सम्पादकीय

अग्निपथ योजना का अनावश्यक विरोध: सेना का आधुनिकीकरण अति आवश्यक, उपद्रवी तत्व आर्मी में शामिल होने के लायक नहीं

Rani Sahu
19 Jun 2022 7:32 AM GMT
अग्निपथ योजना का अनावश्यक विरोध: सेना का आधुनिकीकरण अति आवश्यक, उपद्रवी तत्व आर्मी में शामिल होने के लायक नहीं
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सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों की उपस्थिति में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से घोषित की गई अग्निपथ योजना के विरोध में सेना में भर्ती होने के आकांक्षी युवाओं की ओर से बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में जैसी हिंसा की जा रही है

संजय गुप्त

सोर्स- जागरण


सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों की उपस्थिति में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से घोषित की गई अग्निपथ योजना के विरोध में सेना में भर्ती होने के आकांक्षी युवाओं की ओर से बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में जैसी हिंसा की जा रही है, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। इस हिंसा में ट्रेनों, बसों के अलावा जिस तरह अन्य सरकारी-गैर सरकारी संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के साथ पुलिस को भी निशाना बनाया जा रहा है, वह अराजकता के अलावा और कुछ नहीं। आखिर ऐसे युवा सैनिक बनने के पात्र कैसे हो सकते हैं?

इन युवाओं के साथ देश की आम जनता और साथ ही विपक्षी दलों को यह समझना आवश्यक है कि सेना का आधुनिकीकरण अति आवश्यक हो चुका है, क्योंकि युद्ध के तौर-तरीके बदल चुके हैं। अब सैनिकों का तकनीकी रूप से दक्ष होना और उन्हें हर तरह के कौशल से लैस होना अनिवार्य हो गया है। भविष्य के युद्धों में सेनाएं आमने-सामने नहीं होंगी। वे तकनीक के जरिये लड़े जाएंगे, जिनमें मिसाइलों, ड्रोन आदि की भूमिका अधिक होगी।
भारतीय सेना को युद्ध की नवीनतम तकनीक से तभी सज्जित किया जा सकता है जब सैनिकों की संख्या में कटौती करने और उनके वेतन एवं पेंशन खर्च कम किए जाएंगे। ऐसा करके ही सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक धनराशि का प्रबंध किया जा सकता है। ध्यान रहे कि भारत न तो अमेरिका जैसा अमीर देश है और न ही चीन जितना आर्थिक रूप से सबल राष्ट्र। ऐसे में रक्षा बजट का उपयोग सैन्य बलों के आधुनिकीकरण में होना चाहिए, न कि नई-नई रेजीमेंट खड़ी करने में। यह समझा जाना चाहिए कि सैनिक बनना सरकारी नौकरी करना नहीं है।
जो युवा सैनिक बनने की आकांक्षा रखते हैं वे देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार रहते हैं। यही जज्बा उन्हें एक श्रेष्ठ सैनिक बनाता है। जो युवा अग्निपथ योजना के विरोध में हिंसा कर रहे हैं, उनके रवैये से यही प्रदर्शित हो रहा है कि वे सेना में भर्ती को आम सरकारी नौकरी समझ रहे हैं। अनुशासन और संयम सैनिक का विशेष और प्राथमिक गुण होता है। आखिर उन युवाओं से अनुशासित रहने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है, जो सड़कों पर उत्पात मचा रहे हैं और राष्ट्रीय संपत्ति को स्वाहा कर रहे हैं? पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने यह सही कहा कि अग्निपथ योजना के विरोध में जो कुछ हो रहा है, उसे उपद्रव के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता और उपद्रवी तत्व सेना में शामिल होने के लायक नहीं।
युवाओं को यह समझना होगा कि सरकार सभी को नौकरियां नहीं दे सकती और कम से कम सेना में तो उन्हीं को प्राथमिकता देगी, जो शौर्य और पराक्रम का परिचय देने को तत्पर हों। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकता कि समाजवादी सोच के तहत सबको सरकारी नौकरियां देने, लोक-लुभावन नीतियों पर चलने और आर्थिक नियमों की अनदेखी करने के कैसे बुरे नतीजे होते हैं। श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात से सबक सीखने की जरूरत है। सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ सरीखी योजना समय की मांग थी।
जब अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, रूस जैसे प्रमुख देश अपने सैन्य तंत्र में बदलाव ला रहे हैं, तब भला भारत को पीछे क्यों रहना चाहिए? एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा था कि भारत के लिए अपने सैनिकों की औसत आय़ु घटाना आवश्यक हो गया है। अभी औसत आयु करीब 35 वर्ष है। अग्निपथ योजना पर अमल से यह 26 वर्ष हो जाएगी। आम तौर पर 30-32 साल के सैनिक विवाहित होते हैं और उनके बच्चे भी होते हैं। इसके चलते उनमें जोखिम लेने की उतनी क्षमता नहीं होती, जितनी अविवाहित और कम आयु के सैनिकों में होती है। कम आयु के युवा कहीं अधिक जोशीले भी होते हैं। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि खेलजगत में 22-24 साल के खिलाड़ी 30-32 साल के खिलाड़ियों पर भारी पड़ते हैं। देश की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि हमारे सैनिक युवा, फुर्तीले और खतरों से खेलने के लिए तत्पर हों।
आज पाकिस्तान के साथ चीन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। वह अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए तेजी से कदम बढ़ा रहा है। भारत को भी ऐसा करना होगा। इसमें अग्निपथ योजना सहायक बनेगी। इस योजना का एक लाभ यह भी होगा कि देश में अनुशासित और देश सेवा के लिए प्रतिबद्ध युवाओं की संख्या बढ़ेगी। जो सेना से प्रशिक्षित होंगे, वे कहीं अधिक अनुशासित और मानसिक रूप से सुदृढ़ होने के साथ दक्ष भी होंगे। वे उन चारित्रिक गुणों से लैस भी होंगे, जो राष्ट्र निर्माण में सहायक होते हैं।
यह मानना सही नहीं कि अग्निपथ योजना के तहत चार साल तक अग्निवीर यानी सैनिक के रूप में सक्रिय रहने के बाद उनके पास रोजगार के अवसर नहीं होंगे। वे अद्र्ध सैनिक बलों और पुलिस में कहीं आसानी से समायोजित हो सकते हैं। इसके अलावा भी उनके पास अनेक अवसर होंगे, क्योंकि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी इसके लिए व्यवस्था करने में लगी हुई हैं। इसके अलाव निजी क्षेत्र भी इसके लिए प्रयास कर रहा है। औद्योगिक संगठन योग्य युवाओं के अभाव की शिकायत कर रहे हैं, उसे दूर करने का काम अग्निवीर आसानी से कर सकते हैं। यह देखना दुखद है कि इसके बाद भी विपक्षी दल युवाओं को उकसाने और बरगलाने में लगे हुए हैं।
अग्निपथ योजना पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के रवैये से तो यही लगता है कि वे अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए युवाओं को भड़काने में लगे हुए हैं। वे अग्निपथ योजना का कुछ उसी तरह अंध विरोध कर रहे हैं, जैसे कृषि कानूनों और उसके पहले नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे थे। यह किसी से छिपा नहीं कि इसके लिए उन्होंने किस तरह झूठ का सहारा लिया था। सरकार को विपक्षी दलों के रवैये से न केवल सावधान रहना होगा, बल्कि यह भी देखना होगा कि अग्निपथ योजना क विरोध में जो अराजकता दिखाई जा रही है उसके पीछे कोई साजिश तो नहीं।
Rani Sahu

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