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भारतीय प्रबंध संस्थान का निदेशक बनने के लिए बीए में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना अनिवार्य है
रवीश कुमार।
भारतीय प्रबंध संस्थान (Indian Institute of Management) का निदेशक बनने के लिए बीए में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना अनिवार्य है. इससे दुखी होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इसके बाद भी निदेशक बना जा सकता है. विश्व गुरु भारत में 2017 से यह विवाद चल रहा है. IIM रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा की बीए की डिग्री का पता नहीं चल रहा है. इंडियन एक्स्प्रेस की ऋतिका चोपड़ा ने लिखा है कि केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने दो-दो बार पत्र लिखा लेकिन डिग्री का पता नहीं चला और अब तो निदेशक जी का पांच साल का कार्यकाल भी समाप्त होने वाला है. निदेशक से रिपोर्टर ने संपर्क भी किया लेकिन जवाब नहीं दिया.
एक निदेशक काग़ज़ नहीं दिखा रहा है और नागरिकता कानून को लेकर पूरे देश में उत्पात मचाया गया कि काग़ज़ दिखाना होगा. धीरज शर्मा भी ऐसी ख़बरों को पढ़ने के बाद सोचते होंगे कि अखबार में छपने से क्या हो जाता है. जिसे निदेशक बनना होता है वो बनता ही है. ऐसे काबिल लोगों से आप भी प्रेरणा लिया कीजिए, तनाव कम रहेगा. अगर आपने ये अंदाज़ा लगाया है कि मैं इनकी बीए की डिग्री के बहाने किसी और की डिग्री की बात करूंगा तो आप गलत हैं. लेकिन मैं प्रधानमंत्री मोदी की तो बात करूंगा, जिन्होंने 14 अक्टूबर 2017 को भारत के बीस शिक्षा संस्थानों को दुनिया के 500 संस्थानों में पहुंचाने की नीति का ऐलान किया था. इस प्रसंग का ज़िक्र क्यों कर रहा हूं आगे बात करेंगे.
प्रधानमंत्री पटना में थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांग की थी कि पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया कि केंद्रीय यूनिवर्सिटी एक पुराना विचार है. बिल्कुल यही उनके शब्द थे. आप यू ट्यूब पर सुन सकते हैं. 2017 की इस सभा में मौजूद कई लोग जो ताली बजा रहे थे, नारे लगा रहे थे, अग़र संयोग से इस वक्त प्राइम टाइम देख रहे हैं तो बता सकते हैं कि उस वक्त उनके दिमाग़ पर इस ऐलान का क्या असर पड़ा था. मैंने अपने सहयोगी मनीष से गुज़ारिश की कि इस सभा में नारे लगाने वाले या ताली बजाने वाले में से किसी का इंटरव्यू करें. समय की कमी के कारण मनीष ऐसे लोगों का पता नहीं लगा सके लेकिन जो जानकारी उन्होंने भेजी है वो स्तब्ध करने वाली है. 2008 में पटना यूनिवर्सिटी में कई पद खत्म कर दिए जाने के बाद मंज़ूर पदों की संख्या 855 रह गई है. जिनमें से 272 पर लोग पढ़ा रहे हैं. बाक़ी 583 रिक्त हैं. जिस यूनिवर्सिटी में करीब 70 फीसदी पद ख़ाली हों, उसकी क्या हालत होगी, आप समझ सकते हैं.
2017 में बात पटना यूनिवर्सिटी की बेहतरी की हुई तो प्रधानमंत्री ने 2022 का दूसरा ही सपना लांच कर दिया. पटना यूनिवर्सिटी जहां थी वहीं है. भारत सरकार देश के भीतर के संस्थानों की रैकिंग कराती है उसमें पटना यूनिवर्सिटी का नामो निशान तक नहीं है बल्कि बिहार की किसी यूनिवर्सिटी को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं है.
