- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- संकट के अनजाने पहलू
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सालाना बैठक वॉशिंगटन में जिन हालात में और जिन चुनौतियों के बीच हो रही है, उनकी गंभीरता जगजाहिर है। 12 अक्टूबर से शुरू होकर 18 अक्टूबर तक चलने वाली इस बैठक से निकले नतीजों की जानकारी बैठक संपन्न होने के बाद ही मिल सकेगी, लेकिन इस बीच बुधवार को आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टैलिना जॉर्जिएवा ने वर्चुअल मीडिया कॉन्फ्रेंस में जो बातें रखीं वे भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। उनसे यह साफ हो जाता है कि जिस संकट से दुनिया गुजर रही है उसके कई आयाम अभी खुलने बाकी हैं। दुनिया की हर अर्थव्यवस्था परेशानी से गुजर रही हो, ऐसे मौके ज्ञात इतिहास में विरले ही आए हैं लेकिन अभी स्थिति ऐसी ही है।
साल 2020 में ग्लोबल अर्थव्यवस्था का आकार 4.4 फीसदी छोटा होगा। यही नहीं, कोविड-19 महामारी के चलते अगले पांच वर्षों में उत्पादन में गिरावट से लगभग 28 लाख करोड़ डॉलर के नुकसान का अंदेशा है। जाहिर है, पिछले महीनों में देखे गए थोड़े बेहतर नतीजों से ज्यादा उत्साहित नहीं हुआ जा सकता। बीमारी की धमक कम पड़ने के साथ रिकवरी कुछ देशों और कुछ सेक्टरों में ही आ रही है। यह आगे भी दिखेगी, लेकिन आईएमएफ के मुताबिक यह रिकवरी न केवल आंशिक होगी बल्कि उतार-चढ़ाव वाली भी होगी। कुछ जानकार इसे K-शेप्ड रिकवरी बता रहे हैं, जिसका मतलब यह हुआ कि एक ही समय में कुछ देशों और सेक्टरों में हालात सुधरते नजर आ सकते हैं तो कुछ अन्य देशों और सेक्टरों में स्थिति लगातार नीचे जा सकती है। इसे रिकवरी माना भी जाए या नहीं, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन स्थितियों से उबरने के लिए हम कुछ कर सकते हैं या नहीं, और कर सकते हैं तो क्या।
मीडिया कॉन्फ्रेंस में क्रिस्टैलिना जॉर्जिएवा ने जो तीन सुझाव रखे हैं वे गौर करने लायक हैं। पहला, बीमारी से निपटना, दूसरा लचीली और समावेशी अर्थव्यवस्था का निर्माण और तीसरा कर्जों पर ध्यान देना। पहले सुझाव पर तो कोई बहस ही नहीं है, पर अर्थव्यवस्था को लचीली और समावेशी बनाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। न केवल नई स्थितियों के अनुरूप नए प्रॉजेक्ट्स को प्रोत्साहित करने के मौलिक तरीके सोचने होंगे बल्कि उस तरफ बढ़ने की इच्छा और कौशल रखने वाले लोगों की पहचान कर उनकी असुरक्षा दूर करने के जतन भी करने होंगे। तीसरा, कर्ज का मामला इस अर्थ में खास है कि फिलहाल इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। लेकिन 2021 में वैश्विक कर्ज ग्लोबल जीडीपी के 100 फीसदी की रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच जाने का अनुमान है। यही नहीं, तमाम सरकारें लंबे समय तक दोनों हाथों से कर्ज लेने को मजबूर हैं। सोचने की बात है कि ये कर्जे अगर समय से वापस नहीं हुए तो क्या होगा। एक बात तय है कि अभी के समय में एक ही चीज है जो दुनिया को इन विषम परिस्थितियों से बाहर ला सकती है। वह है अधिक से अधिक आपसी सहयोग और सामंजस्य। क्या दुनिया के नेता इसके लिए जरूरी संयम और समझदारी का परिचय दे सकेंगे?