सम्पादकीय

बेरोजगारी : नौकरियां तो हैं, तलाशने की जरूरत

Neha Dani
20 Feb 2022 1:40 AM GMT
बेरोजगारी : नौकरियां तो हैं, तलाशने की जरूरत
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90 मिनट के 157 पैराग्राफ के बजट भाषण में 'नौकरियां' शब्द तीन जगहों पर आया!

कुछ दिनों पहले एक खबर ने मेरा ध्यान खींचा। यह तमिलनाडु के रोजगार कार्यालय में पंजीबद्ध लोगों के संबंध में थी :

कुल पंजीयन 75,88,359
18 वर्ष से कम उम्र 17,81,695
19 से 23 वर्ष 16,14,582
24 से 35 वर्ष 28,60,359
36 से 57 वर्ष 13,20,337
58 वर्ष से अधिक 11,386
ये आंकड़े हताश करने वाले हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि ये आंकड़े अपेक्षाकृत विकसित राज्य तमिलनाडु के हैं, न कि उत्तर प्रदेश या बिहार के।
अधिक आबादी वाले और कम विकसित उत्तर प्रदेश या बिहार में बेरोजगार व्यक्तियों की सही संख्या, अगर उन्हें खुद को पंजीकृत करने के लिए प्रेरित किया जाए, तो ऐसी होगी कि जिससे दिमाग घूम जाएगा।
अनदेखी नौकरियां
बेरोजगारों के लिए नौकरियां कहां हैं? शायद हमारी नजरों से ओझल हैं। 31 मार्च, 2021 को केंद्र सरकार के अधीन 8,72,243 रिक्तियां थीं और सरकार ने उसमें 78,264 में भर्तियां कर ली। करीब आठ लाख पद अभी खाली पड़े हैं!
चारों ओर नौकरियां हैं, लेकिन हम उन्हें तलाशने के प्रयास नहीं करते। हाल ही में मैंने सुप्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ और नारायणा अस्पताल शृंखला के संस्थापक डॉ. देवी शेट्टी की एक वीडियो रिकॉर्डिंग सुनी। डॉ. शेट्टी की बातचीत के अंश देखिए :
'हमारे यहां अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की भारी कमी है।'
'यदि हम कैरेबियन क्षेत्र में जाएं, तो वहां 35 मेडिकल कॉलेज हैं, जहां अमेरिका के लिए डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाता है। एक शॉपिंग मॉल में पचास हजार वर्ग फुट जगह किराये पर लेकर डॉक्टरों को शानदार प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हम चार सौ करोड़ रुपये खर्च (एक मेडिकल कॉलेज पर) कर क्यों ऐसी इमारत बना रहे हैं? यह हास्यास्पद है।'
'सौ छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए मेडिकल कॉलेज को 140 शिक्षकों की जरूरत नहीं है। 140 शिक्षक हजार छात्रों के साथ एक मेडिकल कॉलेज चला सकते हैं। यानी, जब पूरी दुनिया बदल चुकी है, हम नहीं बदले हैं।'
' हमने मेडिकल शिक्षा को विशिष्ट लोगों का मामला बना दिया है... आज गरीब परिवारों के बच्चे डॉक्टर बनने का सपना नहीं देख रहे हैं। इसके गंभीर परिणाम होंगे। दुनिया भर में जादुई उंगलियों वाले शानदार डॉक्टर वंचित पृष्ठभूमि से ही आते हैं, क्योंकि इन बच्चों में चौबीस घंटे काम करने की तड़प होती है, ताकि वे खेल के नियम बदल सकें।'
'आखिर हर बारह मिनट में एक गर्भवती महिला की प्रसव के दौरान क्यों मौत होनी चाहिए? आखिर क्यों, तीन लाख शिशुओं की जन्म के दिन ही मौत हो जाती है? आखिर क्यों, 12 लाख बच्चे अपना पहला जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं? यह अस्वीकार्य है।'
'हमें दो लाख स्त्री रोग विशेषज्ञों की जरूरत है, हमारे पास पचास हजार की कमी है; उनमें से भी आधी प्रसूति के काम से नहीं जुड़ी हैं... हमें दो लाख एनेस्थेटिस्ट की जरूरत है, हमारे पास पचास हजार की कमी है। हमें बच्चों की देखभाल के लिए दो लाख बाल रोग विशेषज्ञों की जरूरत है, हमारे पास पचास हजार की कमी है; हमें कम से कम डेढ़ लाख रेडियोलॉजिस्ट की जरूरत है, हमारे यहां 10,500 की कमी है।'
'इस देश को अतिरिक्त बजट आवंटन की जरूरत नहीं है, इस देश को मेडिकल, नर्सिंग, पैरा मेडिकल शिक्षा को स्वतंत्र करने की जरूरत है।'
अनुदार सरकारें
डॉ. शेट्टी के मुताबिक, अकेले स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में थोड़े से प्रयास से हजारों नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।
शिक्षा, शहरी विकास, नदियों और जलाशयों, वानिकी, पशुपालन, कृषि अनुसंधान और विस्तार और खाद्य प्रसंस्करण जैसे अन्य क्षेत्रों के लिए भी यही कठोर तर्क लागू करें, तो लाखों नौकरियां पैदा की जा सकती हैं, जो बदले में लाखों लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करेगी।
इसके अलावा सरकारें डरपोक हैं। वे उन नौकरियों के सृजन से डरती हैं, जिनकी सरकारी क्षेत्र में सख्त जरूरत है, क्योंकि उन्होंने 'छोटी सरकार अच्छी सरकार है' का भ्रम जो फैलाया हुआ है। सरकारों के पास जानकारियों का भी अभाव है। जैसा कि डॉ. शेट्टी रेखांकित करते हैं कि हम स्मारक तो बना रहे हैं, लेकिन आत्मनिर्भर मेडिकल कॉलेज नहीं बना रहे हैं, जबकि इस बीच कई महिलाएं, बच्चे और पीड़ित मर जाते हैं। अनुदारतावाद, डरपोक नजरिये और गलत खर्च से जुड़ा उनका आकलन सरकार के हर विभाग में देखा जा सकता है।
हमें रोजगार सृजित करने के लिए जिस चीज की जरूरत है, वह है 'व्यवधान', जैसे - '50,000 वर्ग फुट शॉपिंग मॉल मेडिकल कॉलेज' - जिसकी वकालत डॉ.शेट्टी ने की थी।
व्यवधान पैदा करने वाले रोजगार पैदा करते हैं
व्यवधान पहुंचाने वाले निडर लोगों को कई चीजों के लिए दोषी ठहराया गया है, लेकिन उन्होंने अज्ञात में कदम रखा, कुछ ऐसा बनाया, जो पहले नहीं था और इस प्रक्रिया में संपत्ति का निर्माण हुआ और नौकरियों का आविष्कार। जरा गोटलिब डेमलर, हेनरी फोर्ड, किंजारो ताकायानागी, सैम वाल्टन, जॉन मिशेल और मार्टिन कूपर (मोटोरोला), स्टीव जॉब्स, ज्याफ बेजोस, मार्क जुकरबर्ग, एलन मस्क और लीक तोड़ने वाली उनकी पहलों पर गौर कीजिए, जिनकी वजह से लाखों नौकरियां पैदा हुईं, जिनमें से कई का तो पहले अस्तित्व ही नहीं था।
भारत की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत है नौकरियां। मैंने जिन क्षेत्रों का ऊपर जिक्र किया, उनमें शिक्षक, लाइब्रेरियन, कला गुरु, कोच, लैब टैक्नीशियन, डिजानाइर और आर्किटेक्ट्स, सिटी प्लानर, इंजीनियर्स, फॉरेस्ट गार्ड्स, मत्स्य पालक, पशु चिकित्सक, दूध उत्पादक, पोल्ट्री फार्मर्स जैसे सैकड़ों वर्गों के लिए लाखों नौकरियां पैदा करने की संभावना है।
एमएसएमई, विशेष रूप से छोटी और मध्यम इकाइयां, सबसे अधिक रोजगार देते हैं। एक बार जब नौकरियां पैदा हो जाती हैं, तो वे संबंधित नौकरियां, आय, धन, कर राजस्व, पर्यावरण की देखभाल, दान, ललित कला और साहित्य को प्रोत्साहन जैसा अपना चक्र भी शुरू कर देती हैं।
लेकिन नौकरी के बारे में कौन सोच रहा है? न तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, जबकि उसके कार्यालय के बाहर एक महान अवसर की प्रतीक्षा की जा रही है। और न ही वित्त मंत्रालय, जिसने 2022-23 के लिए मोदी सरकार का बजट पेश किया। 90 मिनट के 157 पैराग्राफ के बजट भाषण में 'नौकरियां' शब्द तीन जगहों पर आया!

सोर्स: अमर उजाला


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