इस पूरे मामले को ऐसे समझिए और जो उदाहरण दे रहा हूं उसे याद रखिए. मान लीजिए आपके मोहल्ले की सड़क टूट गई है. लोग मांग कर रहे हैं कि सड़क जल्दी बने लेकिन तभी नेता जी आते हैं और कहते हैं कि यहां से पचास किलोमीटर दूर हम एक नया फ्लाईओवर बना रहे हैं. लोग ताली बजाने लगते हैं. अखबार में फ्लाईओवर का ऐलान हेडलाइन के रूप में छप जाता है और टूटी सड़क टूटी रह जाती है. पटना यूनिवर्सिटी का तो कुछ नहीं हुआ नया प्लान लांच हो गया. क्या आपको यही पैटर्न यूपी में दिख रहा है? अच्छा होता प्रधानमंत्री नई यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखने के साथ साथ जो चल रही हैं उनकी हालत पर भी बात करते. बताते कि कितने शिक्षकों के पद ख़ाली हैं, पढ़ाई की गुणवत्ता में क्या सुधार हुआ है. वापस लौट आते हैं इंस्टीट्यूट आफ एमिनेंस पर. 2017 से लेकर 2021 यानी चार साल में क्या दस हज़ार करोड़ दिए गए? हमारे पास जानकारी का कोई और ज़रिया नहीं था इसलिए बजट में जो राशि दी गई है उसी का सहारा लिया है. 2017- 18 के संशोधित बजट में एक पैसा नहीं दिया गया. 2018-19 के संशोधित बजट में 128 करोड़ दिया गया. 2019-20 के संशोधित बजट में 325 करोड़ दिया गया. 2020-21 के संशोधित बजट में 1101 करोड़ दिया गया. 2021-21 के बजट में 1710 करोड़ की बात है, संशोधित बजट से पता चलेगा कि कितना दिया गया. फिर भी इन सबको जोड़ लें तो पांच बजट में कुल 3500 करोड़ भी नहीं दिया गया है.
बजट देखने से राशि काफ़ी कम लगती है लेकिन 5 अगस्त को PIB ने प्रेस रिलीज़ जारी की है . ये राज्यसभा में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के जवाब पर आधारित है. इस रिलीज़ में कहा गया है कि सरकार हर संस्थान को पांच साल में क़रीब एक हज़ार करोड़ दे रही है. इस प्रेस रिलीज़ में यह लिखा है कि कितना दिया जा रहा है, यह नहीं है कि कितना दिया जा चुका है. 5 अगस्त 2021 की PIB की रिलीज़ में कहा गया कि 12 संस्थानों को ही IOE के लिए मंजूरी दी गई है. 8 सरकारी है और 4 प्राइवेट. पांच साल बीत गए और सरकार अभी तक 20 संस्थानों को IOE के लिए मंज़ूरी नहीं दे पाई है.पांच साल होने जा रहे हैं विश्व स्तरीय संस्थान मिलने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं. 2019 में करीब छह लाख छात्र भारत के बाहर पढ़ने चले गए. इस जुलाई में शिक्षा मंत्री का बयान है कि 11 लाख से अधिक भारतीय छात्र दूसरे देशों में पढ़ रहे हैं. इन छात्रों को पता है कि यहां के घटिया संस्थानों में पढ़ने का क्या मतलब रह गया है. अमेरिका सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब साठ हज़ार करोड़ रुपया भारतीय छात्र अमेरिका ले जाते हैं. भारत के घटिया संस्थानों से मुक्ति पाने के लिए भारत के मां बाप कितना पैसा खर्च कर रहे हैं.
19 जुलाई 2021 को संसद में शिक्षा मंत्री के एक बयान को देखते हैं- इस समय IIT में चेयरमैन के 8 पद, निदेशक के 5 पद खाली हैं. NIT के चेयरमैन के 21 पद खाली हैं और निदेशक के 5 पद खाली हैं. 9 मार्च 2021 को संसद की स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट में बताया है कि एक साल के भीतर उच्च शिक्षा के बजट में 3 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है. IIT में 3876 पद खाली हैं. 10,008 स्वीकृत हैं. 38% परसेंट खाली हैं. IIM में 1266 में से 934 पद ख़ाली हैं. 74 प्रतिशत पद ख़ाली हैं.
हमारा सवाल यह नहीं है कि प्रधानमंत्री चुनावी साल में यूपी में नई यूनिवर्सिटी की आधारशिला क्यों रख रहे हैं. कभी भी रख सकते हैं लेकिन हमारा सवाल इतना है कि यूपी के जो राजकीय विश्वविद्यालय हैं, कालेज हैं, क्या उन्हें पता है कि उनकी वेकैंसी कितनी खाली हैं, पढ़ाई का स्तर क्या है. अगर वे यूनिवर्सिटी की रैकिंग ही देख लें तो यूपी से ज्यादातर केंद्र सरकार के संस्थान मिलेंगे या प्राइवेट.
सोनभद्र ज़िले से हमारे सहयोगी प्रभात कुमार ने NRI अंकिलों के लिए यह रिपोर्ट भेजी है क्योंकि इंडिया में ऐसे स्कूल कालेज देखकर कोई हैरान नहीं होता है. जो भारत से चले जाते हैं उन्हें ऐसी इमारतों को देखकर विश्वास हो जाता है कि उनका यहां से भागने का फैसला सही था. यहां चारों तरफ माननीय घास फूस उग आए हैं, जैसे लगता है कि इन्हीं के लिए 5 करोड़ की लागत से यह इंटर कालेज बनाया गया था. 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कर-कमलों द्वारा इसका उदघाटन भी किया था लेकिन उनके जाने के बाद घास फूस ही पढ़ने आए क्योंकि छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई और घास फूस को पसरने के लिए बंद इमारत से बेहतर कोई और जगह नहीं मिल सकती थी. आदिवासी समाज के बच्चों के लिए 30 किलोमीटर के इलाके में यही एकमात्र इंटरमीडिएट कालेज है और वो भी बनकर बंद पड़ा है. इसलिए मैंने मोहल्ले की टूटी सड़क और दूर बनने वाले फ्लाईओवर का उदाहरण दिया. क्या इन्हीं सब बदहालियों से बचने के लिए प्रधानमंत्री नई यूनिवर्सिटी के शिलान्यास का सहारा ले रहे हैं? स्थानीय लोगों ने सांसद से लेकर ज़िलाधिकारी तक को खूब पत्र लिखे लेकिन टीचर की बहाली का फैसला तो शासन को करना था.
हमारे सहयोगी प्रभात कुमार ने बताया सोनभद्र के चोपन ब्लाक के पिपरखांड गांव में 2011 में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय की नींव रखी गई थी.इसकी भी हालत ठीक नहीं है जबकि सरकार के करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं. अगर आप समझने के मूड में हैं तो समझेंगे कि आज कल किसी भी सरकार में यह देखने को मिलता है कि स्कूल और अस्पताल की इमारत तो बन जाती है लेकिन या तो चालू नहीं होते या भी कई साल लग जाते हैं चालू होने में. इस आवासीय विद्यालय को चालू किया जाता तो आदिवासी बच्चों को कितना लाभ होता लेकिन इमारत बनी हुई है और इसका कोई इस्तेमाल नहीं. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नई यूनिवर्सिटी की आधारशिला रख रहे हैं ताकि यूपी के युवाओं में आशा का संचार हो सके. इस इमारत के बनने पर भी आशा का संचार हुआ होगा फिलहाल यहां घास का संचार हो रहा है. दो साल से यह बन कर तैयार है. कम से कम हमारी रिपोर्ट के बाद चालू हो जाए तो अच्छा रहता.
हमें नहीं मालूम कि इस वक्त यूपी में स्कूल और कालेज की कितनी इमारतें बनकर तैयार हैं और उनमें पढ़ाई शुरू नहीं हुई है. आधिकारिक संख्या सरकार ट्वीट कर दें तो बेहतर रहेगा. हमारे सहयोगी परिमल पश्चिम यूपी के कुछ इलाके में गए. वहां उन्होंने देखा कि कई इमारतें कालेज के नाम पर बनकर तैयार हैं मगर वहां शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. सोचिए इन सभी में शिक्षक बहाल होते तो युवाओं को नौकरी मिली होती. छात्रों को नामांकन मिला होता और प्रधानमंत्री उदघाटन करते तो क्या ही बात होती.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के नाम पर कितने कालेज खोले गए जो कालेज कम दुकान ज्यादा थे, इसके ज़रिए मां बाप की जीवन भर की कमाई निकाल ली गई और कालेज बंद हो गए. इसका अध्ययन किया नहीं गया. 2019 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री निशंक ने संसद में कहा कि इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कालेजों की गुणवत्ता की जांच के लिए हाल फिलहाल कोई सर्वे नहीं किया गया है. भारत सरकार 2018 में कम आमदनी वाले राज्यों के एक लाख इंजीनियरिंग के छात्रों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा के लिए 1500 शिक्षकों की नियुक्ति की. ये सभी IIT और NIT के छात्र रह चुके थे. इनकी नियुक्ति तीन साल के लिए ही की गई थी लेकिन क्या अब वहां के छात्रों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा की ज़रूरत नहीं रही.
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