सम्पादकीय

आतंक पर अधूरा प्रहार

Rani Sahu
23 Oct 2021 3:25 PM GMT
आतंक पर अधूरा प्रहार
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आतंकवाद को पहुंच रही आर्थिक मदद को रोकना उतना ही जरूरी है, जितना आतंकवाद को रोकना

आतंकवाद को पहुंच रही आर्थिक मदद को रोकना उतना ही जरूरी है, जितना आतंकवाद को रोकना। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ताजा ग्रे सूची में पाकिस्तान का नाम अगर बरकरार है, तो शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा। आतंक और आतंकियों के प्रति पाकिस्तान का जो खुला समर्थन है, वह किसी से छिपा नहीं है। पाकिस्तान वर्ष 2018 से ही ग्रे सूची में है और लगातार प्रयासरत है कि वह इस सूची से बाहर आ जाए, लेकिन एफएटीएफ की शर्तें आडे़ आ रही हैं। खास यह है कि अब तो पाकिस्तान का खास सहयोगी तुर्की भी इस ग्रे सूची में शामिल कर लिया गया है। जॉर्डन और माली भी इस सूची में डाले गए हैं। कुल मिलाकर दुनिया के 23 देश ऐसे हैं, जिनका वित्तीय व्यवहार पारदर्शी नहीं है।

एफएटीएफ के अध्यक्ष मार्कस प्लेयर ने कहा है कि पाकिस्तान सहयोग कर रहा है और उसे अब सिर्फ चार शर्तों को पूरा करना है। वैसे कायदे से तो पाकिस्तान जैसे संदिग्ध देश को काली सूची में होना चाहिए, पर मार्कस प्लेयर ने कहा है कि अभी के लिए पाकिस्तान को 'ब्लैक लिस्ट' करने का कोई सवाल ही नहीं है। यह पाकिस्तान जैसे देश के लिए सफलता ही है कि वह दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी ओसामा बिन लादेन को शहीद मानने के बावजूद महज ग्रे सूची में है। अमेरिका सहित तमाम देश जानते हैं कि पाकिस्तान किस तरह से आतंकी जमातों को खड़ा करता रहा है, उसने किस तरह से तालिबान को बचाया और खड़ा किया है। पाकिस्तान किस तरह से कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकियों को हरसंभव मदद देता है। यह जानने के बावजूद पाकिस्तान यदि ग्रे सूची में है, तो यह भारतीय कूटनीति के लिए एक नाकामी है। क्या हम आतंकियों की फंडिंग का खुलासा नहीं कर पा रहे हैं? भारत चूंकि सर्वाधिक पीड़ित है, इसलिए उसे विशेष प्रयास करने चाहिए कि आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक मदद किसी भी तरह से रुक जाए। आर्थिक मदद को भी अगर हम रोक सके, तो आधी जीत हासिल कर लेंगे? पाकिस्तान जैसे देश न केवल पैसे का गलत इस्तेमाल होने देते हैं, बल्कि शिकायत मिलने पर जांच तक नहीं करते हैं?
बात-बात पर भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के साथ खडे़ होने वाले तुर्की के साथ भी यही समस्या है। यह तुर्की के लिए शर्म की बात है कि उसे ग्रे सूची में डाल दिया गया है। क्या यही मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा स्थापित तुर्की है? मुस्लिम दुनिया में सेकुलर धारा के लिए पहचान बनाने वाला तुर्की भी मजहबी आतंकियों को धन मुहैया करा रहा है? पाकिस्तान और तुर्की ऐसे देश हैं, जिनके मुंह से भारत में आतंकी हिंसा के खिलाफ कभी दो शब्द नहीं निकलते हैं, इनका ध्यान केवल भारत की उन कमियों पर लगा रहता है, जो मोटे तौर पर मजहबी आतंक की वजह से ही पैदा हुई हैं। क्या तुर्की ने कभी पाकिस्तान से कहा है कि हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे सूचीबद्ध आतंकियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करे? जब तक पाकिस्तान खुद में सुधार न लाए, तब तक उसे ग्रे सूची में रखना चाहिए। यह भी तय करना चाहिए कि किसी देश को ग्रे सूची में कब तक रखा जा सकता है। हो सकता है, ग्रे सूची में रहकर उसे ज्यादा नुकसान नहीं हो रहा हो और वह आतंक समर्थक नीतियों को जारी रखने में बड़ा फायदा समझ रहा हो।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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