सम्पादकीय

दिल्ली की संयुक्त नगर निगम

Subhi
22 Oct 2022 3:42 AM GMT
दिल्ली की संयुक्त नगर निगम
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दिल्ली में कुछ वर्ष पहले 2012 में जिस तरह दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में बांट कर उत्तर, दक्षिण व पूर्व नगर निगमों में विभक्त किया गया वह देश की राजधानी की विशिष्टता को देखते हुए पूरी तरह अव्यवहारिक कदम था। संयुक्त दिल्ली नगर निगम के तीन भागों में बंट जाने के बाद, इस महानगर का वह रुतबा समाप्त हो गया जो इसके राजधानी होने की वजह से मिला करता था।

आदित्य नारायण चोपड़ा; दिल्ली में कुछ वर्ष पहले 2012 में जिस तरह दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में बांट कर उत्तर, दक्षिण व पूर्व नगर निगमों में विभक्त किया गया वह देश की राजधानी की विशिष्टता को देखते हुए पूरी तरह अव्यवहारिक कदम था। संयुक्त दिल्ली नगर निगम के तीन भागों में बंट जाने के बाद, इस महानगर का वह रुतबा समाप्त हो गया जो इसके राजधानी होने की वजह से मिला करता था। विभक्तीकरण का यह फैसला क्या राजनैतिक दृष्टि से किया गया था? इस सवाल का जवाब ढूंढने का यह समय नहीं है क्योंकि केन्द्र सरकार ने इसी वर्ष के मार्च महीने संसद में एक कानून बनाकर इसे पुनः संयुक्त नगर निगम में तब्दील कर दिया। जाहिर है कि नगर निगम के पुनः एकीकरण के पीछे कुछ ठोस तार्किक कारण रहे होंगे। यदि हम और वैज्ञानिक सोच के साथ विश्लेषण करें तो दिल्ली के नागरिकों को सामुदायिक सुविधाएं प्रदान करने में नगर निगम की ही प्रमुख भूमिका रहती है। साफ-सफाई से लेकर नागरिकों की शहरी जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी नगर निगम पर होती है। दिल्ली के तीन भागों में बंट जाने पर ऐसा लगने लगा था कि इसके विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों का भी बंटवारा हो गया है। एक ही शहर के लोगों के बीच खींची गई यह दीवार काफी गलत फहमियां भी पैदा करती थी। इससे दिल्ली के समग्र व समावेशी विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा था। हर निगम क्षेत्र के लिए विकास की जो रूपरेखा तैयार की जाती थी उसका दूसरे क्षेत्र के विकास की रूपरेखा से कोई सामंजस्य ही नहीं जुड़ पाता था जबकि सभी नगर निगमों का साधन स्रोत केन्द्रीकृत ही था। स्थानीय निकायों की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए राज्य सरकारों को अधिकृत किया जाता है और दिल्ली के तीनों क्षेत्रों की नगर निगमों के विकास बजट की विविधता से पेचीदगी इस वजह से बढ़ती थी क्योंकि तीनों निगम एक ही शहर में थी। अतः केन्द्र सरकार ने इस झंझट को समाप्त करने के लिए पुरानी राह पकड़ना ही बेहतर समझा और तीनों नगर निगमों का विलय करके संयुक्त नगर निगम बनाने का फैसला किया। भारत में वृहन्मुम्बई महापालिका के बाद दिल्ली नगर निगम ही एेसी स्थानीय इकाई थी जिसका बजट सर्वाधिक रहता था। इस निगम पर कब्जा जमाने के लिए अक्सर कांग्रेस व जनसंघ (भाजपा) में जबर्दस्त चुनावी युद्ध हुआ करता था। 1967 से पहले नगर निगम पर प्रायः कांग्रेस का कब्जा ही रहा करता था, मगर 1967 में पहली बार दिल्ली नगर निगम पर जनसंघ ने अधिकार किया और अपना मेयर स्व. लाला हंसराज गुप्ता को बनाया। लाला जी की विशेषता यह थी कि वह दिल्ली में नागरिक सुविधाओं के विस्तार के प्रति समर्पित नेता थे। उनके नेतृत्व में दिल्ली नगर निगम ने नागरिकों को शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के क्षेत्र की बेहतर सुविधाओं का प्रबन्ध किया। यही वजह थी कि जब 1971 के लोकसभा चुनाव में स्व. इदिरा गांधी की नई कांग्रेस ने दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों को जीतकर अपना परचम बहुत ऊंचा फहरा दिया तो इसके कुछ समय बाद हुए नगर निगम चुनावों में उन्हीं मतदाताओं ने जनसंघ ने पुनः निगम में अच्छा बहुमत दिया। उन निगम चुनावों में एक महत्वपूर्ण घटना हुई थी। जनसंघ के नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने तब दिल्ली के टाउनहाल पर एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि 'दिल्लीवासियों आप ने हमें संसद में जाने के योग्य तो नहीं समझा मगर अब हमसे झाड़ू तो मत छीनों, नगर निगम में हमने बहुत अच्छा काम किया है और नागरिकों को सुविधाएं देने में इजाफा किया है'। स्व. वाजपेयी की इस अपील का लोगों पर जादुई असर हुआ था और निगम चुनावों में पुनः जनसंघ विजयी रही थी जबकि उसी के साथ हुए महानगर परिषद (उस समय दिल्ली में विधानसभा नहीं होती थी) चुनावों में जनसंघ की करारी हार हुई थी और कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत मिला था। अतः दिल्लीवासियों को राजनैतिक रूप से कमतर कर आंकने की यदि कोई गलती करता है तो वह अपनी बनाई हुई दुनिया में ही रहता है। दिल्लीवासी अपनी राजनैतिक जागरूकता का परिचय वर्तमान समय में भी लगातार देते आ रहे हैं। अतः जो लोग आज केन्द्र सरकार द्वारा नगर निगम के एकीकरण किये जाने को राजनैतिक रंग दे रहे हैं उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि दिल्ली के नागरिकों को बहकाया नहीं जा सकता है। वे अपने राजनैतिक दायित्व का निर्वाह पूरी संजीदगी के साथ करना जानते हैं। तीनों नगर निगमों के एकीकरण के लिए कुछ व्यावहारिक व संवैधानिक औपचारिकताएं भी पूरी की जानी थीं। संपादकीय :लिज ट्रस : छिन गई कुर्सीखड़गे कांग्रेस के सिपहसालारमहाराष्ट्र से ठंडी हवा का झोंकाड्रोन बना घातक हथियारचीनी सत्ता पर सवार तानाशाहभारत के पसमान्दा मुस्लिमगृह मन्त्रालय ने निगम क्षेत्रों के वार्डों की संख्या व इनके क्षेत्रों के परिसीमन का कार्य करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग को दी और चुनाव आयोग ने क्षेत्र परिसीमन का कार्य किया और कुल 250 वार्डों की संख्या निर्धारित की। यह कार्य सितम्बर में ही पूरा कर लिया गया था जिसकी अधिसूचना गृह मन्त्रालय ने दो दिन पहले ही जारी की है। अतः अब संयुक्त नगर निगम के चुनाव कभी भी हो सकते हैं। इससे संयुक्त नगर निगम के मेयर का रुतबा पुनः बहाल होगा और दिल्ली को वास्तव में राजधानी होने का गौरव मिलेगा। यह बदलाव दिल्लीवासियों के जीवन को बेहतर बनायेगा ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए।

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