों के उत्तर रट लेता है वह उतने ज्यादा अंक अर्जति कर लेता है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली की कड़वी सच्चाई यह है कि यह बच्चों के केवल याददाश्त क्षमता का मापन करती है, जबकि एक बच्चे का व्यक्तित्व मात्र कुछ सवालों के मानक उत्तरों या फिर पढ़ाए गए तथ्यों को लिख देने मात्र से कहीं अधिक होता है।
वर्तमान परीक्षा प्रणाली का ढांचा कुछ इस तरह का है कि बोर्ड परीक्षाओं में 95 से 100 प्रतिशत हासिल करने की अंधी दौड़ मची है तथा 95 प्रतिशत से कम अंक पाने वाले छात्र औसत कहलाने लगे हैं। कई बार विद्यार्थी परीक्षा में अपनी उम्मीदों से कुछ कम अंक आने पर निराश तथा हताश हो जाते हैं और अपनी जिंदगी ही दांव पर लगा देते हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश में मानसिकता यह है कि केवल अच्छे अंक लाने वाले ही सफल हैं, जबकि वास्तविकता में ज्ञान का अंकों से कोई खास लेना-देना नहीं होता है। सबसे अव्वल दर्जे के अंक के आधार पर इस बात की कतई गारंटी नहीं दी जा सकती कि इन अंकों के साथ पास बच्चा व्यावहारिकता में उतना ही योग्य भी होगा। लेकिन आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य अंकों की इस दौड़ में कहीं गुम होकर रह गया है। छात्रों को डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर बनने के लिए खूब प्रेरित किया जाता है, परंतु जीवन के संघर्षो के प्रति संवेदनशील, मजबूत, सुदृढ़ इंसान बनने के लिए न के बराबर प्रेरित किया जाता है।
बढ़ते तनाव को कम करने के लिए स्कूलों में भी समय-समय पर बच्चों की काउंसलिंग होनी चाहिए, ताकि वे मानसिक रूप से धैर्यवान, सबल और इस हद तक मजबूत बन सकें कि जीवन की संभावित कठिनाइयों, परेशानियों के समक्ष सहज रह सकें। अभिभावकों को भी चाहिए कि नंबर गेम की बजाय बच्चे की प्रतिभा को समङों। तथा उन्हें अपनी रुचि के अनुरूप पढ़ने और करियर का चुनाव करने की आजादी दें।


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