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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के उप-कुलपति बीएस घुम्मन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जो चर्चा का विषय बना हुआ है। भले ही इस्तीफा देने के निजी कारण बताए जा रहे हैं लेकिन जिस प्रकार विश्वविद्यालय के हालात बने हुए थे उससे स्पष्ट है कि जो शिक्षण संस्थान बुलंदियों को छू रहा हो, वह राजनीतिक व वित्तीय समस्या में क्यों पड़ेगा? यूनिवर्सिटी आर्थिक रूप से कंगाल होने के कारण कर्मचारियों के धरनों का अखाड़ा बनी हुई है। दरअसल वीसी की नियुक्ति राजनीतिक मैरिट के आधार पर होती है और सरकार बदलते ही अधिकारी भी बदल जाते हैं। अवसरवादी व्यक्ति सरकार बदलते ही सत्तासीन नए नेताओं के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं और पद हासिल हो जाने पर तब तक छोड़ने का नाम नहीं लेते जब तक नई सरकार पद छोड़ने का इशारा नहीं करती लेकिन कुछ जिंदा दिल विद्वान इस अवसरवाद से बेदाग होते हैं।
जहां तक पटियाला विश्वविद्यालय का संबंध है इसका हाल भी अन्य सरकारी विभागों से जुदा नहीं। राजनेताओं की यह नीति बन गई है कि अपनी, उपलब्धियां दिखाने के लिए कुछ नया करने की घोषणाएं धड़ाधड़ की जाएं। इस चलन में दशकों से चलते आ रहे सफलतम शिक्षण संस्थानों को भुला दिया जाता है। पंजाब में नए खेल विश्वविद्यालय के खोले जाने का शोर इतना ज्यादा है कि पुराने विश्वविद्यालयों की की बदहाली की पुकार दबकर रह गई है। दूसरी ओर निजी विश्वविद्यालय आए दिन नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। पंजाब के कई निजी विश्वविद्यालय पूरे देश में छाए हुए हैं और वहां दाखिले लेने के लिए विद्यार्थियों में होड़ मची रहती है जबकि सरकारी विश्वविद्यालय अपना ही बोझ उठा पाने में असमर्थ हो रहे हैं।
सरकारी स्कूलों व अस्पतालों के क्षेत्र में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। मैरीटोरयिस स्कूलों का प्रचार किया गया लेकिन पुराने स्कूलों की सुध नहीं ली गई। इसी प्रकार सरकारी अस्पताल भी लोग किसी मजबूरीवश ही जाते हैं। राजनेताओं का ये चलन करोड़ों लोगों के साथ अन्याय है, जिन लोगों के खून पसीने की कमाई से ये विश्वविद्यालय अस्तित्व में आए हैं। सरकारें नए विश्वविद्यालय बेशक खोलें, परंतु पुराने शिक्षण संस्थानों की हालत में भी सुधार किया जाए। विश्वविद्यालयों में राजनीतिक शतरंज न खेली जाए, विश्वविद्यालय देश का दिमाग हैं, अगर इनमें भ्रष्टाचार या अक्रमणयता का भूसा भरा जाता रहा तब नागरिकों में अशिक्षा फैलेगी जोकि किसी भी तरह से किसी प्रदेश या देश का विकास नहीं कर सकती। देश के विकास के लिए शिक्षण संस्थानों पर खुलकर धन खर्च किया जाना चाहिए, शिक्षा पर खर्च किया धन बढ़ता है जबकि दिखावे व विलासिता पर खर्च किया गया धन घटता है।