- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अप्रासंगिक होता...
ब्रह्मदीप अलूने: इस साल यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद सुरक्षा परिषद के निंदा प्रस्ताव का पंद्रह में से ग्यारह सदस्यों ने समर्थन किया, लेकिन परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में रूस के वीटो के कारण यह निंदा प्रस्ताव पास नहीं हो सका। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थामस ने रूस की आलोचना करते हुए कहा था कि रूस इस प्रस्ताव को वीटो कर सकता है, पर हमारी आवाज और सिद्धांतों को वीटो नहीं कर सकता।
विश्व राजनीति का असली स्वरूप सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों का कूटनीतिक व्यवहार है, जहां शक्ति के लिए संघर्ष को चरम सीमा पर ले जाकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के मूल उद्देश्यों पर लगातार प्रहार किया जा रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का आधार ही युद्ध या उसके लिए उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को रोकना था।
लेकिन आज दुनिया भर में युद्ध के कई मोर्चे खुले हुए हैं और रूस जैसे देश परमाणु हमलों की धमकी से संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता को ही चुनौती दे रहे हैं। वहीं भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उद्देश्यों को व्यवहार में सुनिश्चित करने वाला देश है, जो उपनिवेशवाद, रंगभेद का विरोध, निरस्त्रीकरण, लोकतंत्र, मानवाधिकारों का समर्थन और दुनिया के शांति अभियानों में कई दशकों से अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करने के संयुक्त राष्ट्र के अभियानों में भारत की भागीदारी लगातार रही है। वर्तमान में विश्व भर में हजारों शांति सैनिक भारत के तैनात हैं, जो संयुक्त राष्ट्र की पांच बड़ी महाशक्तियों के सैनिकों की कुल संख्या के कहीं अधिक हैं। ऐसे में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार भारत की भूमिका संयुक्त राष्ट्र में निर्णायक क्यों नहीं होनी चाहिए?
संयुक्त राष्ट्र के सबसे महत्त्वपूर्ण निकाय सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के लिए भारत ने एक बार फिर अपना दावा जताया है। अमेरिका और रूस ने इसका समर्थन भी किया है। सुरक्षा परिषद की संरचना में किसी भी बदलाव के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा की सदस्यता के दो-तिहाई बहुमत से हस्ताक्षरित और समर्थन प्रदान करना होगा।
इसके लिए वर्तमान पांचों स्थायी सदस्यों की सहमति की आवश्यकता होगी। भारत को चार स्थायी सदस्यों और अफ्रीकी संघ, लैटिन अमेरिका, मध्य-पूर्वी देशों और दुनिया के विभिन्न हिस्सों के अन्य कम विकसित देशों सहित प्रमुख शक्तियों का समर्थन हासिल है। लेकिन सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य का वीटो भारत की स्थायी सदस्यता के सपने को खत्म कर सकता है, और वह सदस्य है चीन। चीन किसी भी स्थिति में भारत को सुरक्षा परिषद में शामिल नहीं करने के लिए कृतसंकल्पित है।
सुरक्षा परिषद की प्राथमिक ज़िम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम रखना है। संयुक्त राष्ट्र का संकट यही है कि इसके सिद्धांतों के उल्लंघन में सबसे आगे सुरक्षा परिषद के कथित पांच सदस्य ही हैं जो बारी-बारी से अपने हितों के अनुसार अपने अधिकार का उपयोग करके शांति की उम्मीदों को धराशायी करते रहे हैं। इस साल यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद सुरक्षा परिषद के निंदा प्रस्ताव का पंद्रह में से ग्यारह सदस्यों ने समर्थन किया, लेकिन परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में रूस के वीटो के कारण यह निंदा प्रस्ताव पास नहीं हो सका।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ने रूस की आलोचना करते हुए कहा था कि रूस इस प्रस्ताव को वीटो कर सकता है, पर हमारी आवाज और सिद्धांतों को वीटो नहीं कर सकता। अमेरिकी राजदूत की मानवीय अपील का प्रभाव रूस पर वैधानिक रोक लगाने में सक्षम नहीं था। गौरतलब है कि सात महीने से यूक्रेन रूस के हमले झेल रहा है और संयुक्त राष्ट्र युद्ध रुकवाने में अब तक नाकाम रहा है।
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के रूप में कार्य करती है। इसके चार्टर के 24वें अनुच्छेद के अनुसार अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना सुरक्षा परिषद् का प्रमुख कार्य है। यह परिषद समस्या को पहले शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास करती है, बाद में अपने अधिकारों का प्रयोग करती है। पर रूस ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए सुरक्षा परिषद के कार्रवाई के अधिकार को बाधित कर यूक्रेन को युद्ध से बचाने की संभावना को ही खत्म कर दिया।
परिषद के स्थायी सदस्य के अधिकारों का दुरुपयोग करने में चीन भी पीछे नहीं है। इस साल जून में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी के रूप में नामित करने के भारत और अमेरिका के प्रस्ताव पर चीन ने वीटो के जरिए रोक लगा दी थी। भारत ने चीन की इस हरकत को लेकर काफी नाराजगी तो जताई, लेकिन उसे रोक पाने में भारत असफल रहा।
इसके पहले भी चीन कई आतंकियों को लेकर यही नीति अपनाता आया है और इससे भारत के आतंक पर लगाम लगाने के प्रयासों को धक्का पहुंचा है। भारत के पड़ोसी देश म्यांमा में सेना ने एक फरवरी 2021 को तख्तापलट करते हुए आंग सान सू ची के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद से सेना लगातार लोगों को निशाना बना रही है।
म्यांमा में हुए इस तख्तापलट के खिलाफ अमेरिका-ब्रिटेन सहित सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों ने सुरक्षा परिषद में निंदा प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन चीन ने वीटो का इस्तेमाल कर इसे रोक दिया। वरना प्रस्ताव पारित होने से म्यांमा की सैन्य सरकार पर भारी दबाव डाला जा सकता था, लेकिन चीन ने अपने आर्थिक और सामरिक हितों की पूर्ति के लिए म्यांमा में लोकतंत्र की बलि चढ़वा दी। इसी तरह उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र ने कई प्रतिबंध लगा रखे हैं, पर चीन उसकी मदद करने में भी सबसे आगे है।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना के बाद आठ दशकों का लंबा रास्ता तय कर लिया है। इस दौरान दुनिया की भू राजनीति में बड़े परिवर्तन आए हैं। यूरोप जहां दुनिया की कुल आबादी का मात्र पांच फीसद जनसंख्या ही निवास करती है, स्थायी सदस्य के तौर पर उसका सर्वाधिक प्रतिनिधित्व है। जबकि अफ्रीका जैसे विशाल महाद्वीप का सुरक्षा परिषद में स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है। रूस की कठिन भौगोलिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए एशिया से एकमात्र प्रतिनिधित्व चीन का ही है जो लोकतांत्रिक देश ही नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि यदि कोई सदस्य चार्टर के सिद्धांतों का निरंतर उल्लंघन करे तो सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा उसे निष्कासित कर सकती है। विश्व शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्तावों को बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए। लेकिन विडंबना है कि सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव या सुझाव तो महासभा के लिए बाध्यकारी हैं, पर महासभा यदि कोई प्रस्ताव पारित करती है तो इसे लागू करने या न कराने का अधिकार सुरक्षा परिषद पर निर्भर करता है।
महासभा में दुनिया के एक सौ तिरानवे देशों का प्रतिनिधित्व है, लेकिन सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी एक देश अपने निहित स्वार्थों के चलते वीटो की शक्ति का इस्तेमाल कर महासभा के बहुमत द्वारा पारित प्रस्तावों की अनदेखी कर देता है और दुनिया यह सब देखने और मानने को मजबूर हो जाती है।
इस समय दुनिया भर में तनाव चरम पर है और शांति स्थापित करने वाली सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र की ओर से तनाव शिथिल करने के कोई भी निर्णायक प्रयास होते नहीं दिख रहे हैं। इससे इस संस्था के अस्तित्व में होने के उद्देश्य को लेकर ही विश्व जनमानस में भारी नकारात्मकता आ गई है। इसका एक प्रमुख कारण वीटो अधिकार को माना जा रहा है।
स्थायी सदस्य युद्ध अपराध एवं मानवता के खिलाफ अपराधों में संलिप्त है और इससे भी अंतरराष्ट्रीय निष्क्रियता बढ़ गई है। अत: संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल उद्देश्यों को लागू करने और प्रभावी बनाने के लिए इसमें सुधारों के साथ वैश्विक प्रतिनिधित्व को बढ़ाने और सुरक्षा परिषद को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और न्यायसंगत बनाने की आवश्यकता है।