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देश के लिए बढ़ती जनसंख्या एक वरदान है या फिर एक अभिशाप है, यह हमारे लिए एक सवालिया निशान है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत इस साल के मध्य तक चीन को पीछे छोड़ दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इस साल के मध्य तक भारत की आबादी 142 करोड़ 86 लाख पहुंचने की उम्मीद है जो चीन की 142 करोड़ 57 लाख की आबादी से 29 लाख ज्यादा होगी। साल 2011 के बाद से भारत में जनगणना नहीं हुई है, इसलिए इस वक्त भारत की जनसंख्या क्या है, इसके बारे में कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन साल 2020 में नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन ने जनसंख्या के अनुमानों पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि साल 2011 और 2036 के बीच के 25 सालों में भारत की जनसंख्या 121 करोड़ दस लाख से बढक़र 152 करोड़ 20 लाख हो जाएगी। इसका नतीजा ये होगा कि जनसंख्या का घनत्व 368 से बढक़र 463 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो जाएगा। लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत में ज्यादा लोग पहले के मुकाबले लम्बी उम्र तक जी रहे हैं और देश में कम बच्चे पैदा हो रहे हैं जिसकी वजह से भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर नीचे जा रही है। वृद्धि दर के घटने के बावजूद भारत की जनसंख्या का बढऩा जारी है और अगले कई सालों तक जारी रहेगा। ऐसी स्थिति में देश के सामने जो चुनौतियां पेश होंगी, उनका प्रभाव नकारा नहीं जा सकता है। लगातार बढ़ती जनसंख्या की वजह से सबसे बड़ी चुनौती प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव है। इन प्राकृतिक संसाधनों में जमीन, पानी, जंगल और खनिज शामिल हैं।
जनसंख्या के बढऩे की वजह से इन संसाधनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होता है। नतीजतन कृषि उत्पादकता और पानी की कमी के साथ पर्यावरण में गिरावट होने की सम्भावना बढ़ जाती है। बढ़ती आबादी के कारण आवास, परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षण सुविधाओं से जुड़े बुनियादी ढांचे का विस्तार करने की जरूरत भी बढ़ जाती है। एक बहुत बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करना एक मुश्किल काम बन जाता है और आबादी का एक बड़ा हिस्सा बदहाल हालात में जीने के लिए मजबूर हो सकता है। एक बड़ी आबादी की वजह से काम करने की क्षमता रखने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या भी खड़ी हो जाती है। इस बड़ी संख्या को रोजगार उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभरता है। आज भी भारत में बेरोजगारी एक ज्वलंत समस्या है। लगातार बढ़ रही जनसंख्या की वजह से यह समस्या भविष्य में विकराल रूप ले सकती है। रोजगार की कमी आर्थिक असमानता और गरीबी को बढ़ाने का काम काम कर सकती है जिससे सामाजिक अशांति फैल सकती है। शिक्षा और एक बड़ी आबादी को शिक्षित और कुशल बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि समय के साथ जितने लोगों को शिक्षित और कुशल बनाने की जरूरत होगी उतनी क्षमता शैक्षणिक संस्थानों के पास शायद नहीं होगी। इसका सीधा परिणाम ये हो सकता है कि बहुत से लोग अच्छी शिक्षा हासिल नहीं कर पाएंगे और बहुत से लोगों के पास जो कौशल होगा वो नौकरी के बाजार से मेल नहीं खाएगा। बढ़ती जनसंख्या की वजह से गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है। साथ ही आमदनी की असमानता भी बढऩे का खतरा है। एक बड़ी चुनौती गरीबी कम करने की कोशिशों को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने की भी होगी। कुल मिलाकर लोगों के जीवन स्तर और स्वास्थ्य और शिक्षा तक उनकी पहुंच में गहरी असमानताएं पैदा हो सकती हैं।
बढ़ती जनसंख्या का सीधा असर पर्यावरण पर भी पड़ेगा। वनों की कटाई, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण पर्यावरण की रक्षा के लिए बड़ी चुनौतियों के तौर पर उभर सकते हैं। वृद्धि दर के घटने के बावजूद भारत की जनसंख्या का बढऩा जारी है और अगले कई सालों तक जारी रहेगा। ऐसे में सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती लोगों के लिए प्रभावी नीतियां और योजनाएं बनाना और उन्हें लागू करना होगा। भारत की बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर सरकारों के लिए ऐसी नीतियां और योजनाएं बनाना और मुश्किल हो जाएगा जो ये सुनिश्चित करें कि संसाधनों का वितरण बराबरी से हो और सामाजिक व आर्थिक विषमता को दूर किया जा सके। बढ़ती जनसंख्या से जुड़ी एक बड़ी चिंता ये जताई जाती है कि इससे कई किस्म की सामाजिक चुनौतियां सामने आ सकती हैं। एक बड़ी आबादी भीड़भाड़ को तो बढ़ाएगी ही, साथ ही शहरीकरण को भी बढ़ावा देगी जिसकी वजह से अपराधों में बढ़ोतरी आ सकती है और काानून-व्यवस्था कायम रखना मुश्किल हो सकता है? इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक बड़ी आबादी पर्यावरण और संसाधनों पर दबाव डालती है। यही कारण है कि जनसंख्या को लेकर इतना चिंताजनक विमर्श हो रहा है। हालांकि इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि भारत लंबे समय से दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश रहा है और भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने ही वाला था। तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। भारत की बढ़ती जनसंख्या को लेकर तरह-तरह की चिंताएं जताई जा रही हैं। तो क्या किसी देश के लिए कोई आदर्श जनसंख्या होनी चाहिए? किसी भी देश के लिए कोई आदर्श जनसंख्या आकार नहीं है। जब आप जनसंख्या की बात करते हैं तो आप लोगों की बात करते हैं और लोग नंबरों से पहले आते हैं, इसलिए संख्या को लोगों से ज्यादा महत्त्व देना मानवाधिकार आधारित दृष्टिकोण नहीं होगा ज्यादा जरूरी यह है कि इस बारे में सवाल पूछे जाएं कि क्या लोगों का स्वास्थ्य अच्छा है, क्या उनके पास सही अवसर हैं, क्या वे पर्याप्त शिक्षित हैं। चर्चा का एक और विषय भारत की प्रजनन दर को लेकर भी है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार भारत के सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर कम हो रही है। जनसंख्या को केवल प्रजनन दर से जोडऩे का मतलब ये है कि सारा बोझ महिलाओं पर डाला जा रहा है।
भारत में 25 साल से कम उम्र के लोगों की आबादी कुल आबादी का करीब 40 फीसदी है। वहीं देश की करीब आधी आबादी की उम्र 25 से 64 साल के बीच है। भारत की बुजुर्ग होती आबादी (65 साल से ऊपर) कुल आबादी का महज 7 फीसदी है। लेकिन चूंकि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर गिर रही है तो इस बात की चिंताएं बढ़ गई हैं कि आने वाले दशकों में भारत की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा बुज़ुर्ग लोगों का होगा। अगर एक औसत भारतीय की उम्र आज 28 वर्ष है तो 30 वर्षों में एक औसत भारतीय 58 वर्ष का होगा। इसीलिए जब बढ़ती जनसंख्या की वजह से बन रहे अवसर की बात करते हैं तो हम कहते हैं कि हमारे पास इस डेमोग्राफिक डिविडेंड या युवा आबादी का लाभ उठाने के लिए 30 वर्ष हैं। उनके मुताबिक इस बात से पूरी तरह नहीं बचा जा सकता कि समय के साथ-साथ किसी भी देश की औसत आबादी बुजुर्ग होती जाएगी। दुनिया के किसी भी हिस्से में आबादी युवा होगी और फिर वह बूढ़ी होगी, कभी घटेगी और कभी ऊपर जाएगी। आज जो महत्वपूर्ण बात है वह यह है कि हमें 30 साल बाद जो होने वाला है, उसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। हमें सामाजिक सुरक्षा उपायों में निवेश करने की जरूरत है। हमें वृद्ध लोगों की चिकित्सा देखभाल में निवेश करने की जरूरत है। ऐसे देश में जहां लैंगिक असमानता अभी भी बनी हुई है, वहां विशेष चुनौतियां होंगी, जिनका बड़ी उम्र की महिलाओं को सामना करना पड़ेगा उन्हें विशेष प्रकार की देखभाल और उन पर ध्यान देने की जरूरत होगी। नीतियों को उनकी विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन करना होगा। याद रहे बढ़ती जनसंख्या हमारे लिए असीमित चुनौतियां ला रही है। यह कोई त्योहारिक ख़ुशी नहीं है, बल्कि इससे मिलने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर संजीदा प्रयासों की जरूरत होगी।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
By: divyahimachal
Rani Sahu
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