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By: Divyahimachal
मसला पर्यटन को चमकाने का नहीं, बल्कि पर्यटन के लिए चमकने का है। धर्मशाला में पर्यटन के राष्ट्रीय सम्मेलन में यूं तो राष्ट्रीय क्षमता का अवलोकन हुआ, मगर अगले कुछ सालों की प्राथमिकताएं तय नहीं हुईं। टूरिस्ट के हिसाब से नए पुराने डेस्टिनेशन बेशक लबालब हो जाएं, मगर किसी एक सीजन में फंसा सारा उत्साह केवल भीड़ बनकर उजड़ जाता है। हिमाचल ने अपने पर्यटन को छह थीम यानी साहसिक, धार्मिक, प्रकृति, सप्ताहांत, ग्रामीण और ट्राइबल में केंद्रित किया है, लेकिन इस दृष्टि से आने वाले पर्यटकों और उनकी सुविधाओं का वर्गीकरण नहीं हुआ। खास तौर पर यह मूल्यांकन नहीं हुआ कि यहां आने वाले अस्सी फीसदी सैलानी धार्मिक प्रवेश द्वारों से ही गुजरते हैं। धार्मिक स्थलों की आय का व्यय आज तक पर्यटकों की सुविधाओं के अनुरूप नहीं हुआ और न ही मंदिरों की क्षमता विकास योजनाओं से आर्थिक विकास की परिकल्पना जोड़ी गई। नतीजतन हम वहीं घूम रहे हैं जहां से शुरू हुए थे। प्रकृति से जुड़े पर्यटन को ईको, साहसिक या युवा पर्यटन के नजरिए से देखें, तो यही सप्ताहांत की दौड़ में भीड़ बन कर सबसे अधिक उभर रहा है, लेकिन क्या हम इसकी चुनौतियां समझते हैं। पिछले कुछ सालों से हिमाचल के ऊंचे शिखरों पर स्थित मंदिरों तक पहुंचे ऐसे सैलानियों के कारण आभा खोई है। शिकारी देवी मंदिर को हम यात्रा से बदलकर पर्यटन कारवां भले ही बना दें, लेकिन अप्रत्याशित भीड़ के कारण हम पाने के बजाय बहुत कुछ खो देंगे। इसी प्रदेश में सेल्फी लेने के उन्माद में अब दर्जनों पर्यटक जान गंवा चुके हैं और मौसम तथा पानी की शैतानियों ने कई बाद रोमांच को कब्रिस्तान पहुंचा दिया है।
जाहिर है ग्रामीण और ट्राइबल टूरिज्म को अगर नीतिगत तरीके से विस्तार मिले तो एग्रो पर्यटन को भी संबल मिलेगा। अगर हर विधानसभा क्षेत्र में एक-एक पर्यटन गांव भी बनाया जाए, तो विधायक प्राथमिकता के तहत हम 68 नए डेस्टिनेशन ही विकसित नहीं करेंगे, बल्कि हाई-वे, हाट बाजार, ईको व झील पर्यटन को भी आगे बढ़ा पाएंगे। अगर पर्यटक गांव की अवधारणा में स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देना चाहें, तो प्रमुख सडक़ों पर हर बीस-पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर्यटक सुविधाओं, खान-पान, वाहन सुविधाओं, मनोरंजन व उपहार केंद्रों के तहत युवा वर्ग को कमाने का ढांचा भी उपलब्ध होगा। प्रदेश को पर्यटन की भीड़ से बचाकर हाई एंड टूरिज्म की तरफ ले जाना है, तो ट्राइबल, धरोहर, डेस्टिनेशन तथा नए आकर्षणों का एक खास पैकेज तैयार करना होगा। सिने पर्यटन के रास्ते से भी हाई एंड मनोरंजन पैदा होगा, लेकिन इसके लिए फिल्म सिटी के प्रारूप में दो-तीन धरोहर व प्राकृतिक नज़ारों से भरपूर केंद्र विकसित करने होंगे। हिमाचल में युवा व छात्र पर्यटन की संभावनाओं को अगर मनोरंजन की दृृष्टि से विकसित करें, तो एक अप्रत्याशित पर्यटन को ठिकाना मिलेगा। उदाहरण के लिए भोटा से नादौन के बीच साइंस सिटी की स्थापना तथा जोगिंद्र नगर, नाहन व कसौली जैसे स्थानों पर मनोरंजन पार्क विकसित करने होंगे। आश्चर्य तो यह कि धर्मशाला में पिछली सरकार द्वारा स्थापित किए गए पहले ट्यूलिप गार्डन में न तो कोई फूल उगा और न ही इसका ताला पर्यटकों के लिए खुला। विडंबना यह है कि जिस पर्यटन का दोहन जारी है, वह पारंपरिक या युवा उत्साह के रास्ते पर खड़ा है, लेकिन जिस दिन हम अपने इतिहास, संस्कृति, प्रकृति, परंपराओं और सुकून को सुरक्षित ढंग से पेश कर पाएंगे, अप्रत्याशित रूप से पर्यटन की राहों से आर्थिक विकास की मंजिलें भी खुल जाएंगी।
Rani Sahu
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