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नौनिहालों को निखारता यूनिसेफ संगठन
योगेश कुमार गोयल। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने कई अंतरराष्ट्रीय सगठनों की महत्ता बढ़ा दी है, उनमें यूनिसेफ भी एक है। आज से 75 साल पहले 11 दिसंबर को ही यूनिसेफ की स्थापना हुई थी। 75 वर्षो की यात्रा में उसने दुनियाभर में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए कई अहम कार्य किए हैं। बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कल्याण और विकास के लिए वह निरंतर सक्रिय है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र का यह संगठन आपात स्थितियों में कार्रवाई करता है और युद्ध, आपदा, घोर गरीबी, हर प्रकार की ¨हसा और शोषण तथा शारीरिक अक्षमता से पीड़ित सर्वाधिक वंचित बच्चों के लिए विशेष संरक्षण सुनिश्चित करने के प्रति संकल्पबद्ध है।
वर्ष 1946 में यूनिसेफ की स्थापना द्वितीय युद्ध में प्रभावित बच्चों की सुरक्षा के उद्देश्य से ही की गई थी, लेकिन अब यह संस्था मुख्यत: बाल कल्याण के लिए कार्यरत है। वर्तमान में यूनिसेफ के कार्यकर्ता दुनियाभर के 190 से भी अधिक देशों में बच्चों के कल्याण के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग के अलावा यूनिसेफ द्वारा दुनियाभर में मौजूद अनेक स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के साथ मिलकर बच्चों को पानी, स्वच्छता और शिक्षा आदि के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। यूनिसेफ का 36 सदस्यों का कार्यकारी दल उसकी नीतियां बनाता है तथा वित्तीय एवं प्रशासनिक योजनाओं से जुड़े कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान करता है।
इस संस्था का वित्त पोषण विभिन्न सरकारों तथा निजी दानदाताओं द्वारा किया जाता है। संस्था के संसाधनों का दो-तिहाई योगदान विभिन्न देशों की सरकारें करती हैं और शेष योगदान निजी समूहों तथा व्यक्तियों द्वारा राष्ट्रीय समितियों के माध्यम से किया जाता है।यूनिसेफ का विश्वास है कि बच्चों का पोषण और देखभाल करना ही मानव प्रगति की आधारशिला है और उसका मानना है कि अगर दुनिया में फैली असमानता को मिटाया नहीं गया तो वर्ष 2030 तक लगभग 16.7 करोड़ बच्चे भीषण गरीबी में जीवन जीने को मजबूर होंगे। साथ ही बड़ी संख्या में बच्चे प्राथमिक शिक्षा तक से वंचित हो जाएंगे। ऐसे में बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए यूनिसेफ से उम्मीदें काफी बढ़ जाती हैं, जिसकी नीति है कि कोई अन्य विकल्प नहीं होने पर ही अनाथालयों को केवल बच्चों के लिए अस्थायी आवास के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। यूनिसेफ बच्चों के लिए स्थायी अनाथालयों के बड़े पैमाने पर निर्माण का विरोध करता रहा है। उसका कहना है कि जहां तक संभव हो, परिवारों और समुदायों में ही बच्चों के लिए स्थान खोजने अर्थात उन्हें गोद देने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यूनिसेफ अनाथ बच्चों को विदेशी माता-पिता को गोद देने के बजाय स्वदेश में ही बच्चों की देखभाल करने पर जोर देता रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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