सम्पादकीय

20 साल बाद विदाई

Subhi
1 Sep 2021 3:36 AM GMT
20 साल बाद विदाई
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अमेरिका ने 31अगस्त की तय समयसीमा से एक दिन पहले ही अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लिया। जिन हालात में और जिस तरह से अमेरिकी सेना वापस गई है

अमेरिका ने 31अगस्त की तय समयसीमा से एक दिन पहले ही अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लिया। जिन हालात में और जिस तरह से अमेरिकी सेना वापस गई है, उसे जैसे-तैसे अपना पिंड छुड़ाना ही कहेंगे। बीस वर्षों के इस अभियान के समापन के बाद न तो अमेरिकी सेना की साख में कोई बढ़ोतरी हुई है और न ही अमेरिकी सरकार किसी भी रूप में अपने इस अभियान की सफलता का दावा करने की स्थिति में है। इस सबसे लंबे अमेरिकी युद्ध में 2500 अमेरिकी सैनिक मारे गए और 2,40,000 अफगानों ने जान गंवाई। करीब 2 ट्रिलियन डॉलर खर्च हुए इस पर। और हासिल क्या रहा?

अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से खदेड़ कर हाशिये पर पहुंचा दिया था, लेकिन आज वही तालिबान अफगानिस्तान के पहले से भी ज्यादा हिस्से पर काबिज हो चुके हैं। 15 अगस्त को काबुल में तालिबान के प्रवेश के बाद से अमेरिका और मित्र देशों द्वारा 1,23,000 से ज्यादा लोगों को काबुल से एयरलिफ्ट करवाया गया है। बावजूद इसके, हजारों लोग अभी फंसे हैं और इनमें अमेरिकी नागरिक भी हैं। अब यह सोचा जा रहा है कि कैसे इन लोगों को वहां से सुरक्षित निकाले जाने की कोई व्यवस्था की जाए। इसी क्रम में सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पारित कर तालिबान से कहा कि वह अफगानिस्तान से निकलने के इच्छुक तमाम लोगों को अपनी मर्जी से कहीं भी जाने देने के अपने वादे का सम्मान करें।
इस प्रस्ताव में तालिबान से यह भी कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य एजेंसियों की टीमों को वहां आकर सुरक्षित ढंग से मानवीय सहायता उपलब्ध कराने दें और यह भी कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए न होने दें। इसके साथ ही अफगान आबादी के मानवाधिकारों और महिलाओं व अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को भी कहा गया है। हालांकि सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव की भाषा काफी नरम बताई जा रही है, बावजूद इसके चीन और रूस इस प्रस्ताव को पारित करने में शामिल नहीं रहे। जहां तक भारत की बात है तो तालिबान की तरफ से ऐसे कई संकेत दिए गए हैं कि भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने में उसकी पूरी दिलचस्पी है।
इन संकेतों को संज्ञान में जरूर लिया जा रहा है और लिया जाना चाहिए, लेकिन ये काफी नहीं हैं। अभी तक वहां सरकार गठन की कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। यह साफ नहीं हुआ है कि तालिबान अकेले सरकार बनाएंगे या अन्य ग्रुपों को भी उसमें शामिल किया जाएगा। उन्हें अपने व्यवहार से यह साबित करना होगा कि वे उन अपेक्षाओं पर खरा उतर रहे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ताजा प्रस्ताव के जरिए विश्व बिरादरी ने उनके सामने रखी है। इन बिंदुओं पर नजर बनाए रखते हुए ही भारत अफगानिस्तान को लेकर सही समय पर उपयुक्त फैसला कर सकता है।

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