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विवाद जिस रफ्तार से बढ़ा है, उसके बाद पूछा जा सकता है कि अब हिमाचल की कबड्डी में बचा ही क्या है?
सोर्स- divyahimachal
विवाद जिस रफ्तार से बढ़ा है, उसके बाद पूछा जा सकता है कि अब हिमाचल की कबड्डी में बचा ही क्या है? खिलाडिय़ों की चयन प्रक्रिया से पैदा हुआ विवाद इस कद्र हावी हो गया है कि जो बात खेल के मैदान पर या खिलाडिय़ों के अभ्यास को लेकर होनी चाहिए, वह पूरी संभावना को ही तहस-नहस कर रही है। मामला इसलिए अधिक गंभीर प्रतीत होता है क्योंकि यह पद्मश्री एवं भारतीय कबड्डी टीम के पूर्व कप्तान अजय ठाकुर से सीधे जुड़ा रहा है और टीम चुनने की प्रक्रिया में एसोसिएशन पर दाग लगाए जा रहे हैं। यहां असली खेल की महाशक्ति बनने की सबसे बड़ी कोशिश कबड्डी एसोसिएशन कर रही है और यह संभव है कि रोहतक में आयोजित राष्ट्रीय आयोजन में उसकी चयन प्रक्रिया निभा दी जाए, लेकिन इस सारे झमेले में हम अपने ही राज्य से निकले सुपर स्टार को अप्रासंगिक कैसे कर सकते हैं। एक खिलाड़ी जो हिमाचल ही नहीं, देश की कबड्डी का ब्रांड बनता है, उसके तजुर्बे, समर्पण, प्रतिष्ठा और क्षमता की स्थापित टिप्पणी को 'अनकही' बनाकर कैसे टाल सकते हैं। हो भी यही रहा है। यहां एक किला हथिया कर अगर एसोसिएशन अपना वर्चस्व कायम कर चुकी है, तो दूसरी ओर खिलाड़ी जगत के अपने सरोकार खड़े हैं। या तो हम यह मान लें कि अजय ठाकुर की आपत्तियां गैर जरूरी हैं या यह कह दें कि कबड्डी में खिलाडिय़ों के बजाय एसोसिएशन का गठन कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह मसला हिमाचल के परिदृश्य में तमाम खेल संघों पर भी तीखी निगाह डाल रहा है और स्पष्ट रूप से खेल मंत्री से पूछ रहा है कि आखिर उस खेल नीति का हुआ क्या, जिसे शिद्दत से प्रचारित किया जा रहा था। खेल नीति में इस तरह की शपथ उठाई गई है कि आइंदा खिलाडिय़ों के साथ ही खेल संघ चल पाएंगे, लेकिन इधर सिर्फ कबड्डी नहीं चल रही, बाकी तो सभी चल रहे हैं।
अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि हिमाचल कबड्डी एसोसिएशन जिस टीम को भेज रही है, उसमें अजय ठाकुर ढूंढे नहीं मिलेंगे। हम यह तो नहीं कह सकते कि अजय ठाकुर इस समय किस तरह की फार्म में हैं या यह उनकी निजी मजबूरियां हैं, लेकिन हिमाचल की कबड्डी पर इस प्रसंग से बट्टा अवश्य ही लग रहा है। होना तो यह चाहिए था कि अपनी संभावनाओं के नए अक्स चुनती एसोसिएशन तमाम खिलाडिय़ों के साथ मिलकर ऐसी नर्सरी स्थापित करती, जहां प्रैक्टिस में खेल का अनुभव अपना जौहर दिखाता, लेकिन हो इसके विपरीत रहा है। एसोसिएशन एक राष्ट्रीय खिलाड़ी को परास्त करने की महाशक्ति का परिचय देती हुई जनता के सामने आई है, दूसरी ओर अजय ठाकुर को मिली शोहरत का अपना वजन है और उसके कंधे पर हिमाचल पुलिस के स्टार चस्पां हैं। ऐसे में बेहतर होता इस लड़ाई को अपने-अपने प्रभाव व प्रभुत्व से लडऩे के बजाय, इसके समाधान की परिपाटी बनती। खेल संघों पर कुंडली मार कर बैठी पद्धति अगर लगातार खेल प्रतिभा को ही कमजोर करने पर तुली है, तो खेल मंत्री की खामोशी संशय पैदा करती है।
वह खेल नीति को खंगाल कर बताएं कि ऐसे मामले में खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए उनका फार्मूला क्या है। क्या यहां खेल संघ को विजयी घोषित किया जाए या एक खिलाड़ी से पूछा जाए कि उसका दर्द क्या है। हम किसी एक पक्ष की तरफदारी नहीं करना चाहते, लेकिन यह जानने का हक रखते हैं कि ऐसे विवाद को लेकर खेलों को हो रहे नुकसान से खेल प्रतिभाओं को बचाएं कैसे। कमोबेश हर खेल संघ के मार्फत ऐसी किलेबंदी तो देखी जा सकती है, जहां कुछ सर्वशक्तिमान पदाधिकारी अपनी मनमानी से खेल के वातावरण को प्रदूषित करने की हिमाकत करते हैं। राष्ट्रीय खेलों में हिमाचल की भागीदारी को बेहतर परिणामों तक पहुंचाने के लिए अनुभवी खिलाडिय़ों की भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। ऐसी उम्मीद वर्तमान खेल मंत्री के दावों से जरूर पैदा हुई थी, लेकिन हकीकत में हुआ कुछ नहीं। हमारा मानना है कि कबड्डी स्टार अजय ठाकुर को सुने बगैर खेल का कद ऊंचा नहीं हो सकता, बाकी रोहतक आयोजन के परिणाम भी तो बहुत कुछ कहेंगे।
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Rani Sahu
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