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उन्मुक्त चंद
2012 अगस्त के आखिरी हफ्ते की बात है। मुझे भारत के अंडर 19 विश्व-विजेता कप्तान के इंटरव्यू लेने के लिए दिल्ली में उनके मयूर-विहार निवास पर पहुंचना पड़ा। उनके घर के बाहर टीवी चैनल्स के ओवी वैंस उनके पूरी सोशायटी को भर चुके थे। घर के अंदर करीब दर्जन पत्रकार उनका इंटरव्यू कर रहे थे। हर कोई ये मान चुका था कि मोहम्मद कैफ, युवराज सिंह और विराट कोहली की ही तरह भारत को अंडर 19 वर्ल्ड कप के ज़रिए भविष्य का एक सुपर स्टार मिल गया है।
वक्त से पहले स्टार बनने का खामियाजा भुगतना पड़ा?
मैनें भी उनमुक्त चंद के साथ बातचीत की और आखिर में उनसे उनका फोन नंबर मांगा जो किसी भी रिपोर्टर के लिए एक रूटीन बात होती थी। लेकिन, उनके जवाब ने मुझे भौचक्का कर दिया। उन्होंने कहा कि आप मेरे एजेंट का नंबर ले लीजिए और आगे से उन्हीं से संपर्क करें किसी भी तरह के इटंरव्यू के लिए। मैंने सचिन तेंदुलकर और अनिल कुंबले जैसे दिग्गजों से कई मर्तबा इटंरव्यू के लिए ना तो सुना था, लेकिन कभी भी किसी क्रिकेटर ने अपना नंबर नहीं देकर एजेंट से संपर्क करने की बात नहीं कही थी। खैर मैनें भी अपनी 'तैश' में एजेंट का नंबर नहीं मांगा और आगे बढ़ गया।
इसके बाद जब उनमुक्त दिल्ली के लिए रणजी ट्रॉफी खेलने लगे तो अक्सर साथी खिलाड़ियों के मुंह से ये सुनने को मिलता कि वो सीधे टीम इंडिया के बारें में सोचते हैं और खुद को एकदम कोहली के बराबर। उनकी इस दूरगामी सोच को ग़लत भी नहीं ठहराया जा सकता था क्योंकि कोल्ड-डिंक बनाने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने एक विज्ञापन में महेंद्र सिंह धोनी और कोहली के साथ अगली पीढी के कप्तान के तौर पर उन्मुक्त को दिखाया।
दिग्गजों ने वक्त रहते चेताया था
उन्मुक्त अब गगन को छूने को तैयार दिख रहे थे फिर ना जाने अचानक क्या हुआ कि पहले वो आईपीएल में नाकाम हुए और फिर रणजी ट्रॉफी में और बस संघर्ष बढ़ता गया। लेकिन, इस दौरान भी क्रिकेट की बजाए उनका फोकस ग्लैमर और मीडिया में छाए जाने पर ज्यादा रहा। मुझे याद है कि कपिल देव ने सार्वजिनक तौर पर उन्हें यह कहकर झकझोरा था कि उन्हें फिलहाल अपना पूरा ध्यान क्रिकेट पर देना चाहिए ना कि इमेज मैनेजमेंट पर। लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी। उन्मुक्त पूरी तरह से अपने उस एजेंट के बहकावे में आ चुके थे जिन्होंने उनका करियर शुरु होने से पहले ही खत्म करवा डाला।
कहां चूके उन्मुक्त?
दरअसल, भारतीय क्रिकेट में ये कोई नई बात नहीं थी। अक्सर जब कोई खिलाड़ी छोटे शहर से और गैर-अंग्रेजी वाले बैकग्रांउड से आते हुए छा जाता है तो अचानक से नए-नए एंजेट अपने हितों को साधने के लिए की युवा खिलाड़ियों को भटका देते हैं। धोनी के साथ भी शुरुआती दौर में कोलाकाता के एक एजेंट ने ऐसा ही करने की कोशिश की थी लेकिन वो समझदार थे।
सचिन तेंदुलकर को मार्क मेसकेरहेनस मिल गए थे इसके अलावा उनके भाई अजीत तेंदुलकर भी थे। हैरानी की बात थी कि उन्मुक्त नई पीढ़ी के आधुनिक खिलाड़ी थे, महानगर से आते थे और अच्छी अंग्रेज़ी बोलते थे फिर भी ना जाने उनके सलाहकार ऐसे थे जिन्होंने उन्हें वक्त से पहले उन्हें स्टार बना दिया था।
28 साल की उम्र में जब दिल्ली के इस खिलाड़ी ने भारतीय क्रिकेट से ही अपना नाता तोड़ लिया तो ज़ेहन में ये सवाल आता है कि आखिर वो भटका कैसे? क्या बीसीसीआई भी ऐसी
प्रतिभा को ना संवारने के लिए कसूरवार नहीं है?
बहरहाल, अब उनमुक्त की कहानी आईपीएल वाली पीढ़ी के युवाओं को हमेशा सबक देने वाली कहानी के तौर ही आगे से मिसाल के तौर पर इस्तेमाल की जाएगी।
बाय अमर उजाला
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