- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अपने ही देश में...
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा का शिकार हुए लोगों की पीड़ा सुनने का समय निकाल लिया, लेकिन इसमें उसे 20 दिन से अधिक का समय लग गया और अभी उसने इस मसले पर दायर याचिका पर केवल बंगाल और केंद्र सरकार को नोटिस भर दिया है। मामले की अगली सुनवाई पर ही पता चलेगा कि उन लुटे-पिटे-अभागे लोगों को कोई राहत मिल पाती है या नहीं, जिन्हेंं तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने इस कारण मारा-पीटा, लूटा-खदेड़ा, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर भाजपा को वोट दिया। भाजपा समर्थकों को मारने-पीटने, उनके घर जलाने और उनकी महिलाओं से छेड़छाड़ करने का सिलसिला चुनाव परिणाम आने वाले दिन तभी शुरू हो गया था, जब यह साफ हो गया था कि तृणमूल कांग्रेस फिर सत्ता में आने जा रही है। तृणमूल कांग्रेस प्रायोजित इस हिंसा के दौरान बंगाल पुलिस ने ऐसे व्यवहार किया, जैसे वह अस्तित्व में ही नहीं है। वह तृणमूल कार्यकर्ताओं की खुली-नग्न गुंडागर्दी के समक्ष मूक दर्शक बनी रही। इसी कारण उसकी मौजूदगी में हिंसा और लूट का नंगा नाच हुआ। कोई भी यह समझ सकता है कि ऐसा ऊपर से मिले निर्देशों के तहत ही हुआ होगा। यह भी समझा जा सकता है कि कम से कम ऐसे निर्देश चुनाव आयोग ने तो नहीं ही दिए होंगे। फिर किसने दिए होंगे? इसे जानने-समझने के लिए दिमाग लगाने की जरूरत नहीं। इसलिए और नहीं, क्योंकि जब तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता जिन्ना वाले डायरेक्ट एक्शन डे की याद दिला रहे थे, तब ममता बनर्जी कह रही थीं कि बंगाल में कहीं कोई हिंसा नहीं हो रही है। बाद में ममता ने इसकी भी कोशिश की राज्यपाल जगदीप धनखड़ हिंसा पीडि़त लोगों से मिलने न जा सकें। मजबूरी में उन्हेंं बीएसएफ के हेलीकॉप्टर से जाना पड़ा।