सम्पादकीय

पिछड़ों के लिए एकजुट

Rani Sahu
9 Aug 2021 6:55 PM GMT
पिछड़ों के लिए एकजुट
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ओबीसी आरक्षण विधेयक पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एकजुटता गौरतलब है। पिछले दिनों से पार्टियों को परस्पर दो-दो हाथ करते ही देखा जा रहा था

ओबीसी आरक्षण विधेयक पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एकजुटता गौरतलब है। पिछले दिनों से पार्टियों को परस्पर दो-दो हाथ करते ही देखा जा रहा था, लेकिन भारत में आरक्षण का महत्व इतना ज्यादा हो गया है कि कोई पार्टी इसके विरोध में दिखना कतई पसंद नहीं करेगी। हालांकि, विपक्ष ने इस विधेयक को चर्चा के बाद पारित करने की बात कही है, लेकिन सत्ता पक्ष को शायद विपक्ष पर कम विश्वास है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा में अपनी पार्टी के सांसदों के लिए तीन लाइन का एक व्हिप जारी किया है। व्हिप में पार्टी सांसदों से 10 और 11 अगस्त को सदन में मौजूद रहने को कहा गया है। भाजपा ने अपने लोकसभा सांसदों से भी सदन में उपस्थित रहने की अपील की है। इससे ओबीसी आरक्षण संबंधी विधेयक के महत्व को समझा जा सकता है। सवाल कई हैं, क्या सदन में चर्चा के बाद भी सहमति बनी रहेगी? क्या इस आरक्षण में किसी अन्य संशोधन की मांग विपक्ष करेगा? क्या ओबीसी आरक्षण पर किसी पार्टी की कोई अलग मंशा सामने आएगी? खैर, इन सवालों का जवाब सदन में ही मिलेगा, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि पक्ष और विपक्ष के बीच बनी सहमति भी संदेह से परे नहीं है।

निचले सदन में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ वीरेंद्र कुमार ने अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया। इस दौरान लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आगे बढ़कर कहा कि आज सभी विपक्षी दलों ने बैठक की है और निर्णय लिया है कि उक्त विधेयक पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। सदन में हर विधेयक पर चर्चा होना अच्छी बात है। पिछले कुछ वर्षों में हमने अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों को भी बिना बहस पारित होते देखा है, जिससे देश को जमीनी स्तर पर परिणाम और विश्वास का नुकसान भी हुआ है। अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण से संबंधित विधेयक का पारित होना जरूरी है। केंद्र सरकार की तारीफ करनी चाहिए कि वह राज्य सरकारों को ओबीसी की सूची बनाने का अधिकार दे रही है। अभी तक यह अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास था, लेकिन विगत वर्षों से राज्यों ने भी अपनी जरूरत के हिसाब से ओबीसी सूची को अंजाम दिया है। अभी 5 मई को ही मराठा आरक्षण से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य को ओबीसी सूची बनाने का अधिकार नहीं है। अब केंद्र सरकार चाहती, तो इस अधिकार को अपने पास रख सकती थी, पर स्थानीय जरूरतों को देखते हुए अगर केंद्र सरकार ने राज्यों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है, तो स्वागत है। वैसे आगे की राह आसान नहीं होगी और एक राज्य की देखा-देखी, दूसरे राज्यों में भी आरक्षण की मांग उठेगी। जाति आधारित आरक्षण में अगर एकरूपता नहीं होगी, तो जाति आधारित राजनीति को ही बल मिलेगा। इस संविधान संशोधन से जहां राजनीति का विस्तार होगा, वहीं दबंग जातियों का स्थानीय स्तर पर वर्चस्व भी बढ़ जाएगा। यही वह मोर्चा है, जहां राजनीतिक दलों को सावधान रहना चाहिए। आरक्षण के लिए बार-बार संविधान बदलने से ज्यादा जरूरी है कि पिछड़ी जातियों को पूरी तेजी के साथ आगे लाया जाए, उनके कल्याण के लिए सियासत से ऊपर उठकर तमाम जरूरी कदम उठाए जाएं।


